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सूत्र १०४१
तियक लोक : सूर्यों को तिरछी गति
गणितानुयोग
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तिनि य पंचुत्तरे जोयणसए पण्णरस य सट्ठिभागे एक योजन के साठ भागों में से पन्द्रह भाग (जितनी क्षेत्र) को जोयणस्स एगमेगे णं मुहुत्ते णं गच्छइ, .
पार करता है। तया णं इहगयस्स मणूसस्स एक्कतीसाए जोयणसहस्सेहि उस समय इकतीस हजार आठ सौ इकतीस योजन और अहिं एक्कतीसेहिं जोयणसएहिं तीसाए य सट्ठिभा- एक योजन के साठ भागों में से तीस भाग जितनी दूरी से यहाँ एहि जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ,' रहे हुए मनुष्य को सूर्य आँखों से दिखाई दे जाता है। तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहुर्त की भवइ, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ,
रात्रि होती है और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स ये प्रथम छः मास (दक्षिणायन के) हैं, यह प्रथम छः मास पज्जवसाणे,
का अन्त है। से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि (सर्व बाह्यमण्डल से) प्रवेश करता हुआ वह सूर्य दूसरे अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उबसंकमित्ता चारं छः मास से उत्तरायण प्रारम्भ करता हुआ प्रथम अहोरात्र में चरइ,
बाह्यानन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता है। २. ता जया णं सूरिए बाहिराणंतर मंडलं उवसंक- (२) जब सूर्य बाह्यानन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति मित्ता चारं चरइ, तया णं पंच पंच जोयणसहस्साई करता है तब प्रत्येक मुहूर्त में पाँच पाँच हजार तीन सौ चार तिण्णि य चउरुत्तरे जोयणसए सत्तावण्णं च सट्ठिभाए योजन और एक योजन के साठ भागों में से सत्तावन भाग जोयणस्स एगमेगे णं मुहुते णं गच्छइ,
(जितना क्षेत्र) पार करता है। तया णं इहगयस्स मणूसस्स एक्कतीसाए जोयणसहस्सेहि उस समय इकतीस हजार नो सौ सोलह योजन और एक नवहि य सोलसुत्तरेहि जोयणसएहिं एगूणचत्तालीसाए योजन के साठ भागों में से गुनचालीस भाग के साठवें भाग का सटुिभागेहि जोयणस्स सट्ठिभागं च एगट्ठिहा छत्ता इकसठ से विभाजन करने पर साठ चूणिका भाग जितनी दूरी सटिए चुणिया भागेहि, सूरिए चक्खुप्फासं हव- से यहाँ रहे हुए मनुष्य को सूर्य आँखों से दिखाई दे जाता है । मागच्छइ, तया णं अट्ठारसमुहत्ता राई भवइ, दोहिं एगट्ठिभाग- उस समय एक मुहर्त के इकसठ भागों में से दो भाग कम मुहत्तेहि ऊणा, दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ, दोहि अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और एक मुहर्त के इकसठ भाग एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए,
तथा दो भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होता है। से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तप्ति बाहिरं तच्च (बाह्यानन्तर मण्डल से) प्रवेश करता हुआ वह सूर्य दूसरे मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ,
अहोरात्र में बाह्य तृतीय मण्डल को प्राप्त करके गति करता है । ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता (३) जब सूर्य बाह्य तृतीय मण्डल को प्राप्त करके गति चारं चरइ, तया णं पंच पंच जोयणसहस्साई तिन्नि करता है तब प्रत्येक मुहूर्त में पांच पांच हजार तीन सौ चार य चउरूत्तरे जोयणसए एगूणचत्तालीसं च सद्विभाए योजन और एक योजन के साठ भागों में से उनचालीस भाग जोयणस्स एगमेगे णं मुहुत्ते णं गच्छइ,
(जितने क्षेत्र) को पार करता है। तया णं इहगयस्स मणूसस्स एगाहिएहि बत्तीसाए उस समय बत्तीस हजार एक योजन और एक योजन के जोयणसहस्सेहि एगणपण्णाए च सद्विभाएहि जोयणस्स साठ भागों में से उनपचास भाग तथा साठवें भाग को इकसठ से सट्ठिभागं च एगट्ठिहा छेता तेवीसाए चुण्णियाभागेहिं विभाजित करने पर तैवीस चूणिका भाग जितनी दूरी से यहाँ सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ',
· रहे हुए मनुष्य को सूर्य दिखाई दे जाता है ।
१ सम. ३१ सु. ३। २ जया णं सूरिए बाहिराणंतरं तच्च मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं इहगयस्स पुरिसस्स तेत्तिसाए जोयणसहस्सेहि किचि विसेसूहि चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ ।
-सम. ३३, सु. ४