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________________ ५५० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : आदित्य संवत्सर में अहोरात्र का प्रमाण सूत्र १०४४ अहिए, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, चहिं एगट्ठिभागमुहत्तेहिं एक मुहूर्त के इकसठ भागों से चार भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होता है। एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंत- इस प्रकार इस क्रम से प्रवेश करता हुआ सूर्य अनन्तर राओ मंडलाओ तयाणंतरं मंडलं संकममाणे संकममाणे मण्डल से अनन्तर मण्डल की ओर संक्रमण करता करता प्रत्येक दो दो एगट्ठिभागमुहुत्ते एगमेगेमंडले रयणिखेत्तस्स मण्डल में एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से दो दो भाग रजनिणिवुड्ढेमाणे णिवुड्ढेमाणे दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे क्षेत्र को घटाता घटाता तथा दिवस क्षेत्र को बढ़ाता-बढ़ाता अभिवड्ढेमाणे सम्वन्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं सर्व आभ्यन्तर मण्डल की ओर संक्रमण करके गति करता है। चरइ, ता जया णं सूरिए सत्व बाहिराओ मंडलाओ सम्वन्भंतरं जब सूर्य बाह्यमण्डल से सर्व आभ्यन्तर मण्डल की ओर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं सव्व बाहिरं संक्रमण करके गति करता है तब सर्व बाह्यमण्डल को छोड़कर मंडलं पणिहाय एगे णे तेसीए णं राइंदियसए णं तिन्नि एक सौ तिरासी दिन में एक मुहूर्त के इकसठ भागों की गणना छावठे एगट्ठिभागमुहत्तसए रयणि-खेत्तस्स निवुड्ढेत्ता से तीन सौ छासठ भाग क्षेत्र से घटाकर तथा दिवस क्षेत्र में दिवस खेत्तस्स अभिवुड्ढेत्ता चारं चरइ । बढ़ाकर गति करता है। तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन भवइ । जहणियादुवालसमुहुत्ता राइ भवइ, होता है तथा जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । एस णं दोच्चे छम्मासे, ये (उत्तरायण) के दूसरे छः मास हैं । एस णं दुच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, यह दूसरे छः मास का पर्यवसान है। एस णं आदिच्चे संवच्छरे यह आदित्य संवत्सर है। एस णं आविच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे,' यह आदित्य संवत्सर का पर्यवसान है । १ (१) प०-जया णं भंते ! सूरिए सव्वब्भंतरं मडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं के महालए दिवसे के महालया राई भवइ ? उ०-गोयमा ! तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ जहण्णिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ । से णिक्खममाणे सूरिए णवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भंतराणं मण्डलं उवसंकमित्ता चार चरइ, (२) प०-जया णं भंते ! सूरिए अभंतराणंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं के महालए दिवसे के महालया राई भवइ? उ०-गोयमा ! तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, दोहिं अ एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिअत्ति. से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभंतरतच्चं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, (३) प०-जया णं भते ! सुरिए अब्भंतरतच्चं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं के महालए दिवसे के महालया राई भवइ ? उ०—गोयमा ! अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, चउहि एगट्ठिभागमुहत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, चहि एगठि भागमुहुत्तेहिं अहिअत्ति, एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ मण्डलाओ तयाणंतरं मण्डलं संकममाणे संकममाणे दो दो एगठ्ठिभाग महत्तेहिं एगमेगे मण्डले दिवस-खित्तस्स निवुड्ढमाणे निवुड्ढेमाणे रयणि-खित्तस्स अभिवड्ढेमाणे अभिवड्ढेमाणे सब बाहिरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ त्ति, जया णं सूरिए सम्वन्भंतराओ मण्डलाओ सव्व बाहिरं मण्डल उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं सव्वभंतरं मण्डलं पणिहाय एगे णं तेसिए णं राइंदियसए णं तिण्णि छावठे एगठिभागमुहत्तसए दिवसखेत्तस्स निम्बुड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिवुड्ढेत्ता चारं चरइ त्ति, (क्रमशः)
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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