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सूत्र १०४६
तिर्यक् लोक : सूर्य को दक्षिणार्ध मण्डल-संस्थिति
गणितानुयोग
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से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि उत्तराए (आभ्यन्तरानन्तर मण्डल से) निकलता हुआ वह सूर्य दूसरे अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए अभितरं तच्च अहोरात्र में उत्तर के आभ्यन्तर भाग के आदि प्रदेश से आभ्यन्तर दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ। तृतीय दक्षिणार्धमण्डल संस्थिति को प्राप्त करके गति करता है । ता जया णं सूरिए अभितरं तच्चं दाहिणं अद्धमंडल- जब सूर्य आभ्यन्तर तृतीय दक्षिणार्ध मण्डल-संस्थिति को संठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं अट्ठारस- प्राप्त करके गति करता है तब एक मुहूर्त के इगसठ भागों में से महत्ते दिवसे भवइ, चहि एगट्ठिभागमुहुतेहि ऊणे। चार भाग कम अठारह मुहूर्त का दिन होता है और एक मूहुर्त दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, चहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं के इगसठ भाग चार भाग अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। अहिया। एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए तयाणंत- इस प्रकार इस कम से निकलता हुआ सूर्य तदनन्तर मण्डल राओ मंडलाओ तयाणंतरमंडलस्स तंसि देसंसि तं तं से तदनन्तर मण्डल के उस उस प्रदेश की उन उन अर्धमण्डलअद्धमंडलसंठिति संकममाणे संकममाणे दाहिणाए अंत- संस्थिति को संक्रमण करता करता दक्षिण के आभ्यन्तर भाग के राए भागाए तस्सादिपदेसाए सव्वबाहिर उत्तरं अद्ध- आदि प्रदेश से सर्व बाह्य उत्तरार्धमण्डलसंस्थिति को प्राप्त करके मंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ।
गति करता है। ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति जब सूर्य सर्व बाह्य उत्तरार्धमण्डल-संस्थिति को प्राप्त करके उवसंकमित्ता चार चरइ, तग णं उत्तमकट्ठपत्ता गति करता है तब मण्डल के अन्तिम भाग को प्राप्त होने पर उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, जहण्णए दुवा- उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और जघन्य बारह मुहूर्त लसमुहुत्ते दिवसे भवइ ।
का दिन होता है। एस णं पढमे छम्मासे, एस गं पढमस्स छम्मासस्स- ये (दक्षिणायन के) प्रथम छः मास है और यह प्रथम छः पज्जवसाणे ।
मास का अन्त है। से पविसमाणे सूरिए दोच्च छम्मासं अयमाणे पढमंसि (सर्व बाह्यमण्डल से सर्व आभ्यन्तरमण्डल की ओर) प्रवेश अहोरत्तंसि उत्तराए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए करता हुआ वह सूर्य छः मास का उत्तरायण प्रारम्भ करता हुआ बाहिराणंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता प्रथम अहोरात्र में उत्तर के आभ्यन्तर भाग के आदि प्रदेश से चारं चरइ,
बाह्यानन्तर दक्षिणार्धमण्डल संस्थिति को प्राप्त करके गति
करता है। ता जया णं मूरिए बाहिराणंतरं दाहिण अद्धमंडल- जब सूर्य बाह्यानन्तर दक्षिणार्धमण्डल-संस्थिति को प्राप्त संठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं अट्ठारस- करके गति करता है तब एक मुहूर्त के इगसठ भागों में से दो मुहुत्ता राई भवइ, दोहिं एगट्ठिभागमुहुर्तेहि ऊणा । दुवा- भाग कम अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और एक मुहूर्त के लसमुहुत्ते दिवसे भवइ, दोहि एगट्ठिभागमुहुर्तेहि अहिए। इकसठ भाग तथा दो भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होता है। से पवेिसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि दाहिणाए (बाह्यानन्तर मण्डल से बाह्यतृतीयमण्डल की ओर) प्रवेश अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए बाहिरंतरं तच्चं करता हुआ वह सूर्य दूसरे अहोरात्र मे दक्षिण के आभ्यन्तर भाग उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चार चरइ, के आदि प्रदेश से बाह्य तृतीय उत्तरार्धमण्डल संस्थिति को प्राप्त
करके गति करता है। ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं उत्तरं अद्धमंडल- जव सूर्य बाह्य तृतीय उत्तरार्धमण्डल संस्थिति को प्राप्त संठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं अट्ठारस. करके गति करता है तब एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से चार मुहुत्ता राई भवइ, चउहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहि ऊणा, भाग कम अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और एक मुहूर्त के दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं इकसठ भाग तथा चार भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन अहिए,
होता है। एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंत- इस प्रकार इस क्रम से प्रवेश करता हुआ सूर्य तदनन्तर राओ मंडलाओ तयाणंतरंसि तंप्ति तंसि देसंसि तं तं मण्डल से तदनन्तर मण्डल के उस देश में उन उन अर्धमण्डल