________________
सूत्र १०६६
उ०
तिर्यक्लोक : नक्षत्रों के कुल, उपकुल और कुलोपकुल
णक्खत्ताणं कुलोवकुलाइ
नक्षत्रों के कुल उपकुल और कुलोपकुल
१६. १० – ता कहं ते कुला ('उवकुला, कुलोवकुला') ? आहिए ति ९६. प्र० - ( नक्षत्रों के) कुल ( उपकुल और कुलोपकुल) किस
वएज्जा
प्रकार हैं ? कहें ।
- तत्थ खलु इमे बारस कुला, बारस उवकुला, चत्तारि कुलोवकुला पण्णत्ता ।
उ०
2
बारसकुला पण्णत्ता, तं जहा - १. धणिट्ठा कुलं, २. उत्तराय, २. असिमीकुल ४. कलिया कुलं ५. मिसिरकुलं ६. पुरसाकुल ७. महाकुल ८. उत्तराणी. चित्ताकुलं १०. दिसाहा कुलं, ११. मूलाकुलं, १२. उत्तरासाढाकुलं । बारस उवकुला पण्णत्ता; तं जहा - १. सवणो उवकुलं, २. पुण्यापोवा उबकुल ३. रेवई उपकुल ४. भरणी उबकुलं ५. रोहिणी उबकुल ६. पुणत्वसु उबकुलं ७. अस्सेसा उबकुलं, ८ पुव्वाफरगुणी उबकुलं, ६. हत्थो उवकुलं, उवकुलं, यो कुल १०. साली कुल ११. जेट्टा उवकुल १२ साउ
1
चत्तारि कुलोवकुला पण्णत्ता; तं जहा - १. अभियो कुलोकुल २ सप्तभिसा कुलोयकुलं, २. अद्दा कुलोवकुलं, ४. अणुराहा कुलोवकुला । "
वि. पा. १० पाहू. ५. सु. १७
-
गणियोग
उ०- ( अठाईस नक्षत्रों में) ये बारह कुल संज्ञक नक्षत्र हैं, बारह उपकुल संज्ञक नक्षत्र है, और चार कुलोपकुल संज्ञक नक्षत्र हैं ।
६०६
बारह कुल ( संज्ञक नक्षत्र) कहे गये हैं; यथा - ( १ ) धनिष्ठाकुल (२) उत्तराभाद्रपदल, (२) अश्विनीकुल (४) कृत्तिका कुल, (५) मृगसिराकुल, (६) पुष्यकुल, (७) मधाकुल, (८) उत्तराफाल्गुनीकुल, (२) विवाकुल, (१०) विशाखाकुल, (११) मूलकुल, (१२) उत्तराषाढाकुल ।
बारह उपकुल ( संज्ञक नक्षत्र) हैं; यथा – (१) श्रवण उपकुल, (२) पूर्वाभाद्रपद उपकुल, (२) रेवती उपकुल (४) भरणी उपकुल (५) रोहिणी उपकुल (७) पुनर्वसु उपकुल, (७) अश्लेषा उपकुल, (८) पूर्वाफाल्गुनी उपकुल, (६) हस्त उपकुल, (१०) स्वाती उपकुल, (११) ज्येष्ठा उपकुल, (१२) पूर्वाषाढा उपकुल ।
चारलोपल (संज्ञक नक्षत्र है, यथा (१) अभिजित् कुलोपकुल, (२) शतभिषक् लोपकुल (३) आर्द्रा कुल (४) अनुराधा कुलोपकुल ।
१ सूर्य प्रज्ञप्ति में प्रस्तुत प्रश्नसूत्र खण्डित है, अतः कोष्ठक के अन्तर्गत “उवकुला, कुलोवकुला" अंकित करके उसे पूरा किया है, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वक्ष० ७ सूत्र १६१ में, यह प्रश्नसूत्र इस प्रकार है ।
प्र० - कति णं भंते ! कुला ? कति उबकुला ? कति कुलोवकुला पण्णत्ता ?
-गोयमा ! बारसकुला, बारस उवकुला, चत्तारि कुलोवकुला पण्णत्ता |
शेष पाठ सूर्य प्रज्ञप्ति के समान है, किन्तु जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के इस प्रश्नोत्तर सूत्र में बारह कुल नक्षत्रों के नामों के बाद कुलादि के लक्षणों की सूचक एक गाथा दी गई है जो सूर्यप्रज्ञप्ति की टीका में भी उद्धृत है और यह गाथा प्रस्तुत संकलन में भी उद्धृत है ।
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के संकलन कर्ता यदि यह गाथा प्रस्तुत सूत्र के प्रारम्भ में वा अन्त में देते तो अधिक उपयुक्त रहती । २ बाहा मासा परिणामा, होति कुला, उबकुला उहेट्टिमगा ।
होति पुण कुलोवकुला, अभियी सयभिसय अद्द - अणुराहा ॥ १ " कि कुलादिनां लक्षणं ?
-
- जम्बु० वक्ख० ७, सू० १६१
7
उच्यते-मासानां परिणामानि परिसमापकानि भवन्ति कुलानि को अर्थ ? इह यैर्नक्षत्र : प्रायो मासानां परिसमाप्तयः उपजायन्ते मासन नामानि च तानि नक्षत्राणि कुलानीति प्रसिद्धानि"
" कुलानामधस्तनानि नक्षत्राणि श्रवणादीनि उपकुलानि कुलानां समीपमुपकुलम् तत्र वर्तन्ते यानि नक्षत्राणि तान्युपचारादुपलादि" ।
" यानि कुलानामुपकुलानां चाधस्तानि तानि कुलोपकुलानि "
३ चंद्र० पा० १०, सु० ३७ ।
- जम्बू ०
० टीका०