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________________ सूत्र ११२४ तिर्यक्लोक : नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग का प्रारम्भ काल गणितानुयोग ६४३ . -- - णक्खत्ताणं चंदेण जोगारंभकालं नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग का प्रारम्भ काल१२४. प०-१. ता कहं ते जोगस्स आई ? आहिए त्ति वएज्जा, १२४. (१) प्र०—(नक्षत्रों का चन्द्र के साथ) योग की आदि (योग का प्रारम्भ) किस प्रकार होती है ? कहे, उ०–ता अभियी-सवणा खलु दुवे णक्खत्ता, पच्छाभागा उ०-अभिजित् और श्रवण-ये दोनों नक्षत्र "दिन के" समखित्ता', साइरेग-एगूणचत्तालिसइ मुहत्ता तप्पढ- पिछले भाग-सायंकाल में चन्द्र के साथ योग प्रारम्भ करते हैं, मयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएंति, तओ पच्छा उसके बाद कुछ अधिक एक दिवस अर्थात् कुछ अधिक उनचालीस अवरं साइरेग दिवसं । मुहूर्त "पर्यन्त" चन्द्र के साथ समक्षेत्र में योगयुक्त रहते हैं । एवं खलु अभियी-सवणा दुवे णक्खत्ता एगराई एगं च इस प्रकार अभिजित् और श्रवण-ये दो नक्षत्र एक रात्रि साइरेग दिवसं चंदेण सद्धि जोयं जोएंति, तथा कुछ अधिक एक दिवस' “पर्यन्त” चन्द्र के साथ योग युक्त रहते हैं। जोयं जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टन्ति, योग करके योग मुक्त हो जाते हैं, जोयं अणुपरियट्टित्ता सायं चंद धणिट्ठाणं समप्पेति, योगमुक्त होकर सायंकाल में “ये दोनों नक्षत्र" धनिष्ठा नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देते हैं। २. ता धणिवा खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तीसइ- (२) धनिष्ठा नक्षत्र “दिन के" पिछले भाग सायंकाल में मुहत्ते तप्पढमयाए सायं चदेण सद्धि जोयं जोएइ, तओ चन्द्र के साथ योग प्रारम्भ करता है, उसके बाद एक रात्रि तथा पच्छाराई अवरं च दिवसं । एक दिवस, अर्थात् तीस मुहूर्त "पर्यन्त" "चन्द्र के साथ" सम क्षेत्र में योग युक्त रहता है। एवं खलु धणिट्ठा णक्खत्ते एगं च राई एगं च दिवसं इस प्रकार धनिष्ठा नक्षत्र एक रात्रि और एक दिवस चंदेण सद्धि जोयं जोएइ, "पर्यन्त' चन्द्र के साथ योग युक्त रहता है । जोयं जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टइ, योग करके योग मुक्त हो जाता है। जोयं अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं सयभिसयाण समप्पेइ, योग से अलग होकर सायंकाल में "धनिष्ठा नक्षत्र" शतभि षक नक्षत्र को चन्द्र समर्पित कर देता है। १ "इह अभिजिन्नक्षत्र' न समक्षेत्र, नाप्यपार्धक्षत्र, नापि द्वयर्द्धक्षत्र, केवलं श्रवणनक्षत्रण सह सम्बद्धमुपात्तमित्यभेदोपचारात् तदपि समक्षेत्रमुपकल्प्य समक्षेत्रमित्युक्तम्"।। २ “सातिरेका नवमुहूर्ताः अभिजित् स्त्रिशन्मुहूर्ताः श्रवणस्येत्युभयमीलने यथोक्त मुहूर्तपरिमाणं भवति" । ३ "सायं-विकालवेलायां, इह दिवसस्स कतितमाच्चरमाद्भागादारभ्य यावद्रात्र कतितमो भागो यावन्नाद्यापि परिस्फुट-नक्षत्र मण्डलालोक स्तावान् कालविशेषः सायमिति विवक्षितो द्रष्टव्यः' । ४ "इहाभिजिन्नक्षत्र यद्यपि युगस्यादौ प्रातश्चन्द्रेण सह योगमुपैति, तथापि श्रवणेन सह सम्बद्धमिह तद्विवक्षित, श्रवणनक्षत्रं च मध्याह्लादूर्ध्वमपसरति दिवसे चन्द्रण सहयोगमुपादत्ते, ततस्तत्साहचर्यात् तदपि सायं समये चन्द्रेण युज्यमानं विवक्षित्वा सामान्यतः सायं चन्द्रेण सद्धि जोयं जोएंति' इत्युक्तम् । अथवा युगस्यादिमतिरिच्यान्यदा बाहुल्यमधिकृत्येदमुक्त ततो न कश्चिद्दोषः” । ५ एक रात तथा एक दिवस के तीस मुहर्त होते हैं, उनमें अभिजित् नक्षत्र के नौ मुहूर्त मिलाने पर उनचालीस मुहूर्त हो जाते हैं। ६ "एतावन्तं काल योगं युक्त्वा तदनन्तरं योगमनुपरिवर्तयते, आत्मनश्चयावयत इत्यर्थ," -सूर्य प्रज्ञप्ति की टीका से उद्धृत, ७ “समक्षेत्रे' त्रिंशन्मुहूर्तम्" चन्द्र के साथ किसी भी नक्षत्र का योग, यदि तीस मुहूर्त पर्यन्त रहता है तो वह “समक्षेत्र-योग" कहा जाता है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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