________________
६४२
लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : नक्षत्रों का सूर्य के साथ योगकाल
सूत्र ११२३
(ग) ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं,
(ग) इन अठावीस नक्षत्रों में-- . कयरे णक्खत्ता जे णं तेरस अहोरत्ते, बारस य मुहुत्ते कितने नक्षत्र हैं जो तेरह अहोरात्र और बारह मुहूर्त पर्यन्त सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ?
सूर्य के साथ योग करते हैं ? (घ) ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं,
(घ) इन अठाईस नक्षत्रों मेंकयरे णक्खत्ता जे णं वीसं अहोरत्ते, तिण्णि य मुहुत्ते कितने नक्षत्र हैं जो बीस अहोरात्र और तीन मुहूर्त पर्यन्त सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ?
सूर्य के साथ योग करते हैं ? उ०—(क) ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं,
उ०—(क) इन अठाईस नक्षत्रों में सेतत्थ जे ते णक्खत्ते जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते जो नक्षत्र चार अहोरात्र और छः मुहूर्त सूर्य के साथ योग
सूरेण सद्धि जोयं जोएंति, से णं एगे अभीयो । करता है वह एक अभिजित् है । (ख) ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं,
(ख) इन अठाईस नक्षत्रों में सेतत्थ जे ते णक्खता जे णं छ अहोरत्ते, एक्कवीसं च जो नक्षत्र छ अहोरात्र और इक्कीस मुहूर्त सूर्य के साथ योग मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं छ तं जहा- करते हैं वे छ हैं, यथा-(१) शतभिषक, (२) भरणी, १. सतभिसया, २. भरणी, ३. अद्दा, ४. अस्सेसा, (३) आर्द्रा, (४) अश्लेषा, (५) स्वाती, (६) ज्येष्ठा ।
५. सातो, ६. जेट्ठा। (ग) ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं,
(ग) इन अठाईस नक्षत्रों में सेतत्थ जे ते णक्खत्ता, जे गं तेरस अहोरत्ते दुवालस य जो नक्षत्र तेरह अहोरात्र और बारह मुहूर्त सूर्य के साथ योग मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति, ते गं पण्णरस तं जहा- करते हैं वे पन्द्रह है, यथा-(१) श्रवण, (२) धनिष्ठा, १. सवणो, २. धणिट्ठा, ३. पुव्वा भद्दवया, ४. रेवई, (३) पूर्वाभाद्रपद, (४) रेवती, (५) अश्विनी, (६) कृत्तिका, ५. अस्सिणी, ६. कत्तिया, ७. मग्गसिरं ८. पुस्सो, (७) मृगशिर, (८) पुष्य, (६) मघा, (१०) पूर्वाफाल्गुनी, ६. महा, १०. पुवाफग्गुणी, ११. हत्थो, १२. चित्ता, (११) हस्त, (१२) चित्रा, (१३) अनुराधा, (१४) मूल,
१३. अणुराहा, १४. मूलो, १५. पुव्वासाढा । (१५) पूर्वाषाढ़ा। (घ) ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्ख ताणं,
इन अठाईस नक्षत्रों में सेतत्थ जे ते णक्खत्ता, जे णं वीसं अहोरत्ते, तिण्णि य जो नक्षत्र बीस अहोरात्र और तीन मुहूर्त सूर्य के साथ योग महत्ते, सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं छ, तं जहा- करते हैं, वे छ हैं, यथा-(१) उत्तराभाद्रपद, (२) रोहिणी, १. उत्तराभवया, २. रोहिणी, ३. पुणव्वसू, ४. उत्तरा- (३) पुनर्वसु, (४) उत्तराफाल्गुनी, (५) विशाखा, (६) उत्तराफग्गुणी, ५. विसाहा, ६. उत्तरासाढा ।
षाढा । -सूरिय० पा० १०, पाहु० २, सु० ३४
१ (क) प०-एतेसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिईणक्खत्ते कति अहोरत्ते सूरेण सद्धि जोगं जोएइ ?
उ०-गोयमा ! चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोगं जोएइ, एवं इमाहिं गाहाहि अव्वंगाहाओ-अभिई छच्च मुहुत्ते चत्तारि अ केवले अहो रत्ते ।
सूरेण समं गच्छइ एत्तो सेसाण वोच्छामि ॥ १ ॥ सयभिसया भरणीओ अद्दा अस्सेस साइ जेट्टा य । वच्चंति मुहुत्ते इक्कवीस छच्चेवाहोरत्ते ।। २ ।। तिण्णेव उत्तराई पुणव्वसु रोहिणी विसाहा य । वच्चंति मुहुत्ते तिण्णि चेव वीसं अहोरत्ते ।। ३ ।। अवसेसा णक्खत्ता पण्णरसवि सूरसहगया जंति । वारस चेव मुहुत्ते तेरस य समे अहोरत्ते ।। ४ ।।
-जंबु. वक्ख. ७, सु. १६० (ख) चंद. पा. १०, सु. ।