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________________ सूत्र ११२४ तिर्यक् लोक : नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग का प्रारम्भ काल गणितानुयोग ६४५ ६. ता रेवई खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तीसइ- (६) रेवती नक्षत्र 'दिन के" पिछले भाग सायंकाल में मुहत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएइ, चन्द्र के साथ योग प्रारम्भ करता है, तदनन्तर एक दिन, अर्थात् तओ पच्छा अवरं दिवस, "पूर्वापरका काल मिलाकर" तीस मुहर्त चन्द्र के साथ समक्षेत्र में योग-युक्त रहता है। एवं खलु रेवई णक्खत्ते एगं च राई, एगं च दिवसं इस प्रकार रेवती नक्षत्र एक रात्रि और एक दिवस चन्द्र के चंदेण सद्धि जोयं जोएइ, साथ योग-युक्त रहता है । जोयं जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टइ, योग करके योग-मुक्त हो जाता है । जोयं अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं अस्सिणीणं समप्पेइ, योग-मुक्त होकर सायंकाल में "रेवती नक्षत्र" अश्विनी नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है । ७. ता अस्सिणी खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तीसइ- (७) अश्विनी नक्षत्र "दिन के" पिछले भाग—सायंकाल में महत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएइ, तओ चन्द्र के साथ योग प्रारम्भ करता है । तदनन्तर एक दिन, अर्थात् पच्छा अवरं दिवस, "पूर्वापर का काल मिलाकर" तीस मुहूर्त चन्द्र के साथ समक्षेत्र में योग-युक्त रहता है। एवं खलु अस्सिणी णक्खत्ते, एगं च राई, एगं च दिवस, इस प्रकार अश्विनी नक्षत्र, एक रात्रि और एक दिवस चन्द्र चंदेण सद्धि जोयं जोएइ, के साथ योग-युक्त रहता है । जोयं जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टइ, योग करके योग-मुक्त हो जाता है । जोयं अणुपरियट्टित्ता, सायं चदं भरणीण समप्पेइ, योग-मुक्त होकर सायंकाल में "अश्विनी नक्षत्र" भरणी नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है । ८. ता भरणी खलु णक्खत्ते णतंभागे, अवड्ढखेत्ते पण्णरस- (८) भरणी नक्षत्र सायंकाल में चन्द्र के साथ योग प्रारम्भ मुहत्तं तप्पढमयाए सायं चदेण सद्धि जोयं जोएइ, करता है, रात्रि में पन्द्रह मुहूर्त चन्द्र के साथ अर्ध क्षेत्र में योगनो लभइ अवरं दिवस, युक्त रहता है । किन्तु दूसरे दिन अलग हो जाता है । एवं खलु भरणी णक्खत्ते एगं च राइं चंदेण सद्धि जोयं इस प्रकार भरणी नक्षत्र एक रात्रि चन्द्र के साथ योग जोएइ, करता है। जोयं जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टइ, योग करके योग-मुक्त हो जाता है। जोयं अणुपरियट्टित्ता पाओ चंदं कत्तियाणं समप्पेइ, योग-मुक्त होकर प्रातःकाल में "भरणी नक्षत्र" कृत्तिका नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है। १. ता कत्तिया खलु णक्खत्ते पुव्वं भागे समक्खेत्ते तोसइ- (E) कृत्तिका नक्षत्र “दिन के" पूर्वभाग-प्रातःकाल में चन्द्र महत्ते तप्पढमयाए पाओ चंदेण सद्धि जोयं जोएइ, के साथ योग प्रारम्भ करता है तदनन्तर रात्रि में चन्द्र के साथ तओ पच्छाराई, समक्षेत्र में तीस मुहूर्त योग-युक्त रहता है। एवं खलु कत्तिया णक्खत्ते, एगं च दिवसं एगं च राई इस प्रकार कृत्तिका नक्षत्र एक दिन और एक रात्रि चन्द्र के चंदेण सद्धि जोयं जोएइ, साथ योग-युक्त रहता है। जोयं जोएता जोयं अणुपरियट्टइ, योग करके योग-मुक्त हो जाता है। जोयं अणुपरियट्टित्ता पाओ चंदं रोहिणीणं समप्पेइ, योग-मुक्त होकर प्रातः-काल में 'कृत्तिका नक्षत्र" रोहिणी नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है। १ "योगमनुपरिवर्त्य सायं परिस्फुटन्नक्षत्रमण्डलालोकसमये भरण्याः समर्पयति, इदं च भरणी नक्षत्रमुक्तयुक्त्या रात्री चन्द्रेण सह योगमुपैति, ततो नक्त भागमवसेयम्"। . २ इसके आगे मूल प्रति में–“संक्षिप्तवाचना का पाठ इस प्रकार है(१०) 'रोहिणी जहा उत्तराभवया", (११) मगसिरं जहा धणिट्ठा, (क्रमशः)
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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