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________________ ५४६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : सूर्यों की तिरछी गति सूत्र १०४१ तया णं अट्ठारसमुहत्ता राई भवइ चढहिं एगट्ठिभाग- उस समय एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से चार भाग कम मुहुत्तेहि उणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, चहिं अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और एक मुहुर्त के इकसठ भाग एगट्ठिभागमुहुरोहिं अहिए, तथा चार भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होता है। एवं खलु एएण उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंत- इस प्रकार इस क्रम से प्रवेश करता हुआ सूर्य तदनन्तर राओ मंडलाओ तयाणंतरं मंडलं संकममाणे संकम- मण्डल से तदनन्तर मण्डल की ओर संक्रमण करता करता प्रत्येक माणे अट्ठारस अट्ठारस सट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगे मण्डल में योजन के साठ भागों में से अठारह अठारह भाग मंडले मुहत्तगई निव्वुड्ढेमाणे निव्वुड्ढेमाणे साइरेगाइं (जितने क्षेत्र) को घटाता घटाता कुछ अधिक पच्यासी पच्यासी पंचासीइ पंचासोइ जोयणाई पुरिसच्छायं अभिवुड्ढेमाणे योजन पुरुष छाया (सूर्य के दृष्टि पथ प्राप्त परिमाण) को बढ़ाता अभिवडढेमाणे सम्वन्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं बढ़ाता सर्वाभ्यन्तर मण्डल की ओर बढ़ता हुआ गति करता है । चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता चारं चरई, तया णं पंच पंच जोयणसहस्साई दोण्णि है तब प्रत्येक मुहूर्त में पाँच पाँच हजार दो सौ इक्कावन योजन य एक्कावण्णे जोयणसए अद्वतीसं च सट्ठिभागे जोय- और एक योजन के साठ भागों में से अड़तीस भाग जितने णस्स एगमेगे णं मुहुत्ते णं गच्छइ, क्षेत्र को पार करता है। तया णं इहगयस्स मणुसस्स सीयालीसाए जोयण- उस समय संतालीस हजार दो सौ बासठ योजन और एक सहस्सेहिं दोहि य तेवठेहि जोयणसएहि य एक्क- योजन के साठ भागों में से इकवीस भाग जितनी दूरी से यहाँ वीसाए य सद्विभार्गेहिं जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फासं रहे हुए मनुष्य को सूर्य आँखों से दिखाई दे जाता है। हब्वमागच्छइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहत्ते दिवसे उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ,' होता है और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। १ सम. ४७, सु. १ । २ (१) प०-जया ण. भंते ! सूरिए सव्वभंतरं मडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगे णं मुहुत्ते णं केवइअं खेत्तं गच्छइ ? उ०-गोयमा ! पंच पंच जोयणसहस्साई दोण्णि अ एगावण्णे जोयणसए एगूणतीसं च सद्विभाए जोयणस्स एगमेगे णं मुहुत्ते णं गच्छद। तया णं इहगयस्स मणूसस्स सीआलीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहि अ तेवढेहि जोयणसएहिं एगवीसाए जोयणस्स सद्विभाहि सूरिए चक्खुप्फास हव्वमागच्छइ, ति, से णिक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छर अयमाणे पढमंसि अहोरत्तसि अब्भतराणंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, त्ति, (२) प०-जया णं भंते ! सूरिए अभंतराणतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगे णं मुहुत्ते णं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? उ०-गोयमा ! पंच पंच जोयणसहस्साई दोण्णि अ एगावण्णे जोयणसए सीआलीसं च सद्विभाए जोयणस्स एगमेगे णं मुहुत्ते णं गच्छइ, तया ण इहगयस्स मणूसस्स सीआलीसाए जोयणसहस्सेहि एगुणासीए जोयणसए सत्तावण्णाए अ सट्ठिभाएहि जोयणस्स सटिभागं च एगट्ठिधा छेत्ता एगूणवीसाए चुण्णिआभागेहिं सूरिए चक्नुप्फास हव्वमागच्छइ, त्ति, से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अब्भंतरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, त्ति, (३) प०-जया णं भंते ! मूरिए अभंतरतच्च मंडल उवसंकमित्ता चार चरइ, तया णं एगमेगे णं मुहुत्ते णं केवइयं खेत्तं गच्छइ? उ०-गोयमा ! पंच पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि अ बावण्णे जोयणसए पंच य सद्विभाए जोयणस्स एगमेगे णं मुहुत्ते णं गच्छइ, तया णं इहगयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहि छण्ण उइए जोयणेहि तेत्तिसाए सद्विभाएहिं जोयणस्स सट्ठिभागं च एगसद्विधा छेत्ता दोहिं चुण्णिआभागेहि मूरिए चक्खुप्फास हव्वमागच्छइ त्ति, (क्रमशः)
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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