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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक्लोक : नक्षत्र वर्णन
सूत्र १०८८-१०८६
नक्षत्र वर्णन
णक्खत्त णामाइं
नक्षत्रों के नाम८८. ५०-कइ णं भते ! नक्खत्ता पण्णत्ता ?
८८. प्र०-भगवन् ! नक्षत्र कितने कहे गये हैं ? उ०—गोयमा ! अट्ठावीसं णक्खत्ता पण्णत्ता,
उ०-गौतम ! अट्ठावीस नक्षत्र कहे गये हैं। १. अभिई, २. सवणो, ३. धणिट्टा, ४. सयभिसया, (१) अभिजित्, (२) श्रवण, (३) धनिष्ठा, (४) शतभिषक्, ५. पुवभद्दवया, ६. उत्तरभद्दवया, ७. रेवई, ८. (५) पूर्वाभाद्रपद, (६) उत्तराभाद्रपद, (७) रेवति, (८) अश्विनी, अस्सिणी, ६. भरणी, १०. कत्तिा ', ११. रोहिणी, (६) भरणी, (१०) कृत्तिका, (१२) मृगशीर्ष, (१३) आर्द्रा, १२. मिअसिर, १३. अद्दा, १४. पुणब्वसु, १५. पूसो, (१४) पुनर्वसु, (१५) पुष्य, (१६) अश्लेषा, (१७) मघा, १६. अस्सेसा, १७. मघा, १८. पुव्वफग्गुणी, १६. (१८) पूर्वाफाल्गुनी, (१६) उत्तराफाल्गुनी, (२०) हस्त , उत्तरफग्गुणी, २०. हत्थो, २१. चित्ता, २२. साई, (२१) चित्रा, (२२) स्वाति, (२३) विशाखा, (२४) अनुराधा, २३. विसाहा, २४. अणुराहा, २५. जेट्ठा, २६. मूलं, (२५) ज्येष्ठा, (२६) मूल, (२७) पूर्वाषाढा, (२८) उत्तराषाढा। २७. पुब्वसाढा, २८. उत्तरासाढा,
-जंबु. वक्ख. ७, सु. १५५ णक्खत्ताणं आलिया-णिवाय जोगो य
नक्षत्रों का आवलिकानिपात और योग५६.५०–ता कहं ते जोगे ति वत्थुस्स आवलिया-णिवाए? ८६. प्र०-(चन्द्र-सूर्य के साथ) नक्षत्र समुदाय के योग का आहिए त्ति वएज्जा।
पंक्तिरूप क्रम कैसा है ? कहेंउ०-तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पण्णताओ उ०-इस सम्बन्ध में पाँच प्रतिपत्तियाँ (मान्यताएँ) कही तं जहा
गई है, यथातत्थेगे एवमाहंसु
___ उनमें से एक मान्यता वाले इस प्रकार कहते हैं१. ता सव्वे वि णं णखत्ता, कत्तियादिया भरणि- (१) कृत्तिका से भरणीपर्यन्त सभी नक्षत्रों का (चन्द्र-सूर्य के पज्जवसाणा पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु ।
साथ) योग पंक्तिरूप क्रम है। एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वाले) फिर इस प्रकार कहते हैं२. ता सव्वे वि ण णक्खत्ता, महादिया अस्सेस-पज्ज- (२) मघा से अश्लेषा पर्यन्त सभी नक्षत्रों का (चन्द्र-सूर्य के वसाणा पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु ।
साथ) योग पंक्तिरूप क्रम है । एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वाले) फिर इस प्रकार कहते हैं३. ता सन्वे वि णं णक्खत्ता, धणिट्ठादिया सवण-पज्ज- (३) धनिष्ठा से श्रवण पर्यन्त सभी नक्षत्रों का (चन्द्र-सूर्य के वसाणा पण्णत्ता; एगे एवमाहंसु ।
साथ) योग पंक्तिरूप क्रम है । एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वाले) फिर इस प्रकार कहते हैं४. ता सब्वे वि णं णक्खत्ता, अस्सिणी-आदिया रेवई (४) अश्विनी से रेवती पर्यन्त सभी नक्षत्रों का (चन्द्र-सूर्य पज्जवसाणा पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु ।
के साथ) योग पंक्तिरूप क्रम है । एगे पुण एवमाहंसु
एक (मान्यता वाले) फिर इस प्रकार कहते हैं५. ता सब्वे विणं णक्खत्ता, भरणी आदिया अस्सिणी (५) भरणी से अश्विनी पर्यन्त सभी नक्षत्रों का (चन्द्र-सूर्य पज्जवसाणा पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु ।
के साथ) योग पंक्तिरूप क्रम है ।
१
(क) ठाणं, अ. २, उ. ३, सु. ६५ ।
(ख) अणु. सु. २८५, गाथा. ८६-८८ । स्थानांग में और अनुयोगद्वार में कृत्तिका से भरणी पर्यन्त नक्षत्र गणना का कम है।