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युग में जिस पर्व का जिस तिथि में पौरुषी का परिमाण जानना चाहें तो पहले युग के आदि से आरम्भ करके जितने पर्व बीत चुके हों उनको लेकर १५ से गुणा करें। गुणा करके विवक्षित तिथि से पहले जितनी तिथियाँ व्यतीत हुई हों उन तिथियों को जोड़े। जोड़कर १८६ से उनका भाग करें तो इस प्रकार १ अयन में १८३ मण्डल परिमाण में चन्द्र निष्पादित तिथियों की संख्या १८६ होती है, उनका भाग करने पर जो भागफल आता है वह पौरुषी का प्रमाण होता है। उनमें जो लब्ध विषम हो, जैसे कि १, ३, ५, ७, ε, तो उसके समीपस्थ दक्षिणायन समझना चाहिए। यदि लब्ध सम हो, जैसे २, ४, ६, ८, १० आदि तो उसके पर्यन्त उत्तरायण समझना चाहिए ।
यदि १६६ द्वारा भाग देने पर पूरा भाग न जाये तो शेष बचने की विधि यह है-अयन बीतने इत्यादि जो पर्व भाग करने पर या भाग के असम्भवपन की दशा में शेष रूप अयन गत तिथि का समूह होता है । उसको ४ से गुणित करते हैं । गुणा करके पर्व पाद से युग में जितनी पर्व संख्या से ( प्रन्यास ४००० ) पर्व १२४ होते हैं, उनके पाद से अर्थात् चतुर्थांश से अर्थात् ३१ से भाग करने पर जो भागफल आता है उतने अंगुल और अंगुल के अंश पौरुषी का क्षय वृद्धि जानना चाहिए। दक्षिणायन में पाद ध्रुवराशि के ऊपर वृद्धि रूप से तथा उत्तरायण में पाद ध्रुवराशि के क्षयरूप जानना चाहिए ।
गुणकार और भागकार उत्पत्ति - यदि १६६ तिथि से २४
अंगुलों के पपा वृद्धि में प्राप्त हो तो १ तिथि में
२४ १८६
अथवा
क्षय या वृद्धि होती है । जो लब्ध फल है उतने अंगुल क्षय.
वृद्धि होती है।
दक्षिणायन में द्रीपाद के ऊपर अंगुलों में वृद्धि होती है तथा उत्तरायण में ४ पाद से अंगुलों की हानि या क्षय होता है।
युग
के प्रथम संवत्सर में श्रावणमास के कृष्ण पक्ष के प्रति•पदा में २ पाद प्रमाणवाली पौरुषी निश्चित होती है । उसको प्रतिपदा से आरम्भ कर प्रत्येक तिथि के क्रम से तावत् पर्यन्त हाते हैं या सौरमान के साहेतीस अहोरात्र प्रमाग से चन्द्र
गणितानुयोग : प्रस्तावना
मास की अपेक्षा से ३१ तिथि में ४ अंगुल की वृद्धि होती है ।
कारण कि १ तिथि में
४ ३१
भाग हानि वृद्धि होती है।
युग के प्रथम संवत्सर में माघ के कृष्णपक्ष में सप्तमी से
आरम्भ कर ४ पाद से प्रत्येक तिथि
भाग घटती हुई उत्त
४७
३१
रायण पर्यन्त दो पाद पोरुषी हो जाती है ।
पर्व तिथि में पौरुषी गणना
यदि युग के प्रारम्भ से २५ वें पर्व की ५वीं तिथि में पौरुषी पाद गणना में निकालना हो तो सर्वप्रथम एक ओर ८४ रखते हैं और उसके नीचे ५वीं तिथि के विषय में प्रश्न होने से ५ रखते हैं। तथा ८४ को १५ से गुणा करते हैं । इस प्रकार ८४४१५ = १२६० होते हैं जिनमें उक्त ५ जोड़ने पर १२६५ होते हैं ।
प्राप्त होते
हैं। यहाँ ६ लब्ध पूर्ण होते हैं छह अयन पूरा होकर सातवाँ अयन प्रवर्तता है। ध्रुव १४६ में ४ का गुणा करते हैं तब १४εX४==५६६ प्राप्त होता है। इसमें ३१ का भाग देने पर
इसे १८६ का भाग देने पर १२६५, १४६
६+
१८६
१८६
१६+
प्राप्त होते हैं । १६ अंगुल से १२ अंगुल का १ पाद
होने के कारण १ पाद लब्ध होकर ७ अंगुल शेष रहता है । इस प्रकार ६ उत्तरायण निकल चुके होते हैं और ७वां दक्षिणायन प्रवर्तता है । अब इस १ पाद को २ पाद वाली ध्रुवराशि में प्रक्षिप्त करने पर ३ पाद होते हैं तथा ७ अंगुल होते हैं । अब
भाग के यव बनाने के लिए १ अंगुल = ८ यव लेकर ७ को
३१
८ से गुणित करते हैं तो ७८=५६ प्राप्त होते हैं ।
५६. २५ अतः १+ यव होते हैं । इतनी प्रमाण की पौरुषी प्राप्त ३१ ३१
होती है।
इसी प्रकार उत्तरायण की ध्रुवराशि ४ पाद लेकर सम्बन्धित प्रश्न हल करते हैं ।