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________________ ६०० लोक-प्रज्ञप्ति णक्खत्ताणं तारग्ग सखा ६४. १. ० -ता कहं ते तारगे ? अहिए त्ति वएज्जा, ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभीई णक्खत्ते . कतितारे पण्णत्त ? उ०- तितारे पण्णते । २. प० - सवणे णक्खत कतितारे पण्णत्त े ? उ०-- तितारे पण्णत्त ।" ३. ५० घणिट्ठा णक्खत्त कतितारे पण्णत्त ? उ०- पणतारे पण्णत्त । ३. ५० -- सतभिसया णक्खत्त कतितारे पण्णस ? उ०- सत्ततारे पण्णत्त ।" (क्रमशः ) १३ हस्त १४ चित्रा १५ स्वाती १६ १७ विशाखा अनुराधा जेष्ठा १८ १६ मूल २० पूर्वापाठा २१ उत्तराषाढा २२ अभिजित् २३ श्रवण २४ धनिष्ठा २५ शतभिषक २६ पूर्वाभाद्रपद २७ उ० तिर्यक् लोक : नक्षत्रों के ताराओं की संख्या हाथ मोती उत्तराभाद्रपद मूंग तोरण भात (रथ) कुण्डल सिंह- पुच्छ हाथीदाँत मंच त्रिकोण त्रिचरण वामनरूप मृदंग यतुं स मंच मानव युगल मृदंग आर्द्रा पुनर्वसु नक्षत्रों के ताराओं की संख्या ६४. (१) प्र० - नक्षत्रों के ताराओं का प्रमाण कितना है ? कहेंइन अट्ठावीस नक्षत्रों में से अभिजित नक्षत्र के कितने तारे कहे गये हैं? उ०- तीन तारे कहे गये हैं । (२) प्र० - श्रवण नक्षत्र के कितने तारे कहे गये हैं ? उ०- तीन तारे कहे गये हैं ? (३) प्र० - धनिष्ठा नक्षत्र के कितने तारे कहे गये हैं ? उ०- पांच तारे कहे गये हैं । (४) प्र० शतभिषक् नक्षत्र के कितने तारे कहे गये है? उ०- सात तारे कहे गये हैं । पुष्प अश्लेषा मघा पूर्वाफाल्गुनी उत्तराफाल्गुनी हस्त च स्वाति विशाखा अनुराधा जेष्ठा m मूल पूर्वाषाढा उत्तराषाढा पुष्पहार अर्थ वापी अर्ध वापी २८ रेवती नौक सूर्यप्रज्ञप्ति में नक्षत्रों के संस्थान अभिजित् से प्रारम्भ होकर उत्तराषाढा पर्यन्त कहे गये हैं। मुहूर्त चिन्तामणी में नक्षत्रों के संस्थान अश्विनी से रेवती पर्यन्त कहे गये हैं । संहिता प्रदीप में नक्षत्रों के संस्थान कृतिका से भरणी पर्यन्त कहे गये हैं । १ (क) प० एएसि घते ! अट्ठावीसाए पत्ताणं अभिई पक्वते कतितारे पष्णते ? सूत्र १०६३ - १०६४ हाथ प्रफुल्ल मुख खीला दामणा - पशु बाँधने की रस्सी हार एकावली गजदंत विष्णु की पूंछ गज- विक्रम सिंह निषद्या गो श्रृंगावल कावड़ पक्षी - पिंजरा -गोयमा ! तितारे पण्णत्ते, एवं णेयव्वा जस्स जइयाओ ताराओ इमं च तं तारगा । गाहाओ - तिगतिगन्यंग- सम-युग बत्तीसन-ति तह लिगं तह लिगं च । छ-पंचग-तिग- एक्कग-पंचग-तिग-छक्कगं चेव ।। १ ।। सत्तग- दुग-दुग-पंचग-एक्के क्कग-पंच- चउतिगं चैव । एक्कारसग चउक्कं चउक्कं चैव तारगं ॥ २ ॥ 1 (ख) अभि गम्यते तितारे पाले एवं सवणो, अस्सिणी, भरणी, मगसिरे से पेट्टा (ग) अभि क्वतं तितारे पते । २ (क) ठाणं. अ. ३, उ, ३, सु. २२७ ॥ (ख) सम. ३, सु. १० । ३ (क) पंच णक्खत्ता पंचतारा पण्णत्ता, तं जहा - (१) घणिट्टा, (२) रोहिणी, (३) पुणव्वसू, (४) हत्थो, (५) विसाहा । (ख) सम. ५, सु. १३ । ४ सतभिसया णक्खत्ते एगसयतारे पण्णत्ते । -- जंबु. वक्ष. ६, सु. १५८ - ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. २२७ -सम. ३, सु. ६ - ठाणं अ, ५, उ. ३, सु. ४७३ - सम. १००, सु. २
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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