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लोक- प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : शुक्र के उदयास्त का प्ररूपण
तं जहा - १. हयवीही, २. गयवीही, ३. नागवीही, ४. वसहवीही, ५. गोबीही, ६. उरगवीही, (जरग्गउवीही) ७. अयही मावीही १. साणीहो ।
- ठाणं. अ. ६, सु. ६६६
सुक्कस्स उदय अत्यमण परूवणं२. सुके महत् अवरे उदिए समाने एमबीस गाई सम चारं चरिता अवरेण अत्थमणं उवागच्छइ ।
णं
- सम. १६, सु. ३
राहस्स बुविहल
८३. प० – कइविहे णं राहू पण्णत्ते ?
उ०- दुबिहे पण्णत्ते, तं जहा-ता ध्रुव राहु य, पन्वराहु य । (क) तत्थ णं जे से ध्रुव राहु से णं बहुलपक्खस्स पाडि - पण रस भागेणं पण्णरसइ भागं चन्दस्स लेस आवरेमाणे आवरेमाणे चिट्ठइ, तं जहा- पढमाए पढमं भागं, जाव पण्णरसमीए पण्णरसमं भागं । चरमे समए चन्दे रत्ते भवइ,
अवसेसे समए चन्दे रत य विरत्ते य भवइ,
तमेव सुपनले उपदंसेमा उबसेमा चि
तं जहा - पढमाए पढमं भागं- जाव- पण्णरसमीए पण समं भागं ।"
चरमे समए चन्दे विरते भवइ ।
अवसेसे समए चन्दे रत्ते य विरतेय भवइ,
तत्थ णं जे ते पव्वराहू से जहणणं छण्हं मासाण,
उक्कोसेणं बायालीसाए मासाणं चन्दस्स, अडयालीसाए संबच्छराणं सूरस्स 12 - सूरिय. पा. २०, सु. १०३
राहुस्स णव णामाई८४. ता राहुस्स णं देवस्स णव णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा
१.
ए
२. लिए
४. वेत्तए,
५. ढड्ढी,
७. मच्छे
८. कच्छ,
१
सम. १५, सु. ३ ।
२ (क) चन्द्र. पा. २०, सु.
१०३ ।
३ (क) भग. स. १२, उ. ६, सु. २ ।
"
३. खरए,
६. मगरे,
६. कण्णसप्पे । *
--सूरिय. पा. २०, सु. १०३
(१) अबी, (२) गजबीबी, (३) नागवीथी, (४) वृषभवीथी, (५) गौवीथी, (६) उरगवीथी ( जरद्गववीथी), (७) अजवीथी, (८) मृगवीथी, (६) वेश्वानरवीथी ।
शुक्र के उदयास्त का प्ररूपण
८२. शुक्र महाग्रह पश्चिम दिशा में उदित होकर उन्नीस नक्षत्रों के साथ गति करके गति पश्चिम दिशा में ही अस्त हो जाता है ।
के दो प्रकार
राहु
८३. प्र० - राहु कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ०- दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-ध्रुवराहु और पर्वराहु, इनमें जो ध्रुव राहु है वह कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से प्रारम्भ करके पन्द्रहवें दिन पर्यन्त अपने पन्द्रहवें भाग से चन्द्र के पन्द्रहवें भाग के प्रकाश को आवृत करता हुआ रहता है, यया - प्रतिपदा में प्रथम भाग को - यावत् - पन्द्रहवीं में पन्द्रहवें भाग को । पन्द्रहवें के अन्तिम समय में चन्द्र ध्रुव राहु से पूर्ण आवृत होता है ।
शेष समयों में चन्द्र ध्रुव राहु से आवृत और अनावृत रहता है ।
सूत्र १०८१ १०८४
वही ध्रुव राहु शुक्लपक्ष में चन्द्र को अनावृत करता रहता है; यथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा पर्यन्त प्रतिदिन एक एक भाग को अनावृत करता रहता है।
प्रतिपदा को प्रथम भाग यावत् - पूर्णिमा को पन्द्रहवाँ भाग अनावृत हो जाता है ।
पूर्णिमा के अन्तिम समय में चन्द्र सर्वथा अनावृत हो जाता है, शेष समयों में चन्द्र कुछ आवृत और कुछ अनावृत रहता हैं । इनमें से जो पर्व राहु है वह जघन्य छः मास बाद चन्द्र या सूर्य को आवृत करता है ।
उत्कृष्ट बियालीस माम बाद चन्द्र को आवृत करता है और अड़तालीस संवत्सर बाद सूर्य को आवृत करता है ।
राहु के नो नाम
८४.
-
राहु
देव के नौ नाम कहे गये है, यथा(१) सिपाटक,
(२) जटिल, (२) दग्मी,
(४) क्षेत्र,
(७) मच्छ,
(८) कच्छप,
(ख) भग. स. १२, उ. ६, सु. ३ ।
(ख) चन्द. पा. २० सु. १०३ ।
(३) खर,
(६) मगर, (e),