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________________ सूत्र १०५१-१०५३ तिर्यक् लोक : चन्द्र-सूर्य वर्णन गणितानुयोग २५६ एवं खलु एएणं उवाएणं ताए ताए अमावासटाणाए इस प्रकार इस क्रम से उन उन अमावस्याओं में आगे वाले मण्डलं चउन्बीसे गं सएणं छत्ता, चउणउई चउण- प्रत्येक मंडल के एक सौ चौवीस एक सौ चौवीस विभाग करके उई भागे उवाइणावेत्ता तंसि तंसि देसंसि तं तं अमा- उनमें से चुरानवें चुरानवें विभाग लेफर उन उन विभागों में वासं सूरिए जोएइ, उन उन अमावस्याओं को सूर्य योग करता है। ५०–ता एए सि णं पंचण्हं संवच्छराणं चरिमं बावट्ठि अमा- प्र०-इन पाँच संवत्सरों की अन्तिम बासठवीं अमावस्या वास सूरे कंसि देस सि जोएइ ? को सूर्य मंडल के किस देश-विभाग में योग करता है? उ०–ता जंसि गं देसंसि सूरे चरिमं बाढि अमावासं उ०—सूर्य अन्तिम बासठवीं अमावस्या को मंडल के जिस जोएइ, ताए पुण्णिमासिणिठाणाए मण्डलं चउब्बीसे देश में योग करता है उसी पूर्णिमा स्थान से आगे वाले मंडल के णं सएणं छत्ता सत्तालीस भागे ओसक्कावइत्ता, एत्य एक सौ चौवीस विभाग करके उनमें से सेंतालीस भाग पीछे णं से सूरिए, चरिम बाट्ठि अमावासं जोएइ,' रखकर शेष भागों में सूर्य अन्तिम वासठवीं अमावस्या को योग -सूरिय. पा. १०, पाहु. २२, सु. ६६ करता है । चन्द्र-सूर्य वर्णन जोइसिन्दा चंद-सूरिया ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र और सूर्य१०५२. चंदिम-सुरिया यऽतत्थ दुवे जोइसिंदा जोइसियरायाणो परि- ५२. यहाँ दो ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र और सूर्य रहते हैं वे वंसति महिड्ढिया जाव पभासेमाणा, महधिक हैं—यावत्-दैदिप्यमान हैं । ते णं तत्थ साणं साणं जोइसियविमाणावाससतहस्साणं, वे वहाँ अपने अपने ज्योतिष विमानवासी लाखों देवों के, चउण्हं सामाणियसाहस्सोणं, चार हजार सामानिक देवों के, चउण्हं अग्गमहिसोणं सपरिवाराणं, चार सपरिवार अग्रमहिषियों के, तिण्हं परिसाणं, तीन परिषदाओं के, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाधिवतीणं, सात सेनाओं के, सात सेनाधिपतियों के, सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों के. अण्णेसि च बहूणं जोइसियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं और अन्य अनेक देव-देवियों के आधिपत्य अग्रमामित्व को पोरेवच्चं जाव विहरंति, -पण्ण. प, २, सु. १६५ (२) प्राप्त करके -यावत् -विहरण करते हैं । एगमेगस्स चंदिम-सूरियस्स परिवार परूवणं- प्रत्येक चन्द्र-सूर्य के परिवार का प्ररूपण--- ५३. ५०–एगमेगस्स णं भंते । चंदिम-सूरियस्स, ५३. प्र०-भगवन् ! प्रत्येक चन्द्र-सूर्य के, १ चन्द. पा. १० सु. ६६ । २ (क) ठाणं अ. २, उ. ३, सु. १०५ । (ख) भग. स. ३, उ. ८, सु. ८ । ३ “एगमेगस्स णं चन्दिम-सूरियस्स"-जीवा. सूत्र १६४ में इतना गद्य अंश देकर दो गाथाएँ दी गई हैंगाहाए-अट्ठासीति च गहा, अट्ठावीसं च होइ णक्खत्ता । एगससी परिवारो. एत्तो ताराण बोच्छामि ।। छावट्ठि सहस्साइं, णव चेव सयाई पंचसयराई । एगससी परिवारो, तारागण कोडि कोडीणं ।। जीवा. सूत्र १७७ में भी ये दोनों गाथाएँ हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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