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________________ ५८२ लोक- प्रज्ञप्ति तिर्यश् लोक पुष्करवरहीयगत चन्द्र-सूर्य द्वीपों का प्ररूपण पुक्खश्वरदीवगाणं सेसाण सम्यदीय- समुद्गाणं य चंद पुष्करवरद्वीपगत और शेष सब द्वीप समुद्रगत चन्द्र-सूर्यो सूराणं चंद-सूरदीवाणं परुवर्ण के चन्द्र-सूर्य द्वीपों का प्ररूपण ७३. एवं पुक्खरवरगाणं चंदाणं पुक्खरवरस्स दीवस्स पुरत्थि मिल्लाजी देवताओं खरवर समूह ओगाहिता चंददीया पुक्खरवर । मिक्सरवरे दीये राहाणीओ तब एवं सूराण वि दीवा पुक्खरवरदीवस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेइयंताओ पुक्खरोदं समुद्द बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, तहेव सव्वं - जाव -राहाणीओ। दीविलगाणं दोने, समुहगाणं समुद्र चेव । एगाणं अभिंतरपासे एगाणं बाहिरपासे । रायहाणीओ दीविल्लगाणं दीवेसु । समुद्दगाणं समुद्द ेसु सरिसणामएसु', - - जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १६८ देवदीवगाणं चंद सुराणं चन्द-सूरवीवाणं परूवणं७४. ५० - कहि णं भंते! देवदीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? सूत्र १०७३-१०७४ wi उ० – गोयमा ! देवदीवस्स देवोदं समुद्दं बारस जोयणसहस्साई ओगाहिता तेणेव कमेणं पुरथिमिल्लाओ वेदयंताओ - जाव - रायहाणीओ, सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं देवोदं समुद्र असंखेन्जाई जोयणसहस्सा ओगाहिता, एथ णं देवदीवगाणं चंदाणं चंदाओ णामं रायहाणीओ पण्णत्ताओ, सेसं तं चेव, देवदीव चंदादीवा । एवं सूराणवि ७३. इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपगत चन्द्रों के चन्द्र द्वीप पुष्करवरद्वीप पूर्वी बेविका के अन्तिम भाग से पुष्करोव समुद्र में जाने पर आते हैं। उन द्वीपों की राजधानियां अन्य पुष्करवरद्वीप में है, शेष पूर्ववत् है । इसी प्रकार सूर्यो के सूर्यद्वीप भी हैं। पुष्करवरद्वीप की पश्चिमी वेदिका के अन्तिम भाग से बारह हजार योजन जाने पर, पूर्ववत् सब हैं- यावत्-राजधानियाँ हैं । डीपगत चन्द्र-सूर्य होपों की राजधानियों द्वीपों में और समुद्रगत चन्द्र-सूर्य द्वीपों की राजधानियां समूहों में है। कुछ की राजधानियाँ आभ्यन्तर पार्श्व में है । कुछ की राजधानियाँ बाह्य पार्श्व में है । राजधानियाँ द्वीपगत चन्द्र-सूर्यो की सदृश नाम वाले अन्य द्वीपों में है । समुद्र-सूर्यो की राजधानियां सह नाम वाले समुद्रों में है । देवद्वीपगत चन्द्र-सूर्यो के चन्द्र-द्वीपों का प्ररूपण७४. हे भगवन् ! देवद्वीप के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ कहे गये हैं ? उ०- हे गौतम! देवद्वीप से देवोदसमुद्र में बारह हजार योजन जाने पर उसी (पूर्वोक्त) क्रम से पूर्वी वेदिका के अन्तिम भाग से - यावत् — अपने अपने द्वीपों से पूर्व में देव समुद्र में असंख्य हमार] योजन आगे जाने पर देवद्वीप के चन्द्रों की चन्द्रा नाम की राजधानियाँ कही गई हैं । शेष सब पूर्ववत् है ये देवीप के चन्द्रद्वीप है। इसी प्रकार सूर्यों के सूर्यद्वीप भी है । १ एवं शेष द्वीपगतानापि चन्द्राणां चन्द्रद्वीपगतात्पूर्वस्माद्वे दिकान्तादनन्तरे समुद्र द्वादशयोजन सहस्त्रण्यवगाह्य वक्तयाः । सूर्याणां सूर्यद्वीपाः स्वस्वद्वीपगतात्पश्चिमान्ताद्वे दिकान्तादनन्तरे समुद्र । राजधान्यश्चन्द्रागामात्मीयचन्द्रद्वीपेभ्यः पूर्वदिशि अन्यस्मिन् सहनामके सदृशनामके द्वीपे । सूर्यागामध्यात्मीयसूर्य द्वीपेभ्यः पश्चिमदिशि तस्मिन्नेव सहशामकेऽस्मिन् द्वीपे द्वादशयोजनसह भ्यः परतः । शेषसमुद्रतानां तु चन्द्राणां चन्द्रद्वीपा स्वस्व समुद्रस्य पूर्वस्माई विकान्तात्पश्चिमदिशि द्वादशयोजनहलाया। सूर्याणां तु स्वस्व समुद्रस्य पश्चिमान्ताद्व दिकान्तात्पूर्वदिशि द्वादश योजन सहस्राण्यवगाह्य । चन्द्राणां राजधान्यः स्व-स्वद्वीपानां पूर्वदिति अन्यस्मिन सहयनामके समुद्र ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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