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________________ ६२ '६२ ५० ६२ गणितानुयोग : प्रस्तावना ४५ युग की प्रथम आवृत्ति होती है । यह पाँच संवत्सरों में प्रथम वर्षा ध्रुवराशि मुहूर्त ५७३+३६+ ६... से गुणित करने पर युगको प्रथम आ काल भाविनी श्रावण मास में होने वाली सूर्य की दक्षिणायन गति रूप चन्द्र अभिजित नक्षत्र के साथ संपन्न होती है । ५७३५+ + - मुहूर्त होते हैं । इनमें से अभिजितादि प्रथम आवृत्ति विषयक सूर्य नक्षत्र योग : ___पंच वर्षात्मक युग में १० अयन होते हैं। उनमें ५ अयन नक्षत्र के शोधनक को शोधित करना चाहिए। वह इस प्रकार वर्षा काल में होते हैं जो दक्षिणायन गतिरूप हैं । शेष पाँच अयन अभिजित नक्षत्र से लेकर उत्तराषाढ़ा पर्यन्त २८ नक्षत्रों का उत्तरायण रूप हेमंत काल में होते हैं। १ संवत्सर में २ अयन २४, ६० होते हैं पर सूर्य नक्षत्र पर्याय एक ही होता है। अतः ५ वर्षीय १ पर्याय का शोधनक ८१६+र युग में सूर्य नक्षत्र पर्याय ५ होते हैं । १० अयन में ५ पर्याय होते अब ७ पर्याय का शोधनक बनाने हेतु इसमें ७ का गुणा करते हैं अतः १ अयन में 2 अथवा ! पर्याय होता है। हैं। स्थूल रूप से केवल ८१६ लेने पर ८१६४७ = ५७३३ होता है। ५७३५-५७३३=२ मुहूर्त अथवा १२४ बासठिया यहाँ नक्षत्र पर्याय १८३० होते हैं जो सड़सठ रूप होते हैं। मुहूर्त भाग होते हैं । अतः १+१ = होता है । अब शतभिषक आदि ६ नक्षत्र अर्द्धक्षेत्र वाले होने से ६७ अथवा ६. ६२/ ६२ ६२x६७मुहूत होता है। ६२६२ ५७. इसी प्रकार ८१६ के पश्चात् शेष रहे में भी ७ का गुणा करने ३३ वाले होते हैं जो ४६=कुल २०१ होते हैं। इसी प्रकार उत्तराभाद्रपदादि ६ नक्षत्र द्वयर्द्ध क्षेत्र वाले होने से प्रत्येक पर १६६ भाग होते हैं जिन्हें १६५ में से शोधित करने पर का मान ६७+३३.१ अथवा २०१ होता है जो २०१४६ ४०२६० - + - मूहूर्त बचते हैं। इसका सड़सठिया =कुल १२०६ = ६०३ होते हैं। अब १५ नक्षत्र शेष रहते हैं चूणि भाग -x = ४०२ . मुहूर्त होता है। इसे शेष जो समक्षेत्र वाले ३० मुहूर्त प्रमाण के ६७ भाग रहते हैं अतः वे ६२ ६७ ६२४६७ ६७४१५=कुल १००५ होते हैं। अभिजित नक्षत्र समाहृत स्वरूप वाला सबसे अधोवर्ति होता है; उसका सढ़सठिया भाग २१ ६० में जोड़ने पर कुलकर ४६२ ६२x६७ ६२४६७ '६२४६७ ६२४ ६७ होता है। इन सभी का योग २०१+६०३+१००५+२१ = १८३० होता है। मुहूर्त होता है जिसमें से अब ८१६+ के बाद शेष रहे. इस प्रकार सढ़सठिया भाग कुल. १८३० भावात्मक परिपूर्ण नक्षत्र पर्याय होता है जिसका आधा ६१५ होता है। इनमें से ६६४७ अभिजित के २१ घटाने पर ६१५ - २१ =८९४ शेष रहते हैं । में ७ का गुणन करके शोधित करेंगे। इस प्रकार : ६२x६७ इनको ६७ से विभाजित करने पर लब्ध शेष ४६२ o आता है। ६२४६७ शेष होता है। उनमें से १३ द्वारा पुनर्वसु पर्यन्त के नक्षत्र शुद्ध २x६७ ८६४ होते हैं । शेष जो २३ रहता है उसके २३४३० = ६६० मुहूर्त अतः पूर्वोक्त ४६२ में से ४६२ प्राप्त राशि घटाने ६२४६७६२X६७ पर शून्य रहता है। अतः समग्र उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का चन्द्र के साथ योग होने पर तत्पश्चात् अभिजित नक्षत्र के प्रथम समय में होते हैं जो १०+ - मुहूर्त होते हैं। इससे ज्ञात ६२६२x६७"
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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