________________
६५८
लोक- प्रज्ञप्ति
सहस्तार आणय-पाणयः आरण परीवेज पातरो सवार मत प्राप्त आरण-अच्युतप्रवेयक और अनुत्तरों में
ववाइया देवा ।
उत्पन्न होने वाले देव ।
ते णं
१. मिग,
२. महिस
३. वराह.
४. सीह
५. छगल,
६. द्ददुर,
७. हय,
८.
7
गवई,
ह. भुयग,
१०. खग्ग,
११.
१२. विडिम, पागडिय-चिधमउडा ।
पसिढिलवरमउड-तिरीड धारिणो
वरकुण्डलोयागणा
मउडवित्त सिरया ।
तापमपम्हगोरा,
सेया सुहवण्णगंध-फासा, उत
ऊर्ध्व लोक : वैमानिक देवों के स्थान
पचरयस्थ-गंध-मसालेवणारा, महिढिया जाव महासोक्खा । हारविराइयवच्छा, कपू-डिपभिया अंगद-कुडलमडतपीठधारी,
विचित्तहस्था भरणा, विचित्तमालामउली । कलाणगपवरयस्थपरिहिया,
कल्लाणगपवरमल्लावा
भासरबोंदि पलंबवणमालधरा,
दिव्वेणं वण्णेणं-जाव- दिव्वाए लेस्साए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा । पभासेमाणा । ते णं तत्थ साणं साणं विमाणावाससय सहस्साणं- जाव- साणं साणं आयरक्ख देवसाहस्सीणं असि च बहूणं वेमाणियाणं देवाणं देवीण य आहेबजाय दवाई भोग भोगाई भुजमाणा विहरति । -पण्ण. प. २, सु. १६६
सूत्र ६
बारह देवलोकों के देवों के मुकुटों पर अंकित चिह्न(१) सौधर्म कल्पवासी देवों के मुकुटों पर मृग का चिह्न है । (२) ईशानकल्पवासीदेवों के मुकुटों पर पाडे का चिह्न है। (३) मनत्कुमार कल्पवासीदेवों के मुकुटों पर वराह का चिह्न है ।
(४) माहेन्द्रकल्पवासीयों के मुकुटों पर सिंह का चिह्न है। (५) ब्रह्मलोककल्पवासीदेवों के मुकुटों पर बकरे का चिह्न है । (६) लान्तक कल्पवासीदेवों के मुकुटों पर मेंडक का चिह्न है । (७) महामुककल्पवासीयों के मुकूटों पर घोड़े का चिह्न है। (८) सहसरकल्पवासीदेवों के मुकूटों पर गजपति का चिह्न है। (६) आनतकल्पवासीदेवों के मुकुटों पर भुजंग का चिन्ह है । (१०) प्राणतकल्पवासीदेवों के मुकुटों पर खड्ग का चिन्ह है । (११) आरणकल्पवासीदेवों के मुकुटों पर वृषभ का चिन्ह है। (१२) अच्युतकल्पवासी देवों के मुकुटों पर विटिम (मृग विशेष) का चिन्ह है ।
वे शिथिल श्रेष्ठ मुकुट किरीट धारण करने वाले हैं,
श्रेष्ठ कुण्डलों से प्रकाशित मुख वाले हैं,
मुकुटों से सुशोभित केशों वाले हैं,
लालचर्ण के कमलों जैसे गौर वर्ण वाले है.
श्वेत शुभ वर्ण-गंध-स्पर्श वाले हैं,
उत्तम वैक्रय करने वाले हैं,
श्रेष्ठ वस्त्र गंध माल्य तथा लेपन धारण करने वाले हैं, महान ऋद्धि वाले है--पाय-महामुख वाले हैं,
वक्ष स्थल पर विराजित हार वाले हैं।
कड़ा और भुवबंध से सुर भुजा वाले हैं।
अंगद और कुण्डल स्पृष्ट कपोलों पर कर्णपीठ धारण करने
वाले हैं,
हाथों पर विचित्र आभरण धारण करने वाले हैं,
मस्तक पर विचित्र मालायें धारण करने वाले हैं,
कल्याणकर श्रेष्ठ वस्त्र धारण करने वाले हैं, कल्याणकर श्रेष्ठ माल्य एवं विलेपन धारण करने वाले हैं, दिव्य देह वाले हैं, लम्बी वनमालायें धारण करने वाले हैं, दिव्य वर्ण से - यावत् - दिव्य तेज से दस दिशाओं को उद्योतित करते हुए प्रभासित करते हुए वे अपने अपने लाखों विमानावासों का यावत् — अपने अपने हजारों आत्मरक्षक देवों का और अन्य अनेक वैमानिक देव-देवियों का आधिपत्य करते हुए पाव-दिव्य भोगों को भोगते हुए रहते हैं।