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________________ ६२० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : नक्षत्रों का पूर्वादिभागों से योग क्षेत्र और काल प्रमाण सूत्र १०६६ अस्थि णक्खत्ता पच्छंभागा, समखेत्ता तीसह मुहत्ता (ख) कुछ नक्षत्र हैं जो दिन के अन्तिम भाग में (चन्द्र के पण्णत्ता। साथ) समक्षेत्र में तीस मुहूर्त पर्यन्त योग करने वाले कहे गये हैं। अस्थि णक्खत्ता णतंभागा अवड्ढ खेत्ता पण्णरस- (ग) कुछ नक्षत्र हैं जो चन्द्र के साथ रात्रि के प्रारम्भ में मुहुत्ता पण्णत्ता। (चन्द्र के साथ) आधे क्षेत्र में पन्द्रह मुहूर्त पर्यन्त योग करने वाले कहे गये हैं। अस्थि णक्खत्ता उभयं भागा दिवड्ढ खेत्ता, (घ) कुछ नक्षत्र हैं जो चन्द्र के साथ प्रथम दिन के प्रारम्भ पणयालीसं महत्ता पण्णत्ता। से दूसरे दिन के सायंकाल तक डेढ़ क्षेत्र में पैतालीस मुहूर्त पर्यन्त योग करने वाले कहे गये हैं । ५०-(क) ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ता णं, प्र०—(क) इन अट्ठाईस नक्षत्रों मेंकयरे गक्खत्ता पुग्वं भागा, सम खेत्ता, तीसइ- कितने नक्षत्र हैं जो दिन के प्रारम्भ में चन्द्र के साथ सममुहुत्ता पण्णता? क्षेत्र में तीस मुहूर्त पर्यन्त योग करते हैं ? ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं, (ख) इन अट्ठाईस नक्षत्रों मेंकयरे णक्खत्ता पच्छंभागा समखेत्ता तीसइ-मुहुत्ता कितने नक्षत्र हैं जो दिन के अन्तिम भाग में (चन्द्र के साथ) पण्णत्ता? समक्षेत्र में तीस मुहूर्त पर्यन्त योग करने वाले कहे गये हैं ? ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं, (ग) इन अट्ठाईस नक्षत्रों मेंकयरे णक्खत्ता, णतंभागा अवड्ढखेत्ता पण्णरस- कितने नक्षत्र हैं जो रात्रि के प्रारम्भ में (चन्द्र के साथ) मुहुत्ता पण्णता? आधे क्षेत्र में पन्द्रह मुहूर्त योग करने वाले कहे गये हैं ? ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं, (घ) इन अट्ठाईस नक्षत्रों मेंकयरे णक्खत्ता उभयंभागा दिवड्ढ खेत्ता, पणया- कितने नक्षत्र हैं जो प्रथम दिन के प्रारम्भ से दूसरे दिन के लोसं-मुहुत्ता पण्णता? सायंकाल तक डेढ़ क्षेत्र में पैतालीस मुहूर्त पर्यन्त योग करने वाले कहे गये हैं। उ०-(क) ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं, उ०—(क) इन अट्ठाईस नक्षत्रों मेंतत्थ जे ते णक्खत्ता पुन्वं भागा, समखेत्ता, तीसइ जो दिन के प्रारम्भ में (चन्द्र के साथ) समक्षेत्र में तीस मुहुत्ता पण्णत्ता, ते णं छ; तं जहा–१. पुब्वा मुहूर्त पर्यन्त योग करने वाले हैं वे छह हैं, यथा-(१) पूर्वाभाद्र. पोट्ठवया, २. कत्तिया, ३. महा, ४. पुव्वाफग्गुणी, पद, (२) कृत्तिका, (३) मघा, (४) पूर्वाफाल्गुनी, (५) मूल, ५. मूलो, ६. पुव्वासाढा। (६) पूर्वाषाढा । ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं, (ख) इन अट्ठाईस नक्षत्रों मेंतत्थ जे ते णक्खत्ता पच्छं भागा समक्खेत्ता तीसइ जो दिन के अन्त में (चन्द्र के साथ) समक्षेत्र में तीस मुहूर्त मुहुत्ता पण्णत्ता, ते णं दस, तं जहा-१. अभिई, पर्यन्त योग करने वाले हैं, वे दश हैं, यथा-(१) अभिजित, २. सवणो, ३. धणिट्ठा, ४. रेवई, ५. अस्सिणी, (२) श्रवण, (३) धनिष्ठा, (४) रेवती, (५) अश्विनी, (६) मृग६. मिगसिरं, ७. पूसो, ८. हत्थो, ६. चित्ता, शिरा, (७) पुष्य, (८) हस्त, (६) चित्रा, (१०) अनुराधा । १०. अणुराहा। ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं, (ग) इन अट्ठाईस नक्षत्रों मेंतत्थ जे ते णक्खत्ता णतंभागा अवड्ढखेत्ता पण्ण- जो रात्रि के प्रारम्भ में (चन्द्र के माथ) आधे क्षेत्र में पन्द्रह रस-मुहुत्ता पण्णत्ता, ते णं छ, तं जहा-१. सय- मुहूर्त पर्यन्त योग करने वाले हैं, वे छह हैं, यथा-(१) शतभिषक, भिसया, २. भरणी, ३. अद्दा, ४. अस्सेसा, (२) भरणी, (३) आर्द्रा, (४) अश्लेषा, (५) स्वाती, ५. साती, ६. जेट्टा। (६) ज्येष्ठा।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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