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________________ ५४८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : आदित्य संवत्सर में अहोरात्र का प्रमाण सूत्र १०४३-१०४४ एगमेगे मुहत्ते मण्डलभागगइ पमाण-परूवणं- प्रत्येक मुहूर्त में मण्डल के भागों में गति के प्रमाण का प्ररूपण४३. ५०-एगमेगे णं भंते ! मुहुत्ते णं सूरिए केवइयाइं भागसयाई ४३. प्र०- भगवन् ! प्रत्येक मुहूर्त में सूर्य मण्डल का कितना गच्छद? भाग चलता है ? उ०-गोयमा ! जं जं मण्डलं उवसंकमित्ता चार चरइ तस्स उ०-हे गौतम ! सूर्य जिस जिस मण्डल पर आरूढ़ होकर तस्स मण्डल परिक्खेवस्स अट्ठारस पणतीसे भागसए गति करता है उस उस मण्डल की परिधि का अठारह सौ पैतीस गच्छइ, मण्डलं सयसहस्सेहि अट्ठाणउइए असएहि योजन के एक लाख अठाणवें सौ भाग चलता है। छेत्ता। -जंबु. वक्ख. ७, सु. १४६ आइच्च संवच्छरे अहोरत्तप्पमाणं आदित्य संवत्सर में अहोरात्र का प्रमाण४४. जइ खलु तस्सेव आदिच्चस्स संवच्छरस्स सइं अट्ठारसमुहत्ते ४४. उस आदित्य संवत्सर में एक बार अठारह मुहूर्त का दिन दिवसे भवइ, होता है। सई अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, एक बार अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है । सई दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, एक वार बारह मुहूर्त का दिन होता है । सई दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, एक वार बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । पढमे छम्मासे प्रथम छः मास मेंअस्थि अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, नत्थि अट्ठारसमुहत्ते दिवसे, अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है किन्तु अठारह मुहूर्त का दिन नहीं होता है। अस्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे, नत्थि दुवालसमुहुत्ता राई भवइ । __ बारह मुहूर्त का दिन होता है किन्तु बारह मुहूर्त की रात्रि नहीं होती है। दोच्चे छम्मासे द्वितीय छः मास मेंअस्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, नत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राई, अठारह मुहूर्त का दिन होता है किन्तु अठारह मुहूर्त की रात्रि नहीं होती है। अस्थि दुवालसमुहुत्ता राई, नत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, बारह मुहूर्त की रात्रि होती है किन्तु बारह मुहूर्त का दिन नहीं होता है। 4०-पढमे छम्मासे, दोच्चे छम्मासे, पत्थि पण्णरसमुहुत्ते प्र०-प्रथम छः मास में तथा द्वितीय छः मास में न पन्द्रह दिवसे भवइ, णत्थि पण्णरसमुहत्ता राई भवइ । मुहूर्त का दिन होता है, और न पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि होती है, तत्थ णं के हेडं वदेज्जा? उक्त मान्यता का हेतु क्या है ? उ०--ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वन्भंत- उ०—यह जम्बूद्वीप द्वीप सब द्वीप-समुद्रों के अन्दर है, सबसे राए सव्व खुड्डागे वट्ट-जाव-जोयण-सयसहस्समायाम- छोटा है, वृत्ताकार है-यावत्-एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा विक्खंभे णं, तिन्नि जोयणसयसहस्साई दोन्नि य सत्ता- है, तीन लाख दो सौ सत्तावीस योजन तीन कोस एक सौ वीसे जोयणसए तिन्नि कोसे, अट्ठावीसं च धणुसयं, अट्ठाईस धनुष, तेरह अंगुल और आवे अंगुल से कुछ अधिक की तेरस य अंगुलाई, अद्धंगुलं च किचि विसेसाहिए परि- परिधि कही गई है। क्खेवे णं पण्णत्ते। १. ता जया णं सूरिए सव्वन्भंतर-मण्डलं उवसंकमित्ता (१) जब सूर्य सर्व आभ्यन्तर मण्डल की ओर संक्रमण करके चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारस- गति करता है तब परम उत्कर्ष को प्राप्त होने पर उत्कृष्ट अठारह मुहुत्ते दिवसे भवइ जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, मुहूर्त का दिन होता है और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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