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________________ ५५८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : सूर्य का अमावस्याओं में योग सूत्र १०५०-१०५१ वई भागे उवाइणावेत्ता,' तंसि णं देसंसि तं तं उनमें से प्रत्येक मंडल के चौरानवें चौरानवें भाग लेकर उन उन पुणिमासिणि सूरे जोएइ, विभागों में उन उन पूर्णिमाओं को सूर्य योग करता है । ५. ५०–ता एएसि गं पंचण्हं संवच्छराणं चरिमं बाट्ठि (५) प्र०—इन पाँच संवत्सरों की अन्तिम बासठवीं पूर्णिमा पुण्णिमासिणिं सूरे कंसि देसंसि जोएइ? को सूर्य मंडल के किस देश-विभाग में योग करता है ? उ०-ता जंबुद्दीवस्स गं दीवस्स पाईण-पडिणाणयाए उ०-जम्बूद्वीप द्वीप के ईशान एवं नैऋत्यकोण स्थित उदीण दाहिणाययाए जीवाए मण्डलं चउब्बीसे गं लम्बी जीवा में मंडल के एक सौ चौवीस विभाग करके पूर्व वाले सए णं छत्ता पुरथिमिल्लसि चउभागमण्डलसि मंडल के चार भागों में से सत्तावीस भाग लेकर अट्ठावीसवें सत्तावीसं भागे उवाइणावेत्ता अट्ठावीसइभागं वीसहा भाग के बीस भाग करके उनमें से अठारह भाग लेकर दक्षिण छेत्ता अट्ठारसभागे उवाइणावेत्ता तिहि भागेहिं वाले मंडल के चार भागों को प्राप्त किए बिना तीन भागों में दोहि य कलाहिं दाहिणिल्लं चउभागमण्डलं दो दो कलाओं से सूर्य अन्तिम बासठवीं पूर्णिमा को योग असंपत्ते, एत्थ णं सूरिए चरिमं बावळिं पुण्णिमा- करता है । सिणिं जोएइ, -सूरिय. पा. १०, पाहु. २२, सु. ६४ सूरस्स अमावासासु जोगो सूर्य का अमावस्याओं में योग५१. ५०–ता एएसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढम अमावासं सूरे ५१. प्र०—इन पाँच संवत्सरों की प्रथमा अमावस्या को सूर्य कंसि देसंसि जोएइ? मंडल के किस देश-विभाग में योग करता है ? उ०-ता जंसि णं देसंसि सूरे चरिमं बावठिं अमावासं उ०—सूर्य अन्तिम बासठवीं अमावस्या को मंडल के जिस जोएइ, ताए अमावासठाणाए मण्डलं चउब्वीसे णं सए देश में योग करता है, उसी अमावस्या स्थान से आगे वाले णं छत्ता चउणउइभागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सूरे मंडल के एक सौ चौबीस विभाग करके उनमें से चौरानवें विभाग पढम अमावासं जोएइ, लेकर उनमें सूर्य प्रथमा अमावस्या को योग करता है। एवं जेणेव अभिलावेणं सूरियस्स पुण्णिमासिणीओ इस प्रकार जिस अभिलाप से सूर्य का पूर्णिमाओं में योग तेवेण अभिलावेणं अमावासाओ भणियव्वाओ, तं कहा उसी अभिलाप से अमावस्याओं में कहना चाहिए, यथाजहा-बिइया, तइया, दुवालसंभी।' दूसरी, तीसरी और बारहवीं अमावस्या में, पाश्चात्ययुग चरम द्वाषष्टितम पौर्णमासी-परिनमाप्तिनिबन्धतात् स्थानात् परतो मंडलस्य चतुर्विशत्यधिकरात्रि प्रविभक्तस्य सत्कानां चतुर्नवति चतुर्नवति भागानामतिक्रमे तस्याः तस्याः पौर्णमास्याः परिसमाप्तिः, ततश्चतुर्नवति षिष्ट्या गुण्येते, जातान्यष्टा पंचाशच्छंतानि अष्टाविंशत्यधिकानि, तेषां चतुर्विशत्यधिकेन शतेन भागो हियते लब्धाः सप्तचत्वारिंशत्सकलमंडलपरावर्ताः। -टीका २ चन्द. पा. १० सु. ६४ । ___ एवमित्यादि एवमुक्तेनप्रकारेण वेनैवाभिलापेन सूर्यस्य पौर्णमास्य उक्तास्तेनैवाभिलापेनामावास्या अपि वक्तव्याः तद्यथा-द्वितीया, तृतीया द्वादशी च ताश्चैवम् । प०-एएसिणं णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं अमावासं सूरे कसि देसं सि जोएइ ? उ०–ता जंसि णं देसंसि सूरे पढमं अमावास जोएइ, ताओ अमावासट्ठाणाओ मंडल चउवीसेगं सएणं छेत्ता चउणउई भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं सूरे दोच्चं अमावासं जोएइ, प०–ता एएसि णं पंचण्हं संवच्छराणं तच्च अमावासं सूरे कसि देसंसि जोएइ ? उ०–ता जंसि ण देसंसि दोच्च अमावासं जोएइ, ताओ अमावासट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसे णं सएणं छत्ता चउणउइ भागे उवाइणावेत्ता एत्थणं सूरे तच्च अमावासं जोएइ, प०–ता एएसि णं पंचण्डं संवच्छराणं दुवालसमं सूरे कंसि देसंसि जोएइ? उ०–ता जंसि ण देसंसि सूरे तच्च अमावासं जोएइ, ताओ अमावासट्ठाणाओ मंडलं चउब्बीसे णं सएणं छत्ता अट्ठ छत्ताले भागसए उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सूरे दुवालसमं अमावासं जोएइ,
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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