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सूत्र १०५७-१०५६
तिर्यक् लोक : चन्द्र-सूर्य मण्डलों के समांश कर प्ररूपण
गणितानुयोग
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एएणं गएणं णायव्वं, णो चेव णं इयरेहिं ।' केवल इस प्रतिपत्ति का यह कथन नयानुसार (हमारी मान्यता
नुसार) जानना चाहिए शेष (पूर्वोक्त) सात प्रतिपत्तियों का कथन हमारी मान्यतानुसार नहीं है—(क्योंकि ऊपर उठाये हए अर्धकपित्थ के आकार जैसे चन्द्र-सूर्य के सभी मंडल-विमान हैं ।
अर्ध-कपित्थ और छत्र के आकार में साम्य हैं ।) पाहुडगाहाओ भाणियब्वाओ।
यहाँ प्राभत गाथायें कहनी चाहिए। ----सूरिय. पा. १, पाहु. ७, सु. १६ चन्द-सूर मण्डलाणं समंस-परूवणं
चन्द्र-सूर्य मंडलों के समांश का प्ररूपण५८. चंद मण्डले णं एगसट्ठि विभाग विभाइए समसे पण्णता । ५८. चन्द्र मंडल का समाश एक योजन के इकनट विभाग करने
पर पैंतालीम (४५) होता है। एवं सूरस्स वि।
-सम. ६१, सु, ३.४ इसी प्रकार सूर्यमंडल का समांश भी है। चंदिम-सूरियसंठिई
चन्द्र-सूर्य की संस्थिति५६. ५०–ता कहं ते सेआते' संठिइ आहिताति बदेज्जा? ५६. प्र०---श्वेतता की संस्थिति (आकार) किस प्रकार की कही
गई है ? कहैं। उ०-तत्थ खलु इमा दुविहा संठिती पण्णत्ता, तं जहा-- उ०—यह संस्थिति दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. चंदिम-सूरियसंठिती य, २. तावक्खेत्तसंठिती य, (१) चन्द्र-सूर्य की संस्थिति, (२) तापक्षेत्र की संस्थिति । ५०-ता कहं ते चंदिम-सूरियसंठिती आहिताति वदेज्जा ? प्र०--चन्द्र-सूर्य की संस्थिति किस प्रकार की कही गई है ? उ०–तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, उ०-इस विषय में सोलह प्रतिपत्तियाँ (मान्यतायें) कही तं जहा
गई हैं, यथा१. तत्थेगे एवमाहंसु
(१) उनमें से एक मान्यता वाले इस प्रकार कहते हैं, ता समचउरंससंठिया चंदिम-सूरियसंठिती पण्णत्ता एगे चन्द्र-सूर्य की समचतुरस्र संस्थिति है । एवमाहंसु, २. एगे पुण एवमाहंसु
(२) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, ता विसम चउरंससंठिया चंदिम-सूरियसंठिती पण्णत्ता, चन्द्र-सूर्य की विषम चतुरस्र संस्थिति है । एगे एवमाहंसु, ३. एगे पुण एवमाहंसु
(३) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं, ता सम चउकोणसंठिया चंदिम-सूरिय संठिती पण्णत्ता, चन्द्र-सूर्य की समचतुष्कोण संस्थिति है। एगे एवमाहंसु,
प्र०
१ चन्द. पा. १, सु. १६ ।
२ ये गाथायें उपलब्ध नहीं हैं। ३ वृत्तिकार ने "श्वेतता" की व्याख्या इस प्रकार की है
"इह श्वेतता चन्द्र-सूर्य विमानानामपि विद्यते, तत्कृततापक्षेत्रस्य च, ततः श्वेततायोगादुभयमपि श्वेतताशब्देनोच्यते । ४ चन्द्र-सूर्य विमानों के संस्थान अन्यत्र कहे गये हैं अतः चन्द्र-सूर्य विमानों की संस्थिति के सम्बन्ध में प्रश्नकर्ता के अभिप्राय का
स्पष्टीकरण वृत्तिकार ने इस प्रकार किया है"इह चन्द्र-सूर्यविमानानां संस्थानरूपा संस्थिति प्रागेवाभिहिता तत इह चन्द्र-सूर्य विमान-संस्थितिश्चतुर्णामपि अवस्थानरूपा पृष्टा द्रष्टव्या"