________________
६४४
लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग का प्रारम्भ काल
सूत्र ११२४
३. ता सयभिसया खलु णक्खत्ते णतंभागे अवड्ढखेत्तें' (३) शतभिषा नक्षत्र सायंकाल में चन्द्र के साथ योग
पण्णरस-मुहुत्ते, तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं प्रारम्भ करता है और रात्रि में पन्द्रह मुहूर्त पर्यन्त आधे क्षेत्र में जोएइ, नो लभइ अवरं दिवस,
योग-युक्त रहता है किन्तु दूसरे दिन अलग हो जाता है। एवं खलु सयभिसया णक्खत्ते, एगं राइं चंदेण सद्धि इस प्रकार शतभिषक् नक्षत्र एक रात्रि पर्यन्त चन्द्र के साथ जोयं जोएइ,
योग-युक्त रहता है। जोयं जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टइ,
योग करके योग मुक्त हो जाता है । जोयं अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं पुव्वपोटुवयाणं समप्पेइ, योग से अलग होकर सायंकाल में 'शतभिषक् नक्षत्र"
. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है। ४. ता पुव्वा-पोटुवया खलु णक्खत्ते पुव्वं भागे समक्खेत्ते (४) पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र "दिन के” पूर्वभाग-प्रातःकाल में
तीसइ-मुहत्ते तप्पढमयाए पाओ चंदेण सद्धि जोयं चन्द्र के साथ योग प्रारम्भ करता है, बाद में एक रात्रि पर्यन्त जोएइ, तओ पच्छा अवरं राई,
“पूर्वापर का काल मिलाकर" तीस मुहूर्त पर्यन्त चन्द्र के साथ
समक्षेत्र में योग-युक्त रहता है। एवं खलु पुव्वापोटुवया णक्खत्ते एगं च दिवसं एगं च इस प्रकार पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र एक दिन और एक रात्रि राइं चंदेण सद्धि जोयं जोएइ,
पर्यन्त चन्द्र के साथ योग युक्त रहता है। जोयं जोएत्ता अणुपरियट्टइ,
योग करके योग-मुक्त हो जाता है । जोयं अणुपरियट्टित्ता पाओ चंदं उत्तरापोट्टवयाणं योग-मुक्त होकर प्रातःकाल में "पूर्वाभाद्रपद" नक्षत्र उत्तरासमप्पेइ,
भाद्रपद नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है । ५. ता उत्तरापोट्ठवया खलु णक्खत्ते उभयं भागे दिवड्ढ- (५) उत्तराभाद्रपद नक्षत्र "दिन के" पूर्व भाग-प्रातःकाल में
खेत्ते पणयालीस-मुहत्ते , तप्पढमयाए पाओ चंदेण सद्धि तथा “दिन के" पिछले भाग-सायंकाल में चन्द्र के साथ योग जोय जोएइ, अवरं च राई तओ पच्छा अवरं च प्रारम्भ करता है । बाद में दूसरी रात्रि तथा दूसरा दिन, अर्थात् दिवसं।
"पूर्वापर का काल मिलाकर" पेंतालीस मुहूर्त पर्यन्त चन्द्र के
साथ डेढ़ क्षेत्र में योग युक्त रहता है । एवं खलु उत्तरापोटुवया णक्खत्ते दो दिवसे एगं च इस प्रकार उत्तराभाद्रपद नक्षत्र दो दिन तथा एक रात्रि राइं चंदेण सद्धि जोयं जोएइ,
पर्यन्त चन्द्र के साथ योग युक्त रहता है । जोयं जोइत्ता अणुपरियट्टइ,
योग करके योग-मुक्त हो जाता है । जोयं अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं रेवईणं समप्पेइ, योग-मुक्त होकर सायंकाल में "उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में"
रेवती नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है ।
१ "अपार्ध-क्षेत्र पंचदशमुहूर्तम्" चन्द्र के साथ किसी भी नक्षत्र का योग यदि पन्द्रह मुहूर्त पर्यन्त रहता है तो वह “अपार्ध-क्षेत्र
योग" अर्थात् "आधा क्षेत्र योग' कहा जाता है। २ "इह पूर्वप्रोष्टपदानक्षत्रस्य प्रातश्चन्द्रण सह प्रथमतया योगः प्रबृत्त, इतीदं पूर्वभागमुच्यते”।
"इदं किलीत्तराभाद्रपदाख्यं नक्षत्रमुक्तप्रकारेण प्रातश्चन्द्र ण सहयोगमधिगच्छति । केवलं प्रथमान् पंचदश-मुहूर्तान् अधिकानपनीय
समक्षेत्र कल्पयित्वा यदा योगश्चिन्त्यते तदा नक्तमपि योगोअस्तीत्युभयभागमवसेयम् । ४ "उत्तरप्रोष्ठपदानक्षत्र खलुभयभागं द्वयर्धक्षेत्र पंचचत्वारिंशन्मुहूर्त, तत्प्रथमतया-योगप्रथमतया प्रातश्चन्द्रण सार्द्ध योगं युनक्ति,
तच्च, तथायुक्तं सततं सकलमपि दिवसमपरं च राशि ततः पश्चादपरं दिवसं यावद्वर्तते । ५ "द्वयर्द्ध क्षेत्र पंच-चत्वारिंशन्मुहर्तम्" चन्द्र के साथ किसी भी नक्षत्र का योग यदि पैंतालीस मुहूर्त पर्यन्त रहता है तो वह
"द्वयर्द्धक्षेत्रयोग अर्थात् डेढ़ क्षेत्रा योग" कहा जाता है।