________________
सूत्र १०६३
तिर्यक्लोक : नक्षत्रों के संस्थान
गणितानुयोग
५६९
२७. ५०–ता पुब्वासाढा णक्खत्ते कि सठिए पण्णत्ते ?
उ०-गयविक्कम संठिए पण्णत्ते, २८. ५०–ता उत्तरासाढा णक्खत्त कि संठिए पण्णत्त ?
(२७) प्र०-पूर्वाषाढा नक्षत्र का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है ?
उ.--'गजगति' जैसा संस्थान कहा गया है ।
(२८) प्र०-उत्तराषाढा नक्षत्र का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है ?
उ०–'बैठे हुए सिंह जैसा संस्थान कहा गया है।
उ०—सीहनिसाइय संठिए पण्णत्त,
-सूरिय. पा. १०, पाहु.८, सु. ४१
१ (क) प०-एएसि ण भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभीई णक्खत्ते कि सठिए पण्णत्ते ?
उ०-गोयमा ! गोसीसावलिसंठिए पण्णत्ते, गाहाओ-(१) गोसीसावलि, (२) काहार, (३) सउणी, (४) पुप्फोवयार, (५-६) वावी य ।
(७) णावा, (८) आसक्खधग, (६) भग, (१०) छुरघरए, अ (११) संगडुद्धी ।। (१२) मिगसीसावली, (१३) रूहिरबिंदु, (१४) तुल्ल, (१५) बद्धमाणग, (१६) पडागा। (१७) पागारे, (१८.१६) पलिअंके, (२०) हत्थे, (२१) मुहफुल्लए चेव ।। (२२) खीलग, (२३) दामणी, (२४) एगावली य, (२५) गयदंत, (२६) विच्छ्य लगुले य । (२७) गयविक्कमे य तत्तो, (२८) सीहनिसीही य संठाणा ।।।
-जम्बु. वक्ख. ७, सु. १५६
सूर्यप्रज्ञप्ति की वृत्ति में भी ये गाथाएँ उद्धृत हैं। पूर्वाभाद्रपद-उत्तराभाद्रपद के संस्थान तथा पूर्वाफाल्गुनी-उत्तराफाल्गुनी के संस्थान समान माने गये हैं किन्तु पूर्वाषाढा के संस्थान भिन्न भिन्न माने गये हैं। संस्थानों की इस विभिन्नता का हेतु इस प्रकार हैपूर्व भद्रपदायाः अर्द्धवापीसंस्थान, उत्तरभद्रपदाया अप्यर्धवापीसंस्थान, एतदर्द्धवापी द्वयमीलनेन परिपूर्णा वापी भवति, तेन सूत्रे वापीत्युक्तम् । पूर्वफल्गुन्या अर्धपल्यं कसंस्थान, उत्तरफल्गुन्या अप्यर्धपल्यंक संस्थान -अत्रापि अर्धपल्यंक द्वयमीलनेन परिपूर्ण पल्यंको भवति, तेन संख्यान्युनता न ।
---जंबु. वक्ख. ६, सु. १५६ वृत्ति (ख) चंद. पा. १० सु. १ । (ग) मुहूर्त चिन्तामणी मुहूर्त चिन्तामणी
सूर्य प्रज्ञप्ति
सूर्यप्रज्ञप्ति नक्षत्र नाम नक्षत्र संस्थान नक्षत्र नाम
नक्षत्र संस्थान १ अश्विनी अश्वमुख
अश्वस्कंध २ भरणी भग
श्रवण
भग ३ कृत्तिका छुरा
धनिष्ठा
छु ४ रोहिणी शकट
शतभिषक
शकट ५ मृगसिरा हरिणमुख पूर्वाभाद्रपद
मृग का शिर ६ आर्द्रा
उत्तराभाद्रपद
रुधिर विन्दु ७ पुनर्वसु गृह
रेवती
तुला ८ पुष्य वाण
अश्विनी
वर्धमान है अश्लेषा चक्र
भरणी
पताका मघा भवन
कृत्तिका
प्राकार ११ पूर्वाफाल्गुनी मच
रोहिणी
अर्ध पल्यंक १२ उत्तराफाल्गुनी शय्या
मृगशिरा
अर्ध पल्यंक
(क्रमशः)
अभिजित्
मणि