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लोक- प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक नक्षत्रों के भोजन और कार्य सिद्धि
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२६. ता पुव्वासाढा खलु णक्खत्ते पुव्वं भागे समक्खेत्ते तीस मुहुत्ते तपढमयाए पाओ चंदेण सद्धि जोय जोएइ; तओ पच्छा अवरं च राई,
एवं खलु पुथ्वासाढा णक्खत्ते एगं च दिवस एवं च राई चंदेण सद्धि जोयं जोएइ,
जोयं जोइता जोय अणुपरियट्टइ
जोय' अणुपरियट्टित्ता पाओ चंदं उत्तरासाढाणं समप्पेइ,
२७. ता उत्तरासाढा खलु णक्खत्ते उभय भागे दिवड्ढखेत्ते पणयालीस मुहुत्ते तप्पढमयाए पाओ चंदेण सद्धि जोय' जोएइ, अवरं च राई तओ पच्छा अवरं च दिवस,
एवं खलु उत्तरासाढा णक्खत्ते दो दिवसे एगं च राई सिद्धि जो जोएड
जोय' जोइसा जोव अनुपविट्टड,
जोय अणुपरियट्टित्ता सायं चंदे अभिई सवणाणं समप्पेह - सूरिय. पा. १०, पाहु. ४, सु. ३६ णक्खत्ताणं भोयणं कज्ज-सिद्धि य१२५. ५० - ता कहं ते भोयणा ? आहिए ति वएज्जा, उ०- ता एएसि णं अट्ठावीसाए णं णक्खत्ताणं मज्झे१. कत्तिया हि दक्षिणा भोच्चा कज्जं साधेंति,
२. रोहिणीहि वसभ-मंसं भोच्चा कज्जं साधेंति,
२. मिसरे (ठाणा) मिगमं भोच्या क सार्धेति
४. अहाहि यणएवं भोक साति
५. पुणव्वसुणाऽथ घएणं भोच्चा कज्जं साधेंति,
६. पुस्से णं खीरेण भोच्चा कज्जं साधेति,
सूत्र ११२४-११२५
(२६) पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र "दिन के" पूर्वभाग - प्रातः काल में चन्द्र के साथ योग प्रारम्भ करता है। तदनन्तर एक रात्रि अर्थात् "पूर्वापर का काल मिलाकर" तीस मुहूर्त चन्द्र के साथ समक्षेत्र में योग-युक्त रहता है।
इस प्रकार पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र एक दिवस और एक रात्रि चन्द्र के साथ योग-युक्त रहता है ।
योग करके योग मुक्त हो जाता है ।
योग मुक्त होकर प्रातः काल में " पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र" उत्तराषाढ़ा नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है ।
(२७) उत्तराषाढा नक्षत्र "दिन के" पूर्वभाग - प्रातः काल में तथा " दिन के" पिछले भाग - सायंकाल में अर्थात् उभयभाग में चन्द्र के साथ योग प्रारम्भ करता है, तदनन्तर एक रात्रि और एक दिवस अर्थात् " पूर्वापर का काल मिलाकर पैंतालीस मुहूर्त चन्द्र के साथ योग-युक्त रहता है ।
इस प्रकार उत्तराषाढ़ा नक्षत्र दो दिन और एक रात चन्द्र के साथ योग-युक्त रहता है ।
योग करके योग मुक्त हो जाता है ।
योग मुक्त होकर सायंकाल में "उत्तराषाढ़ा नक्षत्र" अभिजित और श्रवण नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है । नक्षत्रों के भोजन और कार्य सिद्धि
१२५. प्र० - नक्षत्र के भोजन क्या हैं ? कहें ।
उ०—इन अट्ठाईस नक्षत्रों में से
(१) कृत्तिका नक्षत्र में दही खाकर कार्य करे तो कार्य सिद्ध होता है।
(२) रोहिणी नक्षत्र में वृषभ का मांस खाकर कार्य करे तो कार्य सिद्ध होता है।
(३) मृगशिरा नक्षत्र में मृग का मांस खाकर कार्य करे तो कार्य सिद्ध होता है ।
(४) आर्द्रा नक्षत्र में नवनीत खाकर कार्य करे तो कार्य सिद्ध होता है ।
(५) पुनर्वसु नक्षत्र में घृत खाकर कार्य करे तो कार्य सिद्ध होता है।
(६) पुष्य नक्षत्र में दूध पीकर कार्य करे तो कार्य सिद्ध होता है।
१ (क) सुत्रांक १० से २७ पर्यंन्त के मूलपाठ सूर्य प्रज्ञप्ति की टीका से यहाँ उद्धृत किये हैं ।
(ख) चंद. पा. १० सु. ३६ ।
२ रोहिणीहि मम मसं ( चमसम सं ) भोच्चा कज्जं साधेंति, आ. स. समिति से प्रकाशित प्रति के पृष्ठ १५१ पर (पाठान्तर ) है ।