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________________ सूत्र १०४४ उवसंहार सुत्तं एवं खलु तस्सेव आदिच्चस्स संवच्छरस्स सई अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवइ, सई अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, सई दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, तिर्यक् लोक : उपसंहार पढमे छम्मासे - अत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, अस्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे, अस्थि बालसमुहसे दिवसे भवद्द, नीव दुवालसमुहला नस्थि राई, दोचे वा छम्मा से अदभ नत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राई, अस्थि दुवालसमुहुत्ता राई, नत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, पढमे वा छम्मासे, दोच्चे वा छम्मासे – णत्थि पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भव, णत्थि पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ रथ रादियाणं यद्दी मुहान वा यो चणं गाय वा अनुचाईए उ० गणितानुयोग ५५१ उपसंहार सूत्र इस प्रकार उस आदित्य संवत्सर में एक बार अठारह मुहूर्त का दिन होता है। एक वार अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है । एक बार बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। प्रथम छः मास में अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है किन्तु अठारह मुहूर्त का दिन नहीं होता है। बारह मुहूर्त का दिन होता है किन्तु बारह मुहर्त की रात्रि नहीं होती है। وا द्वितीय छ: मास में अठारह मुहूर्त का दिन होता है किन्तु अठारह मुहूर्त की रात्रि नहीं होती है। बारह मुहूर्त की रात्रि होती है किन्तु बारह मुहूर्त का दिन नहीं होता है । (१) प० – जया णं भंते! सूरिए सब्वबाहिरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं के महालए दिवसे के महालया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिआ अट्ठारस मुहुत्ता राई भवइ । जहणए दुवालसमुत्ते दिवसे भवइ, त्ति, एस णं पढमे छम्मासे एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, से पविसमा सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, (२) प० - जया णं भंते ! सूरिए बाहिराणंतरं मण्डलं उवसंकमिता चारं चरई, तया णं के महालए दिवसे के महालया राई भवइ ? प्रथम छः मास में तथा द्वितीय छः मास में - ( १ ) रातदिन की वृद्धि-हानि, (२) मुहूर्तों की घट-बढ़ तथा, (३) अनुपात गति के अतिरिक्त न पन्द्रह मुहूर्त का दिन होता है और न पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि होती है। ३० गोपमा ! अट्ठारसमुहसा राई भवद दोहि एगट्टिभागमुहणा, बालसमुटु दिवसे भयइ दोहि एमट्ठिभागमुह महिए ति से पविसमा सूरिए दोसि अहोरसि बाहिरतत्वं मण्डलं उपसंकमित्ता चारं चर (३) प० – जया णं भंते ! सूरिए बाहिरतच्चं मण्डलं उवसंकमिता चारं चरइ, तया णं के महालए दिवसे के महालिया राई भवइ ? उ०- गोयमा ! तथा गं अठारममुत्ता राई भवद, चउहि एमट्टिभाग ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे चउहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिए ि एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ मण्डलाओ तयाणंतरं मण्डलं संकममाणे संक्रममाणे दो दो एगट्ठभागमुहुत्ते हि एगमेगे मण्डले रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेमाणे निवुड्ढेमाणे दिवसखेत्तस्स अभिवुड्ढेमाणे अभिवुड्ढे - माणे सव्वभंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइत्ति, जया णं सूरिए सव्व बाहिराओ मण्डलाओ सव्वमंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं सव्वबाहिरं मण्डलं पणिहाय एगे णं तेसीए णं राइंदिय सए णं तिण्णि छावट्ठे एगट्ठिभागमुहुत्तसए रणिवेत्तस्स निम्बुड्स दिवस बेतस्य अभिवर्द्धता चारं चर, एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दुच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, एस णं इच्चे संवच्छरे, एस णं आइच्यस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे पण्णत्ते, - जम्बु. वक्ख. ७, सु. १३४
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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