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________________ ૫૬૪ लोक- प्रज्ञप्ति ४. एगे पुण एवमाहंसु ता विसमचउक्कोणसंठिया चंदिम-सूरिय संठिती पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु, ५. एगे एवमाहं ता सम चक्कवालसंठिया चंदिम-सूरिय संठिती पण्णत्ता, एगे एवमाहं तिर्यक् लोक चन्द्र-सूर्य की संस्थिति ६. एगे पुण एवमाहंसु - ता विसय चवालसंठिया बंदिमसूरिय संडिसी पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु, ७. एगे पुण एवमाहंसु - ता चक्कद्धचक्कवालसंठिया बंदिम-सूरिय संहिती पण एगे एवमु ८. एगे पुण एवमाहंसु ता सागारसंठिया दिम-रियो सा एगे एमा २. एगे पुण एवमाहं - लागेसंडवा चंदिमसूरिय संठिती पणता एगे एमा १०. एगे एवाहं ता गेहायणसंडिया चंदिमरिय संडितो पणा, एगे एमा ११. पुर्ण एवमातुतापासासंठिया दिम-सूरियसहितो पलाए एवमाहंसु, १२. ए ता गोपुरखंडिया विम-सूरियसंहितो पत्ता, एगे एवमाहंसु, १३. एगे एमासापेछाघरसंदिया चंदिम-सूरियसंहिती पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु १४. एगे पुण एवमाहंसु ता वलभीसंठिया चंदिम-सूरियसंठिती पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु १२. ए एमा ता हम्मियतलसंठिया चंदिम-सूरियसंठिती पण्णत्ता, एएमा 37 एमासु (४) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की विषमचतुष्कोण संस्थिति है । (५) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की समचक्राकार संस्थिति है । (६) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की विषम चक्राकार संस्थिति है । (७) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की अर्धचक्राकार संस्थिति है । (८) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की छत्राकार संस्थिति हैं । (६) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की गृहाकार संस्थिति है। सूत्र १०५६ (१०) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की गृहाण (घर-दुकान साथ) जैसी स्थिति है (११) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की प्रासादाकार संस्थिति है । (१२) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की गोराकार संस्थिति है। (१३) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की प्रेक्षागृहाकार संस्थिति है। (१४) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, चन्द्र-सूर्य की बलभी (घर के छप्पर) जैसी स्थिति है। (१५) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, सूर्य की हल (तलघर) जैसी संस्थिति है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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