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________________ सूत्र १०५५-१०५६ तिर्यक् लोक : दक्षिणार्ण- उत्तरार्ध मनुष्य क्षेत्र में ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र-सूर्य गणितानुयोग दाहिणड्डे उत्तर माणुस्सखेले जो सिदा चंद दक्षिणार्थ- उत्तरार्धं मनुष्य क्षेत्र में ज्योतिषकेन्द्र चन्द्र-सूर्यसूरिया- ५५. दाहिगड माणूसवेत्ताणं छावडिं चन्दा पभासि वा पा संति वा, पभासिस्संति वा छाट्ठ सूरिया तवइंसु वा तव इति वा तदति वा उत्तरड्ढमाणुस्सखेत्ता णं छार्वाट्ठ चन्दा पभासिंसु वा पभासंति वा, पभासिस्संति वा, छाट्ठ सूरिया तवइंसु वा तवइंति वा, तवइस्संति वा, - सम. ६६, सु. १-४ चंदिम सूरियाणं अणुभावो (सब) - २६. १० ते अणुमाये ? आहिए सि बाजा उ०—ता तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा तत्येंगे एवमाहंसु — १. ता चंदिम- सूरिया णं--नो जीवा, अजीवा, नो पणा, सिरा 7 नो बादरबोंदिधरा कलेवरा, नत्थि णं तेसि - १. उट्ठाणे इ वा, २. कम्मेइ वा, ३. बलेइ वा ४. वीरिएइ वा ५. पुरिसक्कारपरक्कमेड वा. नो बितति, नो अणि लवंति नो घणियं सयंत अहे य णं बादरे वाउकाए संमुच्छइ, संमुच्छित्ता विज्जु पि लवंत, असिणं पि लवंति, थणियं पि लवंति "एगे एवमाहंसु " एगे पुण एवमाहं २. तादिमरिया गंजीवा नो अजीवा, पण को सिरा 7 बादरबोंदिधरा, नो कलेवरा, अत्थि णं तेंसि १. उट्ठाणेइवा, २. कम्मेइवा, ३. बलेइ बा ४. परि. पुरिसस्कारपरक्कमेड वा ते विज्जु पि लवंति — असण पि लवंति थणियं पि ति "एगे एमासु" वयं पुण एवं वयामो ता चंदिम सूरिया णं देवाणं महिड्डिया महज्जुइया, महब्बला, महाजसा, महासोक्खा, महाणुभागा वरवत्थ ५६१ ५५. दक्षिणार्ध मनुष्यक्षेत्र में छियासठ चन्द्र प्रभासित हुए हैं। प्रभासित होते हैं और प्रभासित होंगे। छियासठ सूर्य तपे हैं, तपते है और तपेंगे। उत्तरार्ध मनुष्यक्षेत्र में छियासठ चन्द्र प्रभावित हुए हैं प्रभासित होते हैं और प्रभासित होंगे। छियासठ सूर्य तपे हैं, तपते हैं और तपेंगे । चन्द्र और सूर्यो का अनुभाव (स्वरूप) - - ५६. प्र० - ( चन्द्र और सूर्यो का ) अनुभाव ( विशेष स्वरूप) कैसा है ? कहें। उ०- इस सम्बन्ध में ये दो प्रतिपत्तियाँ ( अन्य मान्यतायें) कही गई हैं, यथा उनमें से एक मान्यता वाले इस प्रकार कहते हैं (१) पन्द्र और सूर्य जीव नहीं है, अजीब है, घनीभूत नहीं है, छिद्रों वाले है, स्थूल (सजीव, सुव्यक्त, अवयवयुक्त) शरीर वाले नहीं हैं। केवल कलेवर हैं, उनमें उत्थान, कर्म, बल-वीर्य और पुरुषाकार-पराक्रम नहीं है, न वे विद्युत उत्पन्न करते हैं, न वे कड़कते हैं, न वे गर्जते हैं, उनके नीचे स्थूल (घन ) वायु उत्पन्न होता है उससे विद्युत उत्पन्न होती है, कड़कने का भयंकर शब्द होता है, गर्जना भी होती है। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं (२) चन्द्र-सूर्य जीव है, अजीब नहीं है। पन (ठोस वाले नहीं है। स्कूल (राजीव सुव्यक्त अवयव युक्त) शरीर वाले हैं, ले नहीं है। उनमें उत्थान कर्म बल-वीर्य और पुरुषाकार पराक्रम है। विद्युत उत्पन्न करते हैं, कहते हैं, गरजते हैं। हम फिर इस प्रकार कहते हैं चन्द्रसूर्यदेवमधिक है, महावृति वाले हैं, महाल वाले हैं, महायश वाले हैं, अत्यधिक सुखी हैं, बड़े भाग्यशाली हैं, +
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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