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सूत्र १०४४
तिर्यक्लोक : आदित्य संवत्सर में अहोरात्र का प्रमाण
गणितानुयोग
५४६
चरइ,
से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि वह निष्क्रमण करता हुआ सूर्य नये संवत्सर के दक्षिणायन अहोरत्तंसि अभिंतराणंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं की प्रथम अहोरात्र में आभ्यन्तर मण्डल के अनन्तर (द्वितीय)
मण्डल की ओर संक्रमण करके गति करता है। २. ता जया णं सूरिए अभिंतराणंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता (२) जब सूर्य आभ्यन्तर द्वितीय मण्डल की ओर संक्रमण
चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ दोहि करके गति करता है तब एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से दो भाग एगट्ठिभागमुहुर्तेहिं ऊणे । दुवालसमुहुत्ता राई भवइ कम अठारह मुहूर्त का दिन होता है। एक मुहूर्त के इकसठ भागों दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया,
में दो भाग अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभितर- वह निष्क्रमण करता हुआ सूर्य अहोरात्र में आभ्यन्तर तृतीय तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ।
मण्डल की ओर संक्रमण करके गति करता है । ३. ता जया गं सूरिए अन्भिंतरतच्चं मडलं उवसंकमित्ता (३) जब सूर्य आभ्यन्तर तृतीय मण्डल की ओर संक्रमण
चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुते दिवसे भवइ, चहि करके गति करता है तब एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से चार एगट्ठिभागमुहुत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, भाग कम अठारह मुहूर्त का दिन होता है । एक मुहूर्त के इकसठ चहिं एगट्ठिभागमुहुर्तेहि अहिया,
भागों से चार भाग अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे सुरिए तयाणंत- इस प्रकार इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य (तृतीय) राणंतरं मंडलाओ तयाणंतरं मंडलं संकभमाणे संकम- मण्डल से मण्डलान्तर की ओर संक्रमण करता करता प्रत्येक माणेदो दो एगद्विभागमुहुत्ते एगमेगे मंडले दिवसखेत्तस्स मण्डल में एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से दो दो भाग दिवस णिवुड्ढेमाणे णिवुड्ढेमाणे रयणिखेत्तस्स अभिवुड्ढेमाणे क्षेत्र को घटाता घटाता तथा रजनी क्षेत्र को बढ़ाता बढ़ाता सर्व अभिवुड्ढेमाणे सत्व बाहिरमंडलं उवसंकसित्ता चारं चरइ, बाह्य मण्डल की ओर संक्रमण करता हुआ गति करता है । ता जया णं सूरिए सम्वन्भंतराओ मंडलाओ सव्व (१) जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल से बाह्य मण्डल की ओर बाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उपसंक्रमण करके गति करता है, तब सर्व आभ्यन्तर मण्डल का सम्वन्मतरं मंडलं पणिहाय एगे गं तेसीए णं राइंदिय- लक्ष्य करके एक सौ तिरासी दिन-रात में से एक मुहर्त के सए णं तिण्णि छावठे एगट्ठिभागमुहुत्तसए दिवस- इकसठ भाग जैसे तीन सौ छासठ भाग दिन के क्षेत्र में घटाकर खित्तस्स णिवुड्ढित्ता रयणि-खित्तस्स अभिवुढित्ता तथा रात्रि के क्षेत्र में बढ़ाकर गति करता है। चार चरइ, तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राइ उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त अठारह मुहूर्त की रात्रि होती भवइ, जहण्णए बारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, है जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है। एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स ये दक्षिणायन के प्रथम छ मास हुए। पज्जवसाणे,
यह प्रथम छः मास का पर्यवसान हुआ। से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि वह प्रवेश करता हुआ सूर्य दूसरे छः मास के (उत्तरायण) अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं प्रथम अहोरात्र में बाह्यानन्तर मण्डल की ओर संक्रमण करके
गति करता है। २. ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता (२) जब सूर्य बाह्यानन्तर मण्डल की और संक्रमण करके
चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, दोहि गति करता है तब एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से दो भाग एगट्ठिभागमुहुत्तेहि ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, कम अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है । एक मुहूर्त के इकसठ भागों दोहिं एगट्ठिभागमुहुर्तेहिं अहिए,
से दो भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होता है । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरं तच्चं वह प्रवेश करता हुआ सूर्य दूसरे अहोरात्र में बाह्य तृतीय मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ।
मण्डल की ओर संक्रमण करके गति करता है । ३. ता जया गं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता (३) जब सूर्य बाह्य तृतीय मण्डल की ओर संक्रमण करके
चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, चहिं गति करता है तब एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से चार भाग एगट्ठिभागमुहुर्तेहिं ऊणा,
कम अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है।
पाहा.
चरइ,