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________________ ५६८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : एक युग में सूर्य और चन्द्र की गति संख्या सूत्र १०६१-१०६२ www ता एगे वि सूरिए एग दिवड्ढं पंच चक्कभागं ओभा- एक सूर्य (भरत का) पाँच चक्र भागों में से (पूर्वोक्त तीन सेइ-जाव-पगासेइ, भाग के आधे) डेढ़ भाग को अवभासित करता है-यावत् प्रकाशित करता है। ता एगे वि सूरिए एग दिवड्ढं पंच चक्कभागं ओभा- एक सूर्य (ऐरवत) पाँच चक्र भागों में से (पूर्वोक्त तीन भाग सेइ-जाव-पगासेइ, के आधे डेढ़ भाग को अवभासित करता है यावत्-प्रकाशित करता है। तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का भवइ जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, दिन होता है, जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । ता जया णं एए दुवे सूरिया सब्वबाहिर मण्डलं उव- जब ये दोनों सूर्य सर्व बाह्यमण्डल को प्राप्त करके गति संकमित्ता चारं चरंति, तया णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स करते हैं, तब जम्बूद्वीप द्वीप के पाँच चक्रभागों में से दो चक्र दोण्णि पंच चक्कभागे ओभासेन्ति-जाव पगासेन्ति, भागों को अवभासित करते हैं-यावत्-प्रकाशित करते हैं। ता एगे वि सूरिए एग पंच चक्कवालभागं ओभासेइ एक सूर्य (भरत का) पाँच चक्र भागों में से (पूर्वोक्त तीन -जाव-पगासेइ, के बाद शेष रहे दो में से) एक चक्र भाग को अवभासित करता है-यावत्-प्रकाशित करता है। ता एगे वि सूरिए एग पंच चक्कवालभागं ओभासेइ एक सूर्य (ऐरवत का) पाँच चक्र भागों में से (पूर्वोत्तर दो में -जाव-पगासेइ, से शेष रहे) एक चक्र भाग को अवभासित करता है-यावत् प्रकाशित करता है। तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की भवइ जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ,' रात्रि होती है; जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है। -सूरिय. पा. ३, सु. २४ एगे जुगे आदिच्च-चन्द चार संखा एक युग में सूर्य और चन्द्र की गति संख्या६२. ५०–ता कहं ते चारा? आहिए त्ति वएज्जा, ६२. ५०-(एक युग में सूर्य-पेन्द्र की) गति कितनी बार होती उ०-तत्थ खलु इमा दुविहा चारा पण्णत्ता, तं जहा १. आदिच्चचारा य, २. चंदचारा य, १०-(क) ता कहं ते चंदचारा? आहिएत्ति वएज्जा, उ०—ये दो प्रकार की गति कही गई है, यथा-(१) सूर्य की गति, (२) चन्द्र की गति । प्र०—(क (एक युग में) चन्द्र की गति कितनी बार होती है ? कहैं, उ०- ता पंच संवच्छरिए णं जुगे, १. अभीइ णक्खत्ते सत्तसद्विचारे चंदेण सद्धि जोगं जोएइ, २. सवणे णक्खत्ते सत्तसद्विचारे चंदेण सद्धि जोगं जोएइ, एवं-जाव-, ३-२८. उत्तरासाढा णक्खत्ते सत्तसद्विचारे चदेण सद्धि जोगं जोएइ, उ०—पाँच संवत्सर का एक युग होता है, (ऐसे एक युग में) (१) अभिजित नक्षत्र सडसठ (६७) बार चन्द्र के साथ योग योग करता है। (२) श्रवण नक्षत्र सडसठ (६७) बार चन्द्र के साथ योग करता है-इस प्रकार-यावत् (३-२८) उत्तराषाढा नक्षत्र सडसठ (६७) बार चन्द्र के साथ योग करता है। १ चन्द. पा. ३ सू. २४ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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