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लोक- प्रज्ञप्ति
४. एगे पुण एवमाहंसु
ता विसमचउक्कोणसंठिया चंदिम-सूरिय संठिती पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु,
५. एगे
एवमाहं
ता सम चक्कवालसंठिया चंदिम-सूरिय संठिती पण्णत्ता, एगे एवमाहं
तिर्यक् लोक चन्द्र-सूर्य की संस्थिति
६. एगे पुण एवमाहंसु -
ता विसय चवालसंठिया बंदिमसूरिय संडिसी पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु,
७. एगे पुण एवमाहंसु -
ता चक्कद्धचक्कवालसंठिया बंदिम-सूरिय संहिती पण एगे एवमु
८. एगे पुण एवमाहंसु
ता सागारसंठिया दिम-रियो सा एगे एमा
२. एगे पुण एवमाहं -
लागेसंडवा चंदिमसूरिय संठिती पणता एगे
एमा
१०. एगे
एवाहं
ता गेहायणसंडिया चंदिमरिय संडितो पणा, एगे एमा
११. पुर्ण एवमातुतापासासंठिया दिम-सूरियसहितो पलाए एवमाहंसु,
१२. ए
ता गोपुरखंडिया विम-सूरियसंहितो पत्ता, एगे एवमाहंसु,
१३. एगे एमासापेछाघरसंदिया चंदिम-सूरियसंहिती पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु
१४. एगे पुण एवमाहंसु
ता वलभीसंठिया चंदिम-सूरियसंठिती पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु
१२. ए
एमा ता हम्मियतलसंठिया चंदिम-सूरियसंठिती पण्णत्ता, एएमा
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एमासु
(४) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की विषमचतुष्कोण संस्थिति है ।
(५) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की समचक्राकार संस्थिति है ।
(६) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की विषम चक्राकार संस्थिति है ।
(७) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की अर्धचक्राकार संस्थिति है ।
(८) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की छत्राकार संस्थिति हैं ।
(६) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की गृहाकार संस्थिति है।
सूत्र १०५६
(१०) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की गृहाण (घर-दुकान साथ) जैसी स्थिति है
(११) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की प्रासादाकार संस्थिति है ।
(१२) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की गोराकार संस्थिति है।
(१३) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की प्रेक्षागृहाकार संस्थिति है।
(१४) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की बलभी (घर के छप्पर) जैसी स्थिति है।
(१५) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं,
सूर्य की हल (तलघर) जैसी संस्थिति है।