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________________ ५८४ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : ग्रह वर्णन सूत्र १०७७-१०७८ सयंभूरमणसमुद्दगाणं चंद-सूराणं चंद-सूरदीवाणं स्वयम्भूरमणसमुद्रगत चन्द्र-सूर्यों के चन्द्र-सूर्य द्वीपों का परूवणं प्ररूपण७७. ५०-कहि णं भंते ! सयंभूरमणसमुद्दगाणं चन्दाणं चन्ददीवा ७७. प०-हे भगवन् ! स्वयम्भूरमण समुद्रगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप पण्णत्ता ? कहाँ कहे गये हैं ? -गोयमा ! सयंभूरमणस्स समुदस्स पुरथिमिल्लाओ उ०-हे गौतम ! स्वयम्भुरमण समुद्र की पूर्वी वेदिका के वेइयंताओ सयंभूरमणसमुद्दे पच्चत्थिमे गं बारस जोयण- अन्तिम भाग से स्वयम्भूरमण समुद्र के पश्चिम में बारह हजार सहस्साई ओगाहित्ता, सेसं तं चेव । योजन जाने पर हैं । शेष सब पूर्ववत् है। एवं सूराण वि। इसी प्रकार सूर्यों के द्वीप हैं। सयंभूरमणस्स समुदस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेइयंताओ स्वयम्भूरमण समुद्र की पश्चिमी वेदिका के अन्तिम भाग सयंभूरमणोदं समुद्दपुरत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साई से स्वयम्भूरमणोद समुद्र के पूर्व में बारह हजार योजन जाने ओगाहित्ता, पर है। रायहाणीओ सगाणं सगाणं दीवाणं पुरथिमे णं सयंभू- राजधानियाँ अपने अपने द्वीपों के पूर्व में स्वयम्भूरमणसमुद्र रमणं समुद्दे असंखेज्जाई जोयणसहस्साई ओगाहित्ता। में असंख्य हजार योजन जाने पर है। एत्थ णं सयंभूरण-जाव-सूरादेवा । यहाँ स्वयम्भूरमण समुद्र से—यावत्-सूर्यदेव के द्वीप है। -जीवा. पडि. ३. उ. २, सु. १६७ ग्रह वर्णन अट्ठासी महग्गहा अट्ठयासी महाग्रह७८. तत्थ खलु इमे अट्ठासीई महग्गहा पण्णत्ता, तं जहा- ७८. इनमें ये अट्ठयासी महाग्रह कहे गये हैं यथा १. इंगालए, २. वियालए, ३. लोहियक्खे, ४. सणिच्छरे, १. अंगारक, २. विकालक, ३. लोहिताक्ष, ४. शनैश्चर, ५. आहुणिए, ६. पाहुणिए, ७. कणे, ८. कणए, ६. कणकणए, ५. आधुनिक, ६. प्राधुनिक, ७. कन, ८. कनक, ६. कनकनक, १०. कणवियाणए, ११. कणसंताणए। १०. कनवितानक, ११. कनसंतानक । १२. सोमे, १३. सहिए, १४. अस्सासणे, १५. कज्जोबए, १२. सोम, १३. सहित, १४. आश्वासन, १५. कार्योपक, १६. कब्बडए, १७. अयकरए, १८. दुन्दुभए, १६. संखे, १६. कर्बटक, १७. अजकरक, १८. दुन्दुभक, १६. शंख, २०. संखवणे, २१. संखवण्णाणे, २२. कसे। २०. शंख वर्ण, २१. शंखवर्णाभ, २२. कंस। २३. कंसवण्णे, २४. कंसवण्णाभे, २५. णीले, २६. णीलो- २३. कंसवर्ण, २४. कंसवर्णाभ, २५. नील, २६. नीलाबभासे, २७. रूप्पो, २८. रूप्पोभासे, २६. भासे, ३०. भास- भास, २७. रुक्म, २८. रूप्यावभास, २९. भस्म, ३०. भस्मराशी, रासी, ३१. तिले, ३२. तिलपुप्फवण्णे, ३३. दगे। ३१. तिल, ३२. तिलपुष्पवर्ण, ३३. दक । ३४. दगपंचवणे, ३५. काए, ३६. काकंधे, ३७. इंदग्गी, ३४. दकपंचवर्ण, ३५. काय, ३६. काकंध, ३७. इन्द्राग्नि, ३८. धुमकेऊ, ३६. हरी, ४०. पिगंले, ४१. बुहे, ४२. सुक्के, ३८. धूमकेतु, ३६, हरी, ४०. पिंगल, ४१. बुध, ४२. शुक्र, ४३. बहस्सई, ४४. राहू। ४३. बृहस्पति, ४४. राहु ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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