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________________ सूत्र १०७४-१०७६ तिर्यक् लोक : देवोदसमुद्रगत चन्द्र-सूर्यों के चन्द्र-सूर्य द्वीपों का प्ररूपण गणितानुयोग ५८३ णवरं-पच्चथिमिल्लाओ वेइयंताओ पच्चत्थिमेणं विशेष-पश्चिमी वेदिका के अन्तिम भाग से पश्चिम में ही भाणियव्वा, तंमि चेव समुद्दे । उसी देव समुद्र में उनको राजधानियाँ कहनी चाहिए। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १६७ देवोदसमुद्दगाणं चन्द-सूराणं चन्द-सूरदीवाण परूवणं-- देवोद समुद्रगत चन्द्र-सूर्यों के चन्द्र-सूर्य द्वीपों का प्ररूपण७५. ५०-कहि णं भंते ! देवोदसमुद्दगाणं चन्दाणं चन्ददीवा णामं ७५. प्र०-हे भगवन् ! देवोदसमुद्रदगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक दीवा पण्णता? द्वीप कहाँ कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! देवोदगस्स समुदस्स पुरथिमिल्लाओ वेइ- उ०-हे गौतम ! देवोद समुद्र की पूर्वी वेदिका के अन्तिम यंताओ देवोदगं समुद्दे पच्चत्थिमे गं बारस जोयण- भाग से देवोद समुद्र के पश्चिम भाग में बारह हजार योजन सहस्साइं ओगाहित्ता, जाने पर है। तेणेव कमेणं-जाव-रायहाणीओ सगाणं दीवा णं पच्च- उसी (पूर्वोक्त) क्रम से-यावत् -राजधानी पर्यन्त अपने त्थिमे णं देवोदगं समुद्दे असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं अपने द्वीपों से पश्चिम में देवोद समुद्र में असंख्य हजार योजन ओगाहित्ता, एत्थ णं देवोदगाणं चन्दाणं चन्दाओ नाम जाने पर देवोद समुद्रगत चन्द्रों की चन्द्रा नाम की राजधानियाँ रायहाणीओ पण्णत्ताओ। कही गई है। सेस तं चेव सव्वं । शेष सब पूर्ववत् है। एवं सूराण वि। इसी प्रकार सूर्यों के सूर्यद्वीप भी हैं। णवरं-देवोदगस्स समुद्दगस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेइ- विशेष-देवोद समुद्र को पश्चिमी वेदिका के अन्तिम भाग यंताओ देवोदगं समुद्द असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई। से देवोद समुद्र के पूर्वभाग में बारह हजार योजन जाने पर राजधानियाँ हैं जो अपने अपने द्वीपों के पूर्व में देवोदक समुद्र से असंख्य हजार योजन पर है। एवं णागे, जखे , भूते वि चउण्हं दीवसमुद्दाणं । ___ इसी प्रकार नागद्वीप, यक्षद्वीप और भूतद्वीप के चन्द्र-सूर्यों के चन्द्र सूर्य द्वीप तथा समुद्रगत चन्द्र-सूर्यों के चन्द्र-सूर्यद्वीप तथा -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १६७ राजधानियाँ है । सयंभूरमणदीवगाण चंद-सूराणं चंद-सूरदीवाणं स्वयम्भूरमणद्वीपगत चन्द्र-सूर्यों के चन्द्र-सूर्य द्वीपों का परूवणं प्ररूपण७६. ५०-कहि णं भंते ! सयंभूरमणदीवगाणं चन्दाणं चन्ददीवा ७६. प्र०-हे भगवन् ! स्वयम्भूरमणद्वीपगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप पण्णत्ता ? कहाँ कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! सयंभूरमणस्स दीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेइ. उ०-हे गोतम ! स्वयम्भुरमणद्वीप की पूर्वी वेदिका के यंताओ सयंभूरमणोदगं समुदं बारस जोयणसहस्साई अन्तिम भाग से स्वयम्भूरमणोदक समुद्र में बारह हजार योजन ओगाहित्ता, सेसं तहेव । जाने पर हैं । शेष पूर्ववत् है। रायहाणीओ सगाणं सगाणं दीवाणं पुरथिमे णं राजधानियाँ उनके अपने-अपने द्वीप से पूर्व में स्वयम्भूरमणोसयंभूरमणोदगं समुद्दपुरस्थिमे णं असंखेज्जाइं जोयण- दक समुद्र में असंख्य हजार योजन जाने पर है। शेष सब सहस्साई, तं चेव । पूर्ववत् है। एवं सूराणं वि । इसी प्रकार सूर्यों के द्वीप हैं। सयंभूरमणस्स दीवस्स पच्चस्थिमिल्लाओ वेइयंताओ स्वयम्भूरमणद्वीप को पश्चिमी वेदिका के अन्तिम भाग से रायहाणीओ सगाणं सगाणं दीवाण पच्चत्थिमे णं राजधानियां अपने-अपने द्वीपों के पश्चिम में स्वयम्भूरमणोद समुद्र सयंभूरमणोदं समुद्द असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं में असंख्य हजार योजन जाने पर है। ओगाहित्ता, सेसं तं चेव । शेष सब पूर्ववत् है। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १६७
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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