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________________ गणितानुयोग : प्रस्तावना ४६ जब कभी कोई नवीन गणितीय कल्पना उपयोगी पाई जाती अर्थशास्त्र जैसे कुछ सामाजिक विज्ञान हैं जिनका कार्य ऐसे है तो उसके आधार पर एक उपरिव्यूहन उदित हो जाता है। तथ्यों से चलता है जिन्हें बहुधा संख्याओं द्वारा निरूपित करते बाद में उक्त मौलिक कल्पना यदि स्खलित सिद्ध होने लगे तो हैं। समस्त जनसमूहों के गणितीय विश्लेषण की सूचना देते हुए उपरिव्यूहन को बिना मिटाये उस कल्पना को सुधारने का प्रयास इन संख्याओं को सम्बन्धित करने वाले तकनीक सामने आये हैं। किया जाता है। अनन्तात्मक राशियों के सम्बन्ध में बहुत कुछ शिक्षण पद्धतियों के विश्लेषण और पूजी निवेश का प्रोग्राम ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हुई । उनके अल्पबहुत्व के प्रकरण आधु- बनाने में जो कुछ समस्यायें आती हैं वे गणितीय रूप से हल की निक गणित में अभी भी उलझे हुए हैं। राशि सिद्धान्त और जाती हैं। समाजशास्त्र विषय की खोज के दो क्षेत्र हैं। एक तो अनन्तों के जन्मदाता उन्नीसवीं सदी के अन्त में जार्ज केन्टर यह कि समाज की प्रणालियाँ किस प्रकार कार्य करती हैं तथा माने जाते हैं, परन्तु राशि सिद्धान्त को पुनर्गठित करने वाले उनके विभिन्न अंगों के बीच क्या सम्बन्ध हैं। दूसरा क्षेत्र उनके ' विभिन्न विचारधाराओं वाले विश्वविख्यात गणितज्ञ रसेल, ब्रोवर, नियन्त्रण और नीति निर्धारण का है। इन दोनों क्षेत्रों में एक से । और हिल्बर्ट हैं । उनकी विचारधाराएँ क्रमशः तर्क, अन्तःप्रज्ञा प्रकार के गणितों का प्रयोग हुआ है। अर्थव्यवस्था गणित द्वारा : और औपचारिकता पर आधारित हैं । इस प्रकार गणितीय बुनि- एक ऐसी प्रणाली के रूप में देखी जा सकती है जो सूचना को : यादों पर तीव्र कार्य हुआ है। निर्णयों में रूपान्तरित कर देती है। भौतिकशास्त्र में गणित के समूह-सिद्धान्त या ग्रूप-थियोरी टेक्नालाजी में गणित का सर्वाधिक अग्रसर प्रयोग ऐसी मशीनों द्वारा मूलभूत कणों का निदर्शन होता है। । समूह-रूपान्तरणों द्वारा की डिजायन में होता है जो अपने आप को स्वयं नियंत्रित करती भौतिक जगत की वास्तविकताओं का पता लगाया जाता है कि वे सीडी विजिवित आ रजनों कौन से द्रव्य और गुण हैं जो घटनाओं के परिवर्तन में अक्षुण्ण, विधि के नियन्त्रण से सम्बन्धित होती हैं। अन्य विस्तृत सिद्धांतों Manावर, अपरिवर्ती बने रहते हैं । आइंस्टाइन ने सापेक्षता सिद्धान्त की भांति नियन्त्रण सिद्धान्त गणितीय वैज्ञानिक अथवा तकनीकी को मूर्तिक कल्पनाओं के सहारे अमूर्तिक कल्पना और व्यापकी विधियों के मिश्रण के बजाय मनोस्थिति का सिद्धान्त है। नियंकरण द्वारा अमरत्व प्रदान किया। इसी प्रकार जाँ का नायाँ ने त्रण समस्याएं जो टेक्नालाजी, अर्थशास्त्र, औषधि और राजनीति हिसाबर्ट आदि के स्पोक्ट्रल सिद्धान्त को व्यापक बनाकर असीम में आती हैं वे मल्टीस्टेज डिसीजन प्रोसेस कहलाती है। इन सभी क्षेत्र प्रदान किया। में गणित का उपयोग हुआ है । जीवविज्ञानवेत्ता श्री गणित का उपयोग करते हैं किन्तु जिन जटिल प्रणालियों का ये अध्ययन करते हैं वे गणितीय विवरण ___ गणक मशीनों (काम्प्यूटर्स) से उच्च गतिशील अंकगणना में प्रतिवेध लाती हैं। जीव रसायन में ऊष्मागतिविज्ञान के द्वारा गणित के प्रयोगों की आवश्यकता की पूर्ति हुई है। सबसे गणितीय समीकरण लगते हैं और सांख्यिकी के तकनीक से आनु बड़ी इलेक्ट्रानिक गणक मशीनों में स्मृति-क्षमता प्रायः एक अरब बंशी विज्ञान सम्बन्धी खोजें हुई हैं । गणक मशीनों में आज केन्द्र शब्दों या कई लाख व्यक्तिगत द्विचर अंक रहती है । ऐसी स्मृतिभूत धारणा "आटोमेटन" सिद्धान्त की है ताकि वह मस्तिष्क की भांति विचार कर सके । पाक मशीनें वहाँ अधिक उपयोगी द्रुतता एक माइक्रो सेकण्ड होती है। यह भविष्य में कई सिद्ध हुई हैं जहाँ उच्च गतिशील यानों या मशीनों में जटिल गुना बढ़ जायगी । अब माइक्रो इलेक्ट्रानिक परिपथ का उपयोग निर्वाय शीघ्रातिशीघ्र लेने पड़ते हैं। होने से हजार गुनी छोटी गणक मशीनें बनने लगी हैं। ३. वैदिक, जैन एवं बौद्ध संस्कृति में गणित का महत्व भारत में वैदिक संस्कृति के साथ साथ श्रमण संस्कृति संस्कृत एवं वैदिक संस्कृति के अध्ययन व अनुसन्धान के लिये स्वतन्त्र रूप से विकशित हुई कही जाती है। अनेक स्थलों पर मिथिला विद्यापीठ, प्राकृत एवं जैन तत्वज्ञान तथा अहिंसा विषयक बैदिक ग्रन्थ पुराणों में मिलता-जुलता कुछ जैन तीर्थंकरों का स्नातकोत्तर अध्ययन व अनुसंधान के लिए वैशाली विद्यापीठ, बिबरण मिलता है । वैदिक, जैन एवं बौद्ध संस्कृतियां भारत में तथा पालि एवं बौद्ध तत्वज्ञान के लिये नव नालन्दा महाविहार की प्रायः समान रूप से पनपती रहीं और उनके साहित्यादि पर शोध स्थापना की गई। शासन का यह दृष्टिकोण उदात्त एवं श्रेयस्कर. करने हेतु बिहार सरकार ने तीन शोध केन्द्र स्थापित किये। मान्य हुआ है। १ देखिये, डा. हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, भोपाल, १९६२, पृ० ११ आदि ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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