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________________ सूत्र १०८४ १०८६ राहुस्स विमाणा पंचवण्णा ८५. राहुस्स ण देवस्स विमाणा पंचवण्णा पण्णत्ता, तं तहा१. कन्हा २. नीला, ३. लोहिया, ४. हालिद्दा, ५. सुविकल्ला, १. अस्थि कलए बिमाणे जगण्याने प २. अस्थि नीलए राहुविमाणे लाउयवण्णाभे, पण्णत्ते, ३. अस्थि लोहिए राहुविमाणे मंजिट्टवण्णाभे, पण्णत्ते, ४. अस्थि हालिए राहुविमाणे हालिद्दा वण्णाभे पण्णत्ते, ५. अविक्किल राहुविमा भासरासि प सूरिय. पा. २०, सु. तियक् लोक : राहु विमाण के पाँच वर्ण १ राहु-सरूव परूवणं ८६. पता कहं ते राहुकम्मे ? आहिए त्ति वएज्जा, उ०- - तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - १०३ तरवेगे एवमाहं १. अस्थि णं से राहु देवे, जेणं चंदे वा, सूरं वा, गिoes, 'एगे एवमाहंसु' एगे पुरा एवमाहं २. नथणं से राहु देवे जे णं चंदे वा, सूर वा गिव्हइ, 'एगे एवमाहंसु' तत्थ णं जे ते एवमाहंसु १. बुद्धते गिहित्ता, बुद्धतेणं मुयइ, २. बुद्धते गिहित्ता, मुद्धतेणं मुयइ, गिता २. द ४. मुद्धते गिहित्ता, मुद्धतेणं मुयइ, ता अस्थि से राहु देवे, जेणं चंदं वा सूरं वा गिoes, से एवमाहंसु ता राहु देवे चंद वारंवा (क) भग. स. १२, उ. ६, सु. २ । १. वामभुयंते णं गिव्हित्ता वामभुयंते णं मुयइ, २. वामभुते णं गिव्हित्ता, दाहिणभुयंते णं मुयइ, ३. दाणिं विहिता, बामनुष सुव ४. दाणि गिरिहता, दाहिण मुह राहु विमाण के पांच वर्ण ८५. राहु देव के विमान पाँच वर्ण वाले कहे गये हैं, यथा(१) कृष्ण, (२) नील, (३) रक्त, (४) पीत, (५) शुक्ल । गणितानुयोग राहु का कृष्ण वर्ण विमान खंजन वर्ण वाला कहा गया है। राहु का नील वर्ण विमान तुम्ब वर्ण वाला कहा गया है। राहु का लोहित वर्ण विमान मंजिष्ठ वर्ण वाला कहा गया है । ५८७ राहू का हाद्रि वर्ष विमान हाद्रि वर्ण वाला कहा गया है । गया है । राहु का शुक्ल वर्ण विमान भस्मराशि वर्ण वाला कहा कर्म प्ररूपण - राहु ८६. प्र० - राहु का कर्म ( कार्य ) क्या है ? कहें । उ० – इस सम्बन्ध में दो प्रतिपत्तियाँ ( अन्य मान्यतायें ) कही गई हैं, यथा इनमें से एक मान्यता वाले इस प्रकार कहते हैं(१) राहु देव है, वह चन्द्र और सूर्य को ग्रहण करता है। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं (२) चन्द्र-सूर्य को पहण करने वाला राहु देव नहीं है। इनमें से जो ऐसा कहते है कि राहु चन्द्र-सूर्य को ग्रहण करने वाला देव है (उनके कहे अनुसार) राहु देव चन्द्र-सूर्य को (ख) चन्द. पा. २०, सु. १०३ । (१) नीचे से ग्रहण करके नीचे से मुक्त करते हैं । (२) नीचे से ग्रहण करके ऊपर से मुक्त करते है । (३) उपर से ग्रहण करके नीचे से मुक्त करते हैं । ( ४ ) ऊपर से ग्रहण करके ऊपर से ही मुक्त करते हैं । (१) वामभुजा से ग्रहण करके वामभुजा से मुक्त करते हैं। (२) वामभुजा से ग्रहण करके दक्षिणा से मुक्त करते हैं। (३) दक्षिणा से प्रण करके वामभुजा से मुक्त करते हैं। (४) दक्षिण भुजा से ग्रहण करके दक्षिणभुजा से ही मुक्त करते हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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