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________________ सूत्र ११०५ तिर्यक् लोक : बारह पूर्णिमाओं और अमावस्याओं में चन्द्र के साथ नक्षत्रों का योग गणितानुयोग ६२७ दुवालसपुण्णिमासु अमावासासु य चदेण-णक्खत्त बारह पूर्णिमाओं और अमावास्याओं में चन्द्र के साथ संजोगो नक्षत्रों का योग१०५. १.५०-ता कह ते सण्णिवाए ? आहिए त्ति वएज्जा, १०५. (१) प्र० -(वारह पूणिमाओं और अमावास्याओं में चन्द्र के साथ नक्षत्रों का) सन्निपात योग किस प्रकार का है ? कहें। उ०-(क) ता जया णं साविट्ठी पुण्णिमा भवइ, उ०—(क) जब श्रावणी पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ तीन तया णं माही अमावासा भवइ । नक्षत्र (१) अभिजित्, (२) श्रवण, (३) धनिष्ठा) योग करते हैं तब माघी अमावास्या को (तीन नक्षत्र (१) अभिजित्, (२) अश्लेषा, (३) मघा चन्द्र के साथ) योग करते हैं। (ख) ता जया णं माही पुण्णिमा भवइ, (ख) जब माघी पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र तया णं साविट्ठी अमावासा भवइ । (१) अभिजित्, (२) अश्लेषा, (३) मघा) योग करते हैं तब श्रावणी अमावास्या को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र (१) अभिजित्, (२) श्रवण, (३) धनिष्ठा) योग करते हैं । २. (क) ता जया णं पुट्ठवइ पुण्णिमा भवइ, (२) (क) जब भाद्रपदी पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ तीन तया णं फग्गुणी अमावासा भवइ । नक्षत्र (१) पूर्वाभाद्रपद, (२) उत्तराभाद्रपद, (३) शतभिषक्) योग करते हैं तब फाल्गुनी अमावास्या को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र (१) पूर्वाफाल्गुनी, (२) उत्तराफाल्गुनी, (३) शतभिषक्) योग करते हैं। (ख) ता जया णं फग्गुणी पुण्णिमा भवइ, (ख) जब फाल्गुनी पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र तया णं पुट्ठवई अमावासा भवइ । (१) पूर्वाफाल्गुनी, (२) उत्तराफाल्गुनी, (३) शतभिषक्) योग करते हैं तब भाद्रपदी अमावास्या को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र (१) पूर्वाभाद्रपद, (२) उत्तराभाद्रपद, (३) शतभिषक्) योग करते हैं। ३. (क) ता जया णं आसोई पुण्णिमा भवइ, (३) (क) जब आसोजी पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ दो तया णं चेती अमावासा भवइ । नक्षत्र (१) अश्विनी, (२) रेवती) योग करते हैं तब चैनी अमावास्या को (चन्द्र के साथ दो नक्षत्र (१) हस्त, (२) चित्रा) योग करते हैं । (ख) ता जया णं चेत्ती पुण्णिमा भवइ, (ख) जब चैत्री पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ दो नक्षत्र तया णं आसोई अमावासा भवइ । (१) हस्त, (२) चित्रा) योग करते हैं तब आसोजी अमावास्या को (चन्द्र के साथ दो नक्षत्र (१) अश्विनी, (२) रेवती) योग करते हैं। ४. (क) ता जया णं कत्तियो पुण्णिमा भवइ, (४) (क) जब कार्तिकी पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ दो नक्षत्र तया णं वेसाही अमावासा भवइ । (१) भरणी, (२) कृत्तिका) योग करते हैं तब वैशाखी अमावास्या को (चन्द्र के साथ दो नक्षत्र (१) विशाखा, (२) स्वाती) योग करते हैं। (ख) ता जया णं वेसाही पुण्णिमा भवइ, (ख) जब वैशाखी पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ दो नक्षत्र तया णं कत्तियी अमावासा भवइ । (१) विशाखा, (२) स्वाती) योग करते हैं तब कातिकी अमा वास्या को (चन्द्र के साथ दो नक्षत्र (१) भरणी, (२) कृत्तिका) योग करते हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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