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________________ ५८८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण का प्ररूपण सूत्र १०८६-१०८७ तत्थ णं जे ते एवमाहंसु इनमें से जो ऐसा कहते हैं कि "चन्द्र-सूर्य को ग्रहण करने ता नत्थि णं से राहू देवे जेणं चंदं वा, सूरं वा वाले राहु देव नहीं हैं" (उनकी मान्यता के अनुसार ये पन्द्रह गेण्हइ, ते एवमाहंसु-तत्थ णं इमे पण्णरस कसिण- प्रकार के कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल कहे गये हैं, यथा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा१. सिंघाणए, २. जडिलए, ३७ खरए (१) सिंघाण =लोहे का काठ, (२) जटिल, (३) खंजन, ४. खतए. ५. अंजणे, ६. खंजणे (४) क्षत, (५) अंजन, (६) खंजन (७) शीतल, (८) हिमशीतल, ७. सीतले, ८.हिमसीतले, ६. केलासे (8) कैलाश, (१०) अरुणाभ, (११) पारिजात, (१२) णभसूर, १०. अरुणाभे, ११. परिज्जए, १२. णभसूरए (१३) कपिल, (१४) पिंगल, (१५) राहू । १३. कविलिए, १४. पिगंलए, १५. राहू ता जया णं एए पण्णरस कसिणा कसिणा पोग्गला सया ये पन्द्रह प्रकार के पुद्गल जब जब चन्द्र-सूर्य के प्रकाश से चंदस्स'वा सूरस्स वा लेसाणुबद्धचारिणो भवति, तया अनुबद्ध होकर चलते हैं तब मनुष्य लोक में मनुष्य इस प्रकार णं माणुसलोयंसि माणुसा एवं वयंति ‘एवं खलु राहु चंदं कहते हैं कि “राहु ने चन्द्र-सूर्य को ग्रहण कर लिया"। वा सूर वा गेण्हइ, एवं एवं ता जया णं एए पण्णरस कसिणा कसिणा ये पन्द्रह प्रकार के कृष्ण वर्ण वाले पुद्गल जब जब चन्द्र-सूर्य पोग्गला णो सया चंदस्त वा सूरस्स वा लेसाणुबद्ध- के प्रकाश से अनुबद्ध होकर नहीं चलते हैं तब तब मनुष्य लोक चारिणो भवंति, णो खलु तया माणुसलोयंसि माणुसा में मनुष्य ऐसा नहीं कहते हैं कि “राहु ने चन्द्र-सूर्य को ग्रहण एवं वयंति, ‘एवं खलु राहु चंदं वा सूरं वा गेण्हइ' ते कर लिया। एवमासु, वयं पुण एवं वयामो हम फिर इस प्रकार कहते हैंता राहू णं देवे महिड्ढीए महज्जुइए महबले महायसे राहु देव महधिक है, महा द्युति वाला है, महा बल वाला महासोक्खे महाणुभावे, वरवत्थधरे, वरमल्लथरे वरा- है, महायश वाला है, अत्यन्त सुखी है, अति आदरणीय है, श्रेष्ठ भरणधारी। वस्त्र धारण करने वाला है, श्रेष्ठ मालाएँ धारण करने वाला है, .... सूरिय. पा. २०, सु. १०३ श्रेष्ठ आभरण करने वाला है । चंदोवरागस्स सूरोवरागस्स य परूवणं चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण का प्ररूपण.... ८७. १. ता जया णं राहूदेवे आगच्छमाणे वा, गच्छमाणे वा, ८७. (१) राहु देव आता हुआ, जाता हुआ विकुर्वणा करता हुआ विउत्वेमाण वा, परियारमाणे वा, चंदस्स वा, सूरस्स वा अथवा परिचारणा करता हुआ जब सूर्य के प्रकाश को पूर्व से लेस्सं पुरत्थिमेणं आवरित्ता पच्चस्थिमे णं वोईवयइ, तया आवृत करके पश्चिम में चला जाता है तब चन्द्र या सूर्य पूर्व में ण पुरथिमेण चन्दे वा सूरे वा उवदंसेइ पच्चत्थिमेणं राहू। दिखाई देता है और राहु पश्चिम में दिखाई देता है। २. ता जया णं राह देवे आगच्छमाणे वा, गच्छमाणे वा, (२) राहु देव आता हुआ, जाता हुआ विकुर्वणा करता हुआ विउब्वेमाणे वा, परियारेमाणे वा, चन्दस्स वा, सूरस्स परिचारणा करता हुआ जब चन्द्र या सूर्य के प्रकाश को दक्षिण वा, लेसं दाहिणेणं आवरित्ता, उत्तरेणं बीईवयइ, तया में आवृत करके उत्तर में चला जाता है तब दक्षिण में चन्द्र या णं दाहिणेणं चन्दे वा, सूरे वा, उवदंसेइ, उत्तरेणं राहू। सूर्य दिखाई देता है और उत्तर में राहु दिखाई देता है । एएणं अभिलावे णं पच्चत्थिमे णं आवरित्ता पुरत्थिमे णं इस प्रकार के अभिलाप से चन्द्र या सूर्य को पश्चिम में बीईबयइ, उत्तरेणं आवरित्ता दाहिणे णं वीईवयई। आवृत करके राहु पूर्व में चला जाता है उत्तर में आवृत करके दक्षिण में चला जाता है, ऐसा कहें। ३. ता जया णं राह देवे आगच्छमाणे वा, गच्छमाणे वा, (३) राहु देव आता हुआ, जाता हुआ विकुर्वणा करता हुआ विउब्वेमाणे वा, परियारेमाणे वा, चन्दस्स वा, सूरस्स या परिचारणा करता हुआ जब चन्द्र या सूर्य के प्रकाश को १ (क) भग. स. १२, उ. ६, सु.२ । (ख) चन्द. पा. २०, उ. सु. १०३ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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