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________________ सूत्र ११२४ तिर्यक् लोक : नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग का प्रारम्भ काल गणितानुयोग ६४६ जोय अणु परियट्टित्ता पाओ चंदं विसाहाणं, समप्पेइ, योग-मुक्त होकर प्रातःकाल में "स्वाती नक्षत्र" विशाखा नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है । २२. ता विसाहा खलु णक्खत्ते उभय भागे दिवड्ढखेत्ते (२२) विशाखा नक्षत्र “दिन के” पूर्वभाग-प्रातःकाल में पणयालीस-महत्ते तप्पढमयाए पाओ चंदेण सद्धि तथा “दिन के" पिछले भाग-सायंकाल में चन्द्र के साथ योग जोय जोएइ-अवरं च राई तओ पच्छा अवरंदिवस, प्रारम्भ करता है, तदनन्तर एक रात्रि और एक दिवस अर्थात् 'पूर्वापर का काल मिलाकर “पैतालीस मुहर्त चन्द्र के साथ डेढ़ क्षेत्र में योग-युक्त रहता है। एवं खलु विसाहा णक्खत्ते दो दिवसे एगं च राई इस प्रकार विशाखा नक्षत्र दो दिन तथा एक रात्रि चन्द्र के चंदेण सद्धि जोय जोएइ, साथ योग-युक्त रहता है। जोय जोइत्ता जोय अणुपरियट्टइ, योग करके योग-मुक्त हो जाता है । जोय अणुपरियट्टित्ता साय चंदं अणुराहाए समप्पेइ, योग-मुक्त होकर सायंकाल में "विशाखा नक्षत्र" अनुराधा नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है । २३. ता अणुराहा खलु णक्खत्ते पच्छंभागं समक्खेत्ते तीसइ- (२३) अनुराधा नक्षत्र "दिन के" पिछले भाग सायंकाल में मुहत्ते तप्पढमयाए साय चंदेण सहि जोय जोएइ, चन्द्र के साथ योग-प्रारम्भ करता है। तदनन्तर एक रात्रि और तओ पच्छा राई अवरं च दिवसं, एक दिवस अर्थात् “पूर्वापर का काल मिलाकर" तीस मुहूर्त चन्द्र के साथ समक्षेत्र में योग-युक्त रहता है । एवं खलु अणुराहा णक्खत्ते एगं राई एगं च दिवसं इस प्रकार अनुराधा नक्षत्र एक रात्रि और एक दिवस चन्द्र चंदेण सद्धि जोय जोएइ, के साथ योग-युक्त रहता है। जोय जोइत्ता जोय अणुपरियट्टइ, योग करके योग-मुक्त हो जाता है । जोय अणुपरियट्टित्ता साय चंद जिट्ठाए समप्पेइ, योग-मुक्त होकर सायंकाल में “अनुराधा नक्षत्र" ज्येष्ठा नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है। २४. ता जेट्ठा खलु णक्खत्ते नत्तं भागे अवड्ढखेते पण्णरस- (२४) ज्येष्ठा नक्षत्र सायंकाल में चन्द्र के साथ योग प्रारम्भ मुहत्ते तप्पढमयाए साय चंदेण सद्धि जोय जोएइ, करता है, रात्रि में पन्द्रह मुहूर्त चन्द्र के साथ अर्धक्षेत्र में योगनो लभइ अवर दिवस, युक्त रहता है । किन्तु दूसरे दिन योग-युक्त नहीं रहता है । एवं खलु जिट्ठा णक्खत्ते एगं च राई चंदेण सद्धि जोय इस प्रकार ज्येष्ठा नक्षत्र एक रात्रि चन्द्र के साथ योग-युक्त जोएइ, रहता है। जोय जोइत्ता जोय अणुपरियट्टइ, योग करके योग-मुक्त हो जाता है । जोय अणुपरियट्टित्ता पाओ चंद मूलस्स समप्पेइ, योग-मुक्त होकर प्रातःकाल में "ज्येष्ठा नक्षत्र" मूल नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है। २५. ता मूले खलु णक्खत्ते पुव्वंभागे समक्खेत्ते तीसइ-मुहुत्ते (२५) मूल नक्षत्र “दिन के” पूर्वभाग प्रातःकाल में चन्द्र के तप्पढमयाए पाओ चंदेण सद्धि जोय जोएइ, साथ योग प्रारम्भ करता है, तदनन्तर एक रात्रि अर्थात् "पूर्वा पर का काल मिलाकर" तीस मुहूर्त चन्द्र के साथ समक्षेत्र में योग-युक्त रहता है। एवं खलु मूलं णक्खत्तं एगं च दिवसं एगं च राई चंदेण इस प्रकार मूल नक्षत्र एक दिन और एक रात चन्द्र के साथ सद्धि जोय जोएइ, __योग-युक्त रहता है। जोय जोइत्ता जोय अणुपरियट्ठइ, योग करके योग-मुक्त हो जाता है। जोय अणुपरियट्टित्ता पाओ चंदं पुब्वासाढाणं समप्पेइ, योग-मुक्त होकर प्रातःकाल में "मूल नक्षत्र" पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र - को चन्द्र समर्पित कर देता है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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