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________________ ६०८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : नक्षत्रों के दिशा द्वार (घ) अभिइयादिया सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पणता तं जहा - १. अभिई, २. सवगो, २. धणि, ४. सतभिसया १. पृथ्वभक्या . उत्तरभयया ७. रेवई, ५. तत्थ णं जे ते एवमाहंसु (क) ता भरणियादीया सत्त णक्खत्ता पुव्ववारिया पण्णत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा - १. भरणी, २. कतिया, ३. रोहिणी, ४. संठाणा, ५. अद्दा, ६. पुणव्वसु, ८. पुरुसो, , (ख) अस्सादीया सत्त पक्वता दाहिणदारिया पातं जहा - १. अस्सा, २. महा ३. पुण्या फग्गुणी, ४. उत्तराफल्गुण ५. यो ६. विसा, ७. साई, (ग) विसाहादीया सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया पण्णत्ता; तं जहा - १. बिसाहा, २. अणुराहा, ३. जेट्ठा, ४. मूलो, ५. पुण्यासादा, ६. उत्तरासादा, ७. अभिई, (घ) सवणादीया सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा - १. सवणो, २. धणिट्ठा, ३. सतभिसया, ४. पुव्वापोट्ठवया, ५. उत्तरापोट्ठवया, ६. रेवई, ४. अस्सिणी, वयं पुण एवं वयामो (क) ता अभीईयादीया सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता; तं जहा - १. अभिई, २. सवणो, ३. धणिट्ठा, ४. सतभिसया, २. पुवापोटुवया, ६. उत्तरायोवया, ७. रेवई । (ख) अस्तिषोआदीया सत्स भरणा दाहिणदारिया पण्णत्ता; तं जहा - १ अस्सिणी, २. भरणी, २. कणि ४. रोहिणी, ५. संठाणा, ६. अद्दा, , ७. (ग) पुस्सादीया सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया पण्णत्ता तं जहा १ पुसो, २. अस्सा, ३. महा ४. पुण्या फगुणी, ३. उत्तरागुणी, ६. हत्थो, ७. पिता। (घ) साइआदीया सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता तं जहा १. साई २. विवाहा, २. अनुराह ४. जेट्ठा, ५. मूले, ६. पुव्वासाढा, ७. उत्तरासाढा । - सूरिय. पा. १०, पाहु. २१, सु० ५ε सूत्र १०६५ (४) अभिजित् आदि सात नक्षत्र उत्तर दिशा के द्वार वाले कहे गये हैं, यथा-(१) अभिजित्, (२) श्रवण, (२) धनिष्ठा, (४) शतभिषक् (५) पूर्वाभाद्रपद, (६) उत्तराभाद्रपद, (७) रेवती । उनमें से जो इस प्रकार कहते हैं (१) भरणी आदि सात नक्षत्र पूर्व दिशा के द्वार वाले कहे गये हैं, वे इस प्रकार कहते हैं, यथा - ( १ ) भरणी, (२) कृत्तिका, (३) रोहिणी, (४) मृगशिर, (५) आर्द्रा, (६) पुनर्वसु, (७) पुष्य । (२) अश्लेषा आदि सात नक्षत्र दक्षिण दिशा के द्वार वाले कहे गये हैं, दवा - (१) अश्लेषा, (२) मघा, (३) पूर्वाफाल्गुनी, (४) उत्तराफाल्गुनी, (५) हस्त, (६) चित्रा, (७) स्वाति । (३) विशाखा आदि सात नक्षत्र पश्चिम दिशा के द्वार वाले कहे गये हैं, यथा - ( १ ) विशाखा, (२) अनुराधा, (३) ज्येष्ठा, (४) मूल, (५) पूर्वाषाढा (६) उत्तराषाढा (७) अभिि (४) श्रवण आदि सात नक्षत्र उत्तर दिशा के द्वार वाले कहे गये हैं, यथा – (१) श्रवण, (२) धनिष्ठा, (३) शतभिषक्, (४) पूर्वाभाद्रपद, (६) रेवती, (७) अश्विनी । - हम फिर इस प्रकार कहते हैं - (१) अभिजित् आदि सात नक्षत्र पूर्व दिशा के द्वार वाले कहे गये हैं, यथा - ( १ ) अभिजित्, (२) श्रवण, (३) धनिष्ठा, (४) शतभियक्, (५) पूर्वाभाद्रपद, (६) उत्तराभाद्रपद, (७) रेवती । (२) अश्विनी आदि सात नक्षत्र दक्षिण दिशा के द्वार वाले कहे गये हैं, यथा - ( १ ) अश्विनी, (२) भरणी, (३) कृत्तिका, (४) रोहिणी, (५) मृगशिर (६) आर्द्रा, (७) पुनर्वसु । (३) पुष्य आदि सात नक्षत्र पश्चिम दिशा के द्वार वाले कहे गये हैं, यथा- (१) पुष्य, (२) अश्लेषा (२) मधा (४) पूर्वाफाल्गुनी (५) उत्तराफाल्गुनी, (६) हस्त, (७) चित्रा 1 (४) स्वाति आदि सात नक्षत्र उत्तर दिशा के द्वार वाले कहे गये है, यथा- (१) स्वाति, (२) विशाखा (३) अनुराधा (४) ज्येष्ठा, (५) मूल, (६) पूर्वाषाढा, (७) उत्तराषाढा । १ (क) ठाणं अ० ७ सु० ५८६ में नक्षत्रों के जो दिशा द्वार कहे गये हैं वे स्वमान्यता के सूचक हैं । (ख) चंद० पा० १० सु० ५६ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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