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________________ सूत्र १०६३ तिर्यक् लोक : चन्द्र-सूर्य अर्द्धमास में चन्द्र-सूर्य को मण्डल-गति गणितानुयोग ५७१ ता दोच्चायणगए चंदे पच्चत्थिमाए भागाए णिक्ख- द्वितीय अयनगत चन्द्र सर्वाभ्यन्तर मंडल के पश्चिम भाग ममाणे छ चउप्पण्णाइं जाई चंदे परस्स चिण्णं से निष्क्रमण करता हुआ (अर्द्ध मंडल के) सड़सठ भागों में से पडिचरइ, छ तेरसगाई चंदे अप्पणो चिण्णं पडि- चौवन भागों में जिनमें अन्य संचरित मंडल के भागों में चन्द्र चरइ, गति करता है और (अर्द्ध मंडल के) सडसठ भागों में से तेरह भागों मे जिनमें स्वयं संचरित मंडल के भागों में चन्द्र गति करता है। अवर गाई खलु दुवे तेरसगाई जाई चंदे केणइ दो दूसरे तेरह भाग हैं, जिनमें चन्द्र किसी असामान्य गति असामण्णगाई सयमेव पविट्ठित्ता पविट्टित्ता चारं चरइ, से स्वयं प्रवेश कर करके गति करता है । २.५०- -कयराइं खलु ताई दुवे तेरसगाई जाइं चंदे केणइ (२) प्र०-वे कौनसे दो दूसरे तेरह भाग हैं जिनमें चन्द्र असामण्णागाइं सयमेव पविद्वित्ता पविद्वित्ता चारं किसी असामान्य गति से स्वयं प्रवेश कर करके गति करता है ? चरइ? उ०-इमाइं खलु ताई दुवे तेरसगाई जाइं चंदे केणइ उ०-वे ये दो दूसरे तेरह भाग हैं जिनमें चन्द्र किसी असामण्णगाई सयमेव पविद्वित्ता पविद्वित्ता चारं असामान्य गति से स्वयं प्रवेश कर करके गति करता है। चरइ. १. सव्वन्भंतरे चेव मण्डले, सर्व आम्पन्तर मंडल के (सड़सठ भागों में से तेरह भाग), २. सव्वबाहिरे चेव मण्डले, सर्व बाह्यमंडल के (सड़सठ भागों में से तेरह भाग), एयाणि खलु ताणि दुवे तेरसगाई जाइं चंदे केणइ ये वे दो दूसरे तेरह भाग हैं जिनमें चन्द्र किसी असामान्य असामण्णगाई सयमेव पविट्टित्ता पविद्वित्ता चारं गति से स्वयं प्रवेश कर करके गति करता है । चरइ, एयावया दोच्चे चंदायणे समत्ते भवइ, यह दूसरा चन्द्रायण समाप्त हुआ । तच्चे चंदायणे तृतीय चन्द्रायणता णक्खत्ते मासे नो चंदे मासे, नक्षत्र मास है, वह चन्द्रमास नहीं है, चंदे मासे नो णक्खत्ते मासे, चन्द्र मास है, वह नक्षत्र मास नहीं है, १.५०-ता णक्खत्ताए मासाए चंदे चंदेणं मासे णं किमधिय प्र०-चन्द्रनक्षत्र मास से चान्द्रमास में कितनी अधिक गति चरइ? करता है? उ०-ता दो अद्धमण्डलाइंचरइ अट्ठ य सत्तट्टि भागाई उ०-दो अर्द्धमंडल तथा अर्द्धमंडल से सड़सठ भागों में से अद्धमण्डलस्स, सत्तट्ठिभागं च एक्कतीसधा छेत्ता आठ भाग और सड़सठवें भाग के इकवीस भागों में से अठारह अट्ठारस भागाई, भाग अधिक गति करता है । ता तच्चायणगए चंदे पच्चत्थिमाए भागाए पविस- तृतीय अयनगत चन्द्र पश्चिमी बाह्यानन्तर अर्द्धमंडल के माणे बाहिराणंतरस्स पच्चथिमिल्लस्स अद्धमण्डल- सड़सठ भागों में से स्व-संचरित इकतालीस भाग से प्रवेश स्स इगयालीसं सत्तट्ठिभागाइं जाई चंदे अप्पणो, करता हुआ गति करता है । परस्स य चिन्नं पडिचरइ, तेरस सत्तट्ठिभागाई जाई चंदे परस्स चिण्णं पडि- उसी अर्द्धमंडल के सड़सठ भागों में से पर संचरित तेरह चरइ, भागों में जिनसे चन्द्र (बाह्यानन्तर मण्डल के पश्चिमी भाग से प्रवेश करता हुमा) गति करता है। तेरस सत्तट्ठिभागाइं चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं उसी अर्द्धमण्डल के सड़सठ भागों में से स्व-पर संचरित पडिचरइ, तेरह भागों में, जिनमें चन्द्र (बाह्यानन्तर मण्डल के पश्चिमी भाग से प्रवेश करता हुआ) गति करता है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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