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सूत्र १०४६-१०५०
तिर्यक् लोक : सूर्य का पूर्णिमाओं में योग
गणितानुयोग
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पन्नासइमे मण्डलगते अट्ठा
अभिनिवृड्डित्ता णं सरल तथा दिन की वृद्धि '
दक्खिणाओ णं कटाओ सूरिए दोच्च छम्मासं अयमाणे एगूण- द्वितीय छः मास में दक्षिण दिशा से (उत्तर दिशा की ओर) पन्नासइमे मण्डलगते अट्ठाणउइ एकसट्ठिभाए मुहुत्तस्स रयणि- गति करता हुआं सूर्य जब उनचासवें मण्डल में आता है तब एक खित्तस्स निबुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिनिवुड्ढित्ता णं सूरिए मुहूर्त के अठान भागों में से इकसठ भाग प्रमाण रात्रि की हानि चारं चरइ।
-सम. ६८, सु. ५-६ तथा दिन की वृद्धि करता हुआ गति करता है । सूरस्स पुण्णिमासिणिसु जोगो
सूर्य का पूर्णिमाओं में योग५०. १. ५०–ता एएसि णं पंचण्ह संवच्छराणं पढम पुण्णिमा- ५०. (१) प्र०-इन पाँच संवत्सरों की प्रथमा पूर्णिमासी को सूर्य सिणि सूरे कंसि देसंसि जोएइ ?
मंडल के किस देश-विभाग में योग करता है ? उ०–ता जंसि णं देसंसि सूरे चरिमं बाढि पुण्णिमा- उ०—सूर्य अन्तिम बासठवीं पूर्णमासी को मडल के जिस
सिणि जोएइ, ताए पुण्णिमासिणिठाणाए मण्डलं देश-विभाग में योग करता है उसी पूर्णिमा स्थान से आगे वाले चउव्वीसेणं सएणं छत्ता चउणवइं भागे उवाइणा- मंडल के एक सौ चौबीस विभाग करके उनमें से चौरानवें भाग वेत्ता एत्थ णं से सूरिए पढमं पुणिमासिणिं लेकर उनमें सूर्य प्रथम पूर्णमासी को योग करता है।
जोएइ। २. ५०–ता एएसि णं पंचण्ह संवच्छराणं वोच्चं पुण्णिमा- (२) प्र०-इन पाँच संवत्सरों की द्वितीया पौर्णमासी को सिणिं सूरे कंसि देसंसि जोएइ?
सूर्य मंडल के किस देश-विभाग में योग करता है ? उ०–ता जंसि गं देसंसि सूरे पढम पुण्णिमासिणिं उ०-सूर्य प्रथमा पूर्णिमासी को मंडल के जिस देश-विभाग
जोएइ, ताए पुण्णिमासिणिठाणाए मण्डलं चउव्वीसे में योग करता है, उसी पूर्णिमा स्थान से आगे वाले मंडल के एक णं सएणं छत्ता दो चउणवइभागे उवाइणावेत्ता एत्थ सौ चौबीस विभाग करके उनमें से चौरानवें भाग लेकर उनमें
णं से सूरिए दोच्च पुण्णिमासिणिं जोएइ, सूर्य द्वितीया पूर्णमासी को योग करता है । ३. ५०–ता एएसि णं पंचण्ह संवच्छराणं तच्चे पुण्णिमा- (३) प्र०-इन पाँच संवत्सरों की तृतीया पूर्णमासी को सिणिं सरे कंसि देसंसि जोएइ?
सूर्य मंडल के किस देश-विभाग में योग करता है ? उ०-ता जंसि गं देसंसि सूरे दोच्चं पुण्णिमासिणिं उ०-सूर्य द्वितीया पूर्णमासी को मंडल के जिस देश-विभाग
जोएइ, ताए पुण्णिमासिणिठाणाए मण्डलं चउव्वीसे में योग करता है उसी पूर्णिमा स्थान से आगे वाले मंडल के एक णं सएणं छत्ता चउणवइभागे उवाइणावेत्ता एत्थ सौ चौबीस विभाग करके उनमें से चौरानवें भाग लेकर उनमें
णं से सूरिए तच्चं पुण्णिमासिणिं जोएइ, सूर्य तृतीया पूर्णिमासी को योग करता है। ४. ५०–ता एएसि णं पचण्हं संवच्छराणं दुवालसं पुण्णिमा- (४) प्र०-इन पाँच संवत्सरों की बारहवीं पूर्णमासी को सिणिं सूरे कसि देसंसि जोएइ?
सूर्य मंडल के किस देश-विभाग में योग करता है ? ज०ता जंसि णं देसंसि सूरे तच्च पुण्णिमासिणिं जोएइ, उ०-सूर्य तृतीया पूर्णमासी को मंडल के जिस देश-विभाग
ताए पुण्णिमासिणिठाणाए मण्डलं चउव्वीसेणं में योग करता है उसी पूर्णिमा स्थान से आगे वाले मंडलों के सएणं छेत्ता, अट्ठछत्ताले भागसए' उवाइणावेत्ता, एक सौ चौबीस एक सौ चौबीस विभाग करके उनमें से आठ सौ एत्थ णं से सूरिए दुवालसमं पुण्णिमासिणि जोएइ, छियालीस भाग लेकर उनमें क्रमशः योग करता हुआ सूर्य
बारहवीं पूर्ण मासी को योग करता है। एवं खलु एएणं उवाएणं ताए ताए पुणिमासिणिठा- इस प्रकार इस क्रम से उन उन पूर्णमासी स्थानों से आगे णाए मण्डलं चउव्वीसेणं सएणं छत्ता चउणवइ चउण- वाले मंडलों के एक सौ चौबीस एक सौ चौवीस विभाग करके
१ "अट्ठछत्ताले भागसए" त्ति, तृतीयस्या पौर्णमास्याः परतो द्वादशी किल पौर्णमासी नवमी, ततश्चतुर्नवतिर्नवमिगुण्यते,जातान्यष्टी
शतानि षट् चत्वारिंश दधिकानि ।