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________________ ५६२ लोक- प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक चन्द्र-सूर्य मण्डलों का आकार : धरा, वरमल्लधरा, वराभरणधरा अवोछित्तिणयट्टयाए श्रेष्ठ वस्त्र धारण करने वाले हैं, श्रेष्ठ मालायें धारण करने वाले अन्ते चयंति, अन्ने उबवति १ चंद-सूर-मण्डल संठि ५७. प० - ता कहं ते मंडल संठिर्ड ? आहितेति वदेज्जा, उ०- तत्थ खलु इमाओ अट्ठ पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - सूरिय. पा. २०, सु. १०२ होते हैं । तत्थेगे एवमाहंसु - १. ता सव्वावि णं मण्डलावता समचउरंस संठाण संठिया पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु - २. ता सव्वावि णं मण्डलावता विसमचउरंस संठाण सठिया पण्णत्ता, एगे एवमाहं एगे पुण एवमाहंसु ३. ता सब्वावि णं मण्डलावता समचउक्कोण संठिया पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु ४. ता सव्वा वि णं मण्डलावता विसमचउक्कोणसंठिया पाएमा एगे पुण एवमाहंसु ५. ता सव्वा वि णं मण्डलावता समचक्कवालसंठिया पणता एगे एवमाहंसु १ चंद. पा. २०, मू. १०२ । एगे पुण एवमाहंसु ६. ता सव्वा वि णं मण्डलावता विसमचक्कवालसंठिया पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाह - ७. ता सव्वा विणं मण्डलावता चक्कद्धचक्कवालसंठिया पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंमु ८. ता सव्वा वि णं मण्डलावता छत्तागारसंठिया पाएंगे एमा तर ते एमा ता सव्वा वि णं मण्डलावता छत्तागारसंठिया पण्णत्ता, सूत्र १०५६- १०५७ हैं, श्रेष्ठ आभूषण धारण करने वाले हैं, द्रव्यार्थिक नम से पूर्वोत्पन्न अन्य ययते (देह स्युत होते हैं और अन्य उत्पन्न चन्द्र-सूर्य के मंडलों का आकार ५७. प्र० - ( चन्द्र सूर्य के ) मंडलों की संस्थिति कैसी है ? उ०—इस सम्बन्ध में ये आठ प्रतिपत्तियाँ ( मतान्तर ) कही गई हैं, यथा इनमें से एक मत वालों ने ऐसा कहा है (१) चन्द्र-सूर्य के सभी मंडल समचतुरख संस्थान से स्थित हैं । एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है (२) (चन्द्र-सूर्य के सभी मंडल मिचतुरस्र संस्थान से स्थित हैं । एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है (३) (चन्द्र-सूर्य के ) सभी मंडल समचतुष्कोण रूप में स्थित है। एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है (४) (चन्द्र-सूर्य के सभी मंडल विषम चतुष्कोण रूप में स्थित हैं । एक (मत वालों) ने किर ऐसा कहा है (५) ( चन्द्र-सूर्य के ) सभी मंडल समचक्रवालरूप में स्थित हैं । एक (मत वालों ने फिर ऐसा कहा है (५) (चन्द्र-सूर्य के सभी मंडल विषमवाल रूप में स्थित हैं । एक ( मतवालों) ने फिर ऐसा कहा है (७) (चन्द्र-सूर्य के सभी मंडल अर्धक के चक्रवाल के रूप में स्थित है। एक (मत वालों ने फिर ऐसा कहा है (८) (चन्द्र-सूर्य के ) सभी मंडल छत्राकार के रूप में स्थित हैं । इनमें से जिन्होंने ऐसा कहा है ( चन्द्र-सूर्य के ) सभी मंडल छत्राकार के रूप में स्थित हैं
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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