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________________ सूत्र १०६८ - १०६६ ६. तिर्यक्लोक नक्षत्रों का पूर्वादिभागों से योग क्षेत्र और काल प्रमाण गणितानुयोग कुलं वा जोएड उपकूलं वा जोए नो सम्भ कुलोवकुलं, १. कुलं जोएमा रोहिणी जोड. उ० wwwwww २. उवकुलं जोएमाणे मग्गसिरे णक्खते जोएइ, ता जेट्टामूली अमावासं कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ, कुलेण वा जुत्ता, उवकुलेण वा जुत्ता जेट्टामूली अमावासा जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया, १२. ५० - ता आसाढ अमावासं किं कुलं जोएइ, उबकुलं जोएड. कुलोकुल जोए ? उ०- कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ, कुलोबकुलं वा जोएड. १. कुलं जोएमाणे अद्दा णक्खत्ते जोएइ, २. उवकुलं जोएमाणे पुणव्वसू णक्खत्ते जोएइ, २. कुलो जीएमागे पुरसे गर जोएड. ता आसाढ अमावासं कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोए लोकुवा जोएड कुलेण वा जुत्ता, उयकुलेण वा जुत्ता, कुलोकुले वा जुत्ता, आसाढ अमावासा जुत्तात्ति वत्तव्वं सिया' यूरिय. पा. १० पाहू. ६, सु. ३६ खत्ताणं वाइभागा खेत्त कालप्यमाणं व पता एवं भागा ? आहिए सि एग्जा (क) ता एएसि णं अट्ठावीसाए गक्खत्ताणं, अस्थि णक्खत्ता पुग्वंभागा, समखेत्ता तीसइ मुहुत्ता पण्णत्ता । १ (क) जंबु० वक्ख० ७ सु० १६१ । ६१ε उ०- कुलसंज्ञक नक्षत्र योग करता है और उप नक्षत्र योग करता है किन्तु कुलोपकुलसंज्ञक नक्षत्र योग नहीं करता है ? ( १ ) कुलसंज्ञक नक्षत्र योग करे तो रोहिणी नक्षत्र योग करता है । ( २ ) उपकुल संज्ञक नक्षत्र योग करे तो मृगसिर नक्षत्र योग करता है । इस प्रकार ज्येष्ठामूली अमावास्या को कुलसंज्ञक नक्षत्र योग करता है और उपकुलसंज्ञक नक्षत्र योग करता है । कुलसंज्ञक नक्षत्र और उपकुलसंज्ञक नक्षत्र में से किसी एक नक्षत्र का ज्येष्ठामूली अमावास्या को योग होने पर वह उसी नक्षत्र से युक्त कही जाती है । (१२) प्र० - आषाढी अमावस्या को क्या कुलसंज्ञक नक्षत्र योग करता है, उपकुलसंज्ञक नक्षत्र योग करता है कुलोपकुलसंज्ञक नक्षत्र योग करता है ? उ०- कुलसंज्ञक नक्षत्र योग करता है, उपकुलसंज्ञक नक्षत्र योग करता है और कुलोपकुलसंज्ञक नक्षत्र भी योग करता है । ( १ ) कुलसंज्ञक नक्षत्र योग करे तो आर्द्रा नक्षत्र योग करता है । (२) उपकुलसंज्ञक नक्षत्र योग करे तो नक्षत्र योग करता है । (३) कुलोपनक्षत्र योग करे तो पुष्य नक्षत्र योग करता है । इस प्रकार आषाढी अमावस्या को कुलसंज्ञक नक्षत्र योग करता है, उपकुलसंज्ञक नक्षत्र योग करता है और कुलोपकुल संज्ञक नक्षत्र भी योग करता है । कुलसंज्ञक नक्षत्र, उपकुलसंज्ञक नक्षत्र और कुलोपकुलसंज्ञक नक्षत्र में से किसी एक नक्षत्र का आषाढी अमावस्या को योग होने पर वह उसी क्षण से युक्त कही जाती है। नक्षत्रों का पूर्वादिभागों से योग क्षेत्र और काल प्रमाण६६. प्र०- ( नक्षत्रों का ) पूर्वादिभागों से योग ( क्षेत्र और काल प्रमाण) कैसा है ? कहें । उ०- (क) इन] अट्ठाईस नक्षत्रों में कुछ नक्षत्र हैं जो दिन के प्रारम्भ में (चन्द्र के साथ) समक्षेत्र में तीस मुहूर्त पर्यन्त योग करने वाले कहे गये हैं । (ख) चंद० पा० १० सु० ३६ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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