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________________ सूत्र १०४७ तिर्यक् लोक : सूर्य को उत्तरार्द्ध मण्डल संस्थिति गणितानुयोग ५५५ ता जया णं सूरिए अभिंतराणंतरं तच्च उत्तरं अद्ध- जब सूर्य आभ्यन्तरानन्तर तृतीय उत्तरार्धमण्डल-संस्थिति मण्डलसंठियं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारस- को प्राप्त करके गति करता है तब एक मुहूर्त के इकसठ भागों मुहुत्ते दिवसे भवइ । चहिं एगट्ठिभागमुहुर्तेहि ऊणे, में से चार भाग कम अठारह मुहूर्त का दिन होता है और एक दुवालसमुहुत्ता राई भवइ चहिं एगट्ठिभागमुहुर्तेहि मुहूर्त के इकसठ भाग तथा चार भाग अधिक बारह मुहूर्त की अहिया। रात्रि होती है। एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए तयाणंत- इस प्रकार इस क्रम से निकलता हुआ सूर्य तदनन्तर मण्डल राओ मण्डलाओ तयाणंतरं मण्डलं संकममाणे संकममाणे से तदनन्तर मण्डल को संक्रमण करता करता उस उस देश में तंसि तंसि देसंसि तं तं अद्धमण्डलसंठिई संकममाणे उन उन अर्धमण्डल-संस्थितियों की ओर संक्रमण करता करता संकममाणे उत्तराए अन्तराए भागाए तस्साइ पएसाए उत्तर के आभ्यन्तर भाग के आदि प्रदेश से सर्व बाह्य दक्षिणार्ध सव्वबाहिरं दाहिणं अद्धमण्डलसंठिइं उवसंकमित्ता चार मण्डल-संस्थिति को प्राप्त करके गति करता है। चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं दाहिणं अद्धमण्डलसंठिई जब सूर्य सर्व बाह्य दक्षिणार्धमण्डल-संस्थिति को प्राप्त उवसंकमित्ता चार चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्को- करके गति करता है तब परम प्रकर्ष को प्राप्त उत्कृष्ट अठारह सिया अट्ठारसमुहूत्ता राई भवइ जहण्णए दुवालसमुहुत्ते मुहूर्त की रात्रि होती है और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन दिवसे भवइ, होता है। एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स ये प्रथम छ: मास दक्षिणायन के हैं यह प्रथम मास का पज्जवसाणे। अन्त है। से पविसमाणे सूरिए दोच्च छम्मासं अयमाणे पढमंसि (सर्व बाह्य मण्डल से) प्रवेश करता हुआ वह सूर्य दूसरे अहोरत्तंसि दाहिणाए अन्तराए भागाए तस्साइपएसाए छः मास से उत्तरायण प्रारम्भ करता हुआ प्रथम अहोरात्र में बाहिराणतरं उत्तरं अद्धमण्डलसंठिई उवसंकमित्ता चारं दक्षिण के आभ्यन्तर भाग के आदि प्रदेश से बाह्यानन्तर चरइ, उत्तरार्धमण्डल स स्थिति को प्राप्त करके गति करता है। ता जया णं सूरिए बाहिराणतरं उत्तरं अद्धमण्डलसंठिइ जब सूर्य बाह्यानन्तर उत्तरार्ध मण्डल-संस्थिति को प्राप्त उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई करके गति करता है तब एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से दो भवइ, दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहि ऊणा, दुवालसमुहुत्ते भाग कम अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और एक मुहूर्त के दिवसे भवइ दोहिं एगठिभागमुहुत्तेहिं अहिए. इगसठ भाग तथा दो भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होता है । से पविसमाणे सूरिए दोच्चसि अहोरत्तंसि उत्तराए (बाह्यानन्तर मण्डल से) प्रवेश करता हुआ वह सूर्य दूसरे अन्तराए भागाए तस्साइपएसाए बाहिर तच्चं दाहिणं अहोरात्र में उत्तर के आभ्यन्तर भाग के आदि प्रदेश से बाह्य अद्धमण्डलसंठिइं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तृतीय दक्षिणार्धमण्डल-संस्थिति को प्राप्त करके गति करता है । ता जया णं सूरिए बाहिर तच्चं दाहिणं अद्धमण्डल- जब सूर्य बाह्य तृतीय दक्षिणार्धमण्डल-संस्थिति को प्राप्त संठिइं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया गं अट्ठारसमुहुत्ता करके गति करता है तब एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से चार राई भवइ चउहि एगट्ठिभागमुहुर्तोह ऊणा, दुवालस- भाग कम अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और एक मुहूर्त के मुहुत्ते दिवसे भवइ चहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिए, इकसठ भाग तथा चार भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होता है। एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ इस प्रकार इस क्रम से प्रवेश करता हुआ सूर्य तदनन्तर मण्डलाओ तयाणंतरं मण्डलं संकममाणे संकममाणे मण्डल से तदनन्तरमण्डल को संक्रमण करता करता उस उस तंसि तंसि देसंसि तं तं अद्धमण्डलसंठिई संकममाणे देश में उन उन अर्धमण्डल संस्थितियों की ओर संक्रमण करता संकममाणे दाहिणाए अन्तराए भागाए तस्साइपएसाए करता दक्षिण के आभ्यन्तर भाग के आदि प्रदेश से सर्वाभ्यन्तर सम्वन्भंतर उत्तरं अद्धमण्डलसंठिइं उवसंकमित्ता चारं उत्तरार्धमण्डल संस्थिति को प्राप्त करके गति करता है । चरइ,
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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