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________________ ५८० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक लोक सूर्य की दक्षिणार्द्ध मण्डल संस्थिति : दो कोसे ऊसिता जयंताओ। परवेयाओ, बणसंडा, बहुसमरमगिज्जा भूमिभागा, मणिपेढियाओ, सो चेव अट्ठो । रायहाणीओ सerगदीवाणं पुरात्थिमेवं तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्द वीतिवतिता अण्णंमि लवणसमुद्दे । तहेव सव्वं भाणियव्वं । प० - कहि णं भंते ! बाहिरलावणगाणं सूराणं सूरदीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! लवणसमुहस्स पच्चत्थिमिल्लातो वेदियंताओ लवणसमुद्द पुरत्थिमेणं बारसजोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं बाहिरलावगाणं सूराणं सूरदीवा णामं दीवा पण्णत्ता । आयाम विक्खंभ- परिक्खेवो जहा गोतमदीवस्स । धायइड दीवंते णं अर्द्धकूणणउति जोयणाई चत्तालीसं च पंचणउतिभागे जोयणस्स ऊसिता जलंताओ, लवणसमुद्दतेणं दो कोसे उसिता जलताओ । परवेश्याओं, पसंदा, बहुसमरमगिज्जा भूमिभागा, मणिपेढियाओ, सो चेव अट्ठो । रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं तिरियमदीव-समीतियतिता अमिलवणसमूह तहेव सवं भागियन्वं । जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १६३ घायतिडवीवगाणं चन्दसूरदीवाणं पवणं७१. ५० कहि णं भंते! धायतिसंडदीवगाणं चन्दाणं चन्ददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? उ०- गोपमा ! धाडस दोस्तपुरस्थि यंताओ कालोयं णं समुदं बारसजोयणसहस्साइं ओगा हित्ता एत्थ ण धायइसंडदीवाणं चन्दाणं चन्ददीवा णामं दीवा पण्णत्ता । आयाम विक्खंभ- परिक्खेवो जहा गोतमदीवस्स । सव्वाओ समंता दो कोसा ऊसिता जलंताओ परवेश्याओ वणसंडा बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा, पासायवडिगा, मणिपेढियाओ सीहासणा सपरिवारा, सो चेव अट्टो । सूप १०७०-१०७१ लवणसमुद्र के अन्तिम भाग के जलान्त से दो कोश ऊँचे हैं । इन द्वीपों की पद्मवरवेदिकायें वनखण्ड सर्वथा सम- रमणीय भूमिभाग, मणिपीठिकायें और नाम का हेतु पूर्ववत् है । उन द्वीपों की राजधानियाँ पूर्व दिशा में तिरछे असंख्यद्वीपसमुद्रों के बाद अन्य लवणसमुद्र में है । शेष सय पूर्ववत् कहना चाहिए । ! प्र०-हे भगवत् । लवणसमुद्र के बाहर के सूपों के सूर्यद्वीप नामक द्वीप कहाँ कहे गये हैं? उ०- हे गौतम ! लवणसमुद्र की पश्चिमी वेदिका के अन्तिम भाग से लवणसमुद्र के पूर्व में बारह हजार योजन जाने पर लवणसमुद्र के बाहर के सूर्यों के सूर्यद्वीप नामक द्वीप कहे गये हैं । उन द्वीपों की लम्बाई-चौड़ाई और परिधि गौतमद्वीप के समान है । ये द्वीप धातकीखण्डद्वीप के अन्तिम भाग से अध्यासी योजन और चालीस योजन के पच्यानवें भाग (१६) ६५ जितने जलान्त से ऊंचे हैं । लवणसमुद्र के अन्तिम भाग के जलान्त से दो कोश ऊँचे हैं। इन द्वीपों की पद्मवरवेदिकायें, वनखण्ड सर्वथा समरमणीय भूमिभाग, मणिपीठिकायें, नाम का हेतु ये सब पूर्ववत् है। उन द्वीपों की राजधानियाँ पश्चिम में तिरछे असंख्यद्वीपसमुद्रों के बाद अन्य लवणसमुद्र में है। शेष सय पूर्ववत् है। धातकीखण्डद्वीप के चन्द्र-सूर्य द्वीपों का प्ररूपण७१ प्र० - हे भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ कहे गये हैं? उ०- हे गौतम! धातकीखण्डद्वीप की पूर्वी वेदका के अन्तिम भाग से कालोदसमुद्र में बारह हजार योजन जाने पर धातकीखण्डद्वीप नाम के द्वीप कहे गये हैं । उन द्वीपों को लम्बाई-चौड़ाई और परिधि गौतमद्वीप के समान है । ये द्वीप चारों ओर जलान्त से दो कोश ऊँचे हैं । इन द्वीपों की पद्मबरवेदिकायें, वनखण्ड सर्वथा समरमणीय भूमिभाग, प्रासादावतंसक मणिपीठिकायें सपरिवार सिंहासन और नाम का हेतु पूर्ववत् है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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