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________________ ६२८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक्लोक : वर्षा हेमन्त और ग्रीष्म के दिन-रात पूर्ण करने वाले नक्षत्रों की संख्या सूत्र ११०५-११०६ (क) ता जया गं मग्गसिरी पुण्णिमा भवइ, (५) (क) जब मार्गसिरी पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ तीन तया णं जेट्टामूली अमावासा भवइ । नक्षत्र (१) अनुराधा, (२) रोहिणी, (३) मृगशिरा) योग करते हैं तब ज्येष्ठामूली अमावास्या को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र (१) अनुराधा, (२) ज्येष्ठा, (३) मूल) योग करते हैं । (ख) ता जया गं जेट्ठामूली पुण्णिमा भवइ, (ख) जब ज्येष्ठामूली पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र तया णं मग्गसिरी अमावासा भवइ । (१) अनुराधा, (२) ज्येष्ठा, (३) मूल) योग करते हैं तब मार्ग सिरी अमावास्या को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र (१) अनुराधा, (२) रोहिणी, (३) मृगशिरा) योग करते हैं । ६. (क) ता जया णं पोसी पुण्णिमा भवइ, (६) (क) जब पौषी पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र तया णं आसाढी अमावासा भवइ । (१) आा, (२) पुनर्वसु, (३) पुष्य) योग करते हैं तब आषाढी अमावास्या को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र (१) आर्द्रा, (२) पूर्वा षाढा, (३) उत्तराषाढा) योग करते हैं । (ख) ता जया गं आसाढी पुण्णिमा भवइ, ____ जब आषाढी पूर्णिमा को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र, तया णं पोसी अमावासा भवइ ।' (१) आर्द्रा, (२) पूर्वाषाढा, (३) उत्तराषाढा) योग करते हैं तब पोषी अमावास्या को (चन्द्र के साथ तीन नक्षत्र (१) आर्द्रा, -सूरिय. पा. १०, पाहु. ७, सु. ४० (२) पुनर्वसु, (३) पुष्य) योग करते हैं । वास-हेमन्त-गिम्ह-राइंदियाणं वर्षा हेमन्त और ग्रीष्म के दिन-रात पूर्ण करने वाले नक्षत्रों की संख्या१०६. ५०-(क) ता कहं ते णेता? आहिए त्ति वएज्जा, १०६. (१) प्र०-वर्षा , हेमन्त और ग्रीष्म के दिन-रात कितने नक्षत्र पूर्ण करते हैं ? कहें । (ख) १. ता वासाणं पढमं मासं कति णक्खत्ता गति? वर्षा ऋतु के प्रथम मास को कितने नक्षत्र पूर्ण करते हैं ? उ.- ता चत्तारि णक्खत्ता णेति, तं जहा–१. उत्तरा- उ०-चार नक्षत्र पूर्ण करते हैं, यथा-(१) उत्तराषाढा, साढा, २. अभिई, ३. सवणो, ४. धणिट्ठा, (२) अभिजित्, (३) श्रवण, (४) धनिष्ठा । १. उत्तरासाढा चोद्दस अहोरत्ते णेइ, (१) उत्तराषाढा चौदह अहोरात्र पूर्ण करता है । २. अभिई सत्त अहोरत्ते णेइ, (२) अभिजित् सात अहोरात्र पूर्ण करता है। ३. सवणे अट्ठ अहोरत्ते णेइ, (३) श्रवण आठ अहोरात्र पूर्ण करता है । ४. धणिट्ठा एगं अहोरत्तं णेइ, (४) धनिष्ठा एक अहोरात्र पूर्ण करता है। तंसि णं मासंसि चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए उस मास में चार अंगुल पौरुषी छाया से सूर्य परिभ्रमण अणुपरियट्टइ। करता है। तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पादाइं चत्तारि उस मास के अन्तिम दिन में दो पैर और चार अंगुल य अंगुलाणि पोरिसी भवइ, पौरुषी होती है। १०-२. ता वासाणं बितियं मासं कति णक्खत्ता ऐति ? (२) प्र०-वर्षा ऋतु के द्वितीय मास को कितने नक्षत्र पूर्ण करते हैं ? उ०- ता चत्तारि णक्खत्ता णेति तं जहा--१. धणिट्ठा, उ.-चार नक्षत्र पूर्ण करते हैं यथा-(१) धनिष्ठा, २. सतभिसया, ३. पुटबपोट्टवया, ४. उत्तरपोढवया, (२) शतभिषक, (३) पूर्वाभाद्रपद, (४) उत्तराभाद्रपद । १ (क) चन्द. पा. १० सु. ४० । (ख) जम्बु, वक्ख. ७ सू १६१ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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