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________________ सूत्र १०८७ तिर्यक् लोक : चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण का प्ररूपण गणितानुयोग ५८९ वा लेसं दाहिणपुरत्थिमे णं आवरित्ता उत्तरपच्चत्थिमेणं दक्षिण-पूर्व में आवृत करके उत्तर-पूर्व में चला जाता है तब वीईवयइ, तया णं दाहिणपुरस्थिमेणं चन्दे वा, सूरे वा, दक्षिण पूर्व में चन्द्र या सूर्य दिखाई देता है और उत्तर-पश्चिम में उवदंसेइ, उत्तरपच्चत्थिमेणं राहू । राहु दिखाई देता है। ४. ता जया णं राहु देवे आगच्छमाणे वा, गच्छमाणे वा, (४) राहु देव आता हुआ जाता हुआ विकुर्वणा करता हुआ विउव्वेमाणे वा, परियारेमाणे वा चन्दस्स वा सूरस्स वा या परिचारणा करता हुआ जब चन्द्र या सूर्य के प्रकाश को लेसं दाहिणपच्चस्थिमे णं आवरित्ता, उत्तरपुरस्थिमे णं दक्षिण-पश्चिम में आवृत करके उत्तर-पश्चिम में चला जाता है वोईवयइ, तपा णं दाहिणपच्चत्थिमे णं चन्दे वा, सूरे वा तब दक्षिण-पश्चिम में चन्द्र या सूर्य दिखाई है और उत्तर-पूर्व उवदंसेइ उत्तरपुरत्थिमे णं राहू । में राहु दिखाई देता है। एएणं अभिलावे णं उत्तर-पच्चत्थिमे णं आवरेत्ता दाहिण- इस प्रकार के अभिलाप से चन्द्र या सूर्य को उत्तर दिशा पुरथिमे णं वीईबयइ, उत्तरपुरथिमे णं आवरेत्ता में आवृत करके राहु दक्षिण-पूर्व में चला जाता है, उत्तर-पूर्व में दाहिणपच्चत्थिमे णं वीईवयइ, आवृत करके दक्षिण-पश्चिम में चला जाता है, ऐसा कहें। ५. ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा, (५) राहु देव आता हुआ, जाता हुआ विकुर्वणा करता हुआ विउव्वेमाणे वा, परियारेमाणे वा, चंदस्स वा, सूरस्स वा या परिचारणा करता हुआ जब चन्द्र या सूर्य के प्रकाश को लेसं आवरेत्ता वीईवयइ तथा णं माणुसलोयंसि मणुस्सा आवृत करके चला जाता है तब मनुष्य लोक में मनुष्य ऐसा एवं वयंति, 'राहुणा चदे वा, सूरे वा गहिए, कहते हैं ''राहु ने चन्द्र या सूर्य को ग्रहण किया है।" ६. ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा, गच्छमाणे वा (६) राहु देव आता हुआ, जाता हुआ विकुर्वणा करता हुआ विउव्वेमाणे वा, परियारेमाणे वा, चंदस्स वा सरस्स वा या परिचारणा करता हुआ जब चन्द्र या सूर्य के प्रकाश को लेसं आवरेत्ता पासेणं वीईवयइ, तया गं माणुसलोयसि आवृत करके उनके समीप होकर जाता है तब मनुष्य लोक में मणुस्सा एवं वयंति 'चंदेण वा, सूरेण वा राहूस्स कुच्छी- , मनुष्य इस प्रकार कहते हैं-"चन्द्र या सूर्य ने राहु की कुक्षी को भिन्न कर दिया है ।" ७. ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा, गच्छमाणे वा, (७) राहु देव आता हुआ, जाता हुआ विकुर्वणा करता हुआ विउब्वेमाणे वा, परियारेमाणे वा, चदस्स वा, सूरस्स वा या परिचारणा करता हुआ जब चन्द्र या सूर्य के प्रकाश को लेसं आवरेत्ता पच्चोसकइ तया णं माणुसलोयंसि मणुस्सा आवृत करके पीछे सरकता है, तब मनुष्य लोक में मनुष्य इस एवं वयंति 'राहुणा चंदे वा, सूरे वा वंते', प्रकार कहते हैं-राहु ने चन्द्र या सूर्य का वमन कर दिया है।" ८. ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा, गच्छमाणे वा, (८) राहु देव आता हुआ, जाता हुआ विकुर्वणा करता हुआ विउध्वेमाणे वा, परियारेमाणे वा, चंदस्स वा, सूरस्स वा या परिचारणा करता हुआ जब चन्द्र या सूर्य के प्रकाश को लेसं आवरेत्ता मझमज्झेणं वीईवयइ, तया णं माणुस- आवृत करके मध्य भाग से चला जाता है तब मनुष्य लोक में लोयंसि मणुस्सा एवं वयंति 'राहुणा चंदे वा, सूरे वा मनुष्य इस प्रकार कहते हैं- "राहु ने चन्द्र या सूर्य को विदारित विइयरिए', किया है।" ६. ता जया णं राहु देवे आगच्छमाणे वा, गच्छमाणे वा, (8) 'राहु देव आता हुआ जाता हुआ, विकुर्वणा करता हुआ विउब्वेमाणे वा, परियारेमाणे वा चंदस्स वा, सूरस्स वा या परिचारणा करता हुआ जब चन्द्र या सूर्य के प्रकाश को आवृत लेसं आवरेत्ता अहे सपक्खिं सपडिदिसि चिट्ठइ, तया णं करके नीचे सभी विदिशाओं में रहता है तब मनुष्यलोक में मनुष्य माणुसलोयंसि मणुस्सा एवं वयंति 'राहुणां चंदे वा सूरे इस प्रकार कहते हैं-"राहु ने चन्द्र या सूर्य को अस लिया है"। वा घत्थे" -सूरिय, पा. २०, सू. १०३ भिण्णा, १ (क) भग. स. १२, उ. ६, सु. २ । (ख) चन्द. पा. २०, सु. १०३ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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