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________________ सूत्र१०६८-१०७० तिर्यक् लोक : लवणसमुद्र के अन्दर चन्द्र-सूर्य के द्वीपों का प्ररूपण गणितानुयोग ५७६ उ०–ता पूसे णं, पूसस्स णं तं चेव, जं पढमाए । उ -प्रथम वार्षिकी को आवृत्ति के समान सूर्य पुष्य नक्षत्र के साथ योग करता है। ५. (क) प०–ता एएसि णं पंचण्हं संवच्छराणं च पंचम (५) (क) प्र०-इन पाँच संवत्सरों की पांचवी वार्षिकी वासिक्किं आउट्टि चंदे केणं णक्खत्ते णं जोएइ? आवृत्ति में चन्द्र किस नक्षत्र से योग करता है ? उ०–ता पुव्वाहि फग्गुणीहि, पुवाफग्गुणीण बारस- उ.--पूर्वा फाल्गुनी के बारह मुहूर्त एक मुहूर्त के बासठ मुहत्ता सत्तालीसं च बावद्विभागा मुहत्तस्स भागों में से सेंतालीस भाग और बासठवें भाग के सड़सठ भागों बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तेरस चुणिया में से तेरह चूणिका भाग शेष रहने पर चन्द्र पूर्वाफाल्गुनी से योग भागा सेसा, करता है। (ख) प०-तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएइ? (ख) प्र०-उस समय सूर्य किस नक्षत्र से योग करता है ? उ०–ता पूसे णं पूसस्स णं तं चेव, जं पढमाए।' प्रथम वार्षिकी आवृत्ति के समान सूर्य पृष्य नक्षत्र के साथ -सूरिय. पा. १२, पाहु. सु. ७६ योग करता है । अभितरलावणगाणं चंद-सूरदीवाणं परूवणं- लवणसमुद्र के अन्दर के चन्द्र सूर्य द्वीपों का प्ररूपण६६. ५०-कहि णं भंते ! अम्भिंतरलावणगाणं चन्दाणं चन्ददीवा ६६. प्र०-हे भगवन् ! लवणसमुद्र के अन्दर के चन्द्रों के चन्द्रणामं दीवा पण्णत्ता ? द्वीप कहाँ कहे गये हैं ? उ०- -गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं उ-हे गौतम ! जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दरपर्वत से पूर्व लवणसमुदं बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्य गं में लवणसमुद्र में बारह हजार योजन जाने पर लवणसमुद्र के अभितरलावणगाणं चन्दाणं चन्ददीवा णाम दीवा अन्दर के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहे गये हैं। पण्णत्ता। जहा जंबुद्दीवगा चंदा तहा भाणियव्वा । जिस प्रकार जम्बूद्वीप के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहे उसी प्रकार लवणसमुद्र के अन्दर के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहने चाहिए। णवरं-रायहाणीओ अण्णमि लवणे समुद्द, सेसं विशेष-इनको राजधानियाँ अन्य लबणसमुद्र में है। शेष तं चेव । सब पूर्ववत् है। एवं अभिंतरलावणगाणं सूराण वि । तहेव सव्वं जाव इसी प्रकार लवणसमुद्र के अन्दर के सूर्यों के सूर्यद्वीप है। रायहाणीओ। --- जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १६३ सब पूर्ववत् है-यावत्-राजधानियाँ कहनी चाहिए। बाहिरलावणगाणं चन्द-सूरदोवाणं परूवणं लवणसमुद्र के बाहर के चन्द्र-सूर्य द्वीपों का प्ररूपण७०. ५०-कहि णं भंते ! बाहिरलावणगाणं चन्दाणं चन्ददीवा ७०. प्र०—हे भगवन् ! लवणसमुद्र के बाहर के चन्द्रों के चन्द्रणामं दीवा पण्णता? द्वीप कहाँ कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! लवणस्स समुदस्स पुरथिमिल्लाओ वेदि- उ-हे गौतम ! लवणसमुद्र की पूर्वी वेदिका के अन्तिम यंताओ लवणसमुदं पच्चत्थिमे णं बारसजोयणसहस्साई भाग से लवणसमुद्र के पश्चिम बारह हजार योजन जाने पर ओगाहित्ता, एत्थ णं बाहिरलावणगाणं चन्दाणं चन्द- लवणसमुद्र के बाहर के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक द्वीप कहे दीवा णाम दीवा पण्णता। गये हैं। आयाम-विक्खंभ-परिक्खेवो जहा गोतमदीवस्स । चन्द्र द्वीपों की लम्बाई-चौड़ाई और परिधि गौतमद्वीप के समान है। धायतिसंडदीवंतेणं अद्धकोणणवतिजोयणाई चत्तालीसं ये द्वीप धातकीखण्डद्वीप के अन्तिम भाग से साड़े अठ्यासी च पंचणउतिभागे जोयणस्स ऊसिताजलंतातो । योजन और चालीस योजन के पच्यानवे भाग (८८११४७) जितने जलान्त (जल-स्तर) से ऊँचे हैं। १ चन्द. पा. १२ सु. ७६ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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