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सूत्र १०६१
तिर्यक् लोक : चन्द्र-सूर्यों का अवमास, उद्योत, ताप और प्रकाशक्षेत्र
गणितानुयोग
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एगे पुण एवमाहंसु
एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है६. ता बायालीसं दीवसयं, बायालीसं समुद्दसयं चंदिम- (९) चन्द्र और सूर्य एक सौ बियालीस द्वीप तथा एक सौ सूरिया ओभासेंति-जाव-पगासेंति, एगे एवमाहंसु, बियालीस समुद्रों को अवभासित करते हैं यावत्-प्रकाशित
करते हैं। एगे पुण एवमाहंसु
एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है१०. ता बावरि दीवसयं बावरि समुद्दसयं चंदिम- (१०) चन्द्र और सूर्य एक सौ बहत्तर द्वीप तथा एक सौ सूरिया ओभार्सेति,-जाव-पगासेंति, एगे एवमाहंसु, बहत्तर समुद्रों को अवभासित करते हैं यावत्-प्रकाशित
करते हैं। एगे पुण एवमाहंसु
एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है११. ता बायालीसं दीवसहस्स, बायालीसं समुद्दसहस्सं (११) चन्द्र और सूर्य बियालीस हजार द्वीप तथा बियालीस चंदिम-सूरिया ओभासेंति-जाव-पगासेन्ति, एगे एवमाहंसु, हजार समुद्रों को अवभासित करते हैं—यावत -प्रकाशित
करते हैं। एगे पुण एवमाहंसु
एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है१२. ता बावत्तरं दीवसहस्सं बावत्तरं समुद्दसहस्सं (१२) चन्द्र और सूर्य बहत्तर हजार द्वीप तथा बहत्तर हजार चंदिम-सूरिया ओभासेंति-जाव-पगासेति, एगे एवमाहंसु, समुद्रों को अवभासित करते हैं-यावत -प्रकाशित करते हैं। वयं पुण एवं वयामो
हम फिर इस प्रकार कहते हैंता अयण्णं जंबुद्दीवे दोडे सव्व दीद-समुद्दाणं सम्वन्भंत- यह जम्बूद्वीप द्वीप सब द्वीप समुद्रों के अन्दर है सबसे छोटा राए सव्वखुड्डागे वट्ट -जाव-जोयणसहस्समायाम- है, वृत्ताकार है-यावत्-एक लाख योजन लम्बा चौड़ा है, तीन विक्खंभे णं तिण्णि जोयणसयसहस्साइं, दोण्णि य सत्ता- तीन लाख दो सौ सत्तावीस योज। तीन कोस एक सौ अट्ठावीस वीसे जोयणसए, तिण्णि कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं, धनुष तेरह अंगुल और आधे अंगुल से कुछ अधिक की परिधि तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचि विसेसाहिए परि- कही गई है। क्खेवे णं पण्णत्ते, से णं एगाए जगईए सव्वओ समंता संपरिकखित्ते, साणं वह जम्बूद्वीप चारों ओर एक जगती से घिरा हुआ है। वह जगई अटु-जोयणाई उड्ढे उच्चत्ते णं पण्णत्ता, जगती आठ योजन ऊँची कही गई है । एवं जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए-जाव- एवामेव सपुव्वा- जिस प्रकार जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में कहा है उसी प्रकार पूर्वापर वरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोद्दस सलिलासयसहस्सा छप्पण्णं को मिलाकर जम्बूद्वीप द्वीप में चौदह लाख छप्पन हजार नदियाँ च सलिलासहस्सा भवंतीतिमक्खायं,
हैं; ऐसा कहा गया है। जंबुद्दीवे गं दीवे पंच चक्कभागसंठिया, आहियात्ति जम्बूद्वीप पाँच चक्र भाग संस्थान से स्थित है।
वएज्जा, ५०-ता कहं गं जंबुदीवे दीवे पच चक्कभागसंठिए? आहिए प्र०-जम्बूद्वीप द्वीप में पाँच चक्र भाग कौन से हैं ? कहें,
त्ति वएज्जा, उ०–ता जया णं एए दुवे सूरिया सव्वन्भतरं मण्डलं उव- उ०-जब ये दोनों (एक भरत का और एक ऐरवत का)
संकमित्ता चारं चरन्ति, तया णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स सूर्य सर्वाभ्यन्तरमण्डल को प्राप्त करके गति करते हैं तब तिण्णि पंच चक्कभागे ओभाति-जाव-पगासेन्ति, जम्बूद्वीप द्वीप के पाँच चक्रभागों में से तीन चक्र भागों को तं जहा--
अवभासित करते हैं-यावत्-प्रकाशित करते हैं । यथा
१ जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति के प्रथम वक्षस्कार सूत्रांक ४ से षष्ठवक्षस्कार सूत्रांक १२५ पर्यन्त के सभी सूत्रों के पाठ यहाँ समझने की
सूचना है।