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________________ *** लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक लोक सूर्यो की तिरछी गति तया णं उत्तमकटुपत्ले उस्कोसाए अद्वारसमुह दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, २. से नियममा सुरिए गवं संवन्टर अपमानें पढमंसि अहोरत्तंसि अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अभितराणंतरं मडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं पंच पंच जोयणसहस्साई दोणि य एक्कावण्णे जोयणसए सीयालीसं च सट्ठि भाए जोपणस्स एयमेगे मुझे गच्छ तपाइमस्स मसल्स सोयालीसाए जो सेहिं एगूणासीए य जोयणसए सत्तावण्णाए सट्टिभा एहि जोयणस्स सट्टिभागं च एगट्ठिहा छेत्ता एगुण बीसाए पुणिमाह सूरिए चक्का हन्यमा गच्छइ, तया षं अट्टारसमुहले दिवसे भव दोहि एमट्टिभाग मुहतेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहिं एगट्ठि भाग अहिया, २. से मारिए दोसि अहोर तरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरड़, ता जया णं सूरिए अब्भतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं पंच पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि य बावण्णे जोयणसए पंच य सट्टिभाए जोय णस्स एगमेगे णं मुहुत्ते णं गच्छइ, तया णं इहगयस्स मणूसस्स सीआलीसाए जोयण - सहस्सेहिं छण्णउईए य जोयणेहि तेतीसाए य सट्टि भागेहि जोयणस्स सट्टिभागं च एगट्टिहा छेत्ता दोहिं चुणिमाभागेहि सूरिए फाय तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, चह एगट्टि भागमुहुर्तो अहिया, एवं एएवं उपाए निक्लममा सूरिए तथातराओ मंडलाओ तयानंतर मंडलं संकममाणे संक ममा अट्ठारस अट्ठारस सद्विभागे जोयमरस एममेगे मंडले मुत्तगई अभिबुड्ढेमाणे अभिबुड्ढेमाणे चुलसीइं सीवाई जोगाई परिसन्छायं निबुद्देमाणे निम्बु मागे वाहिर मंडल उवसंकमित्ता चारं पर, १. ता जया णं सूरिए सव्वब्बाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं पंच पंच जोयणसहस्साइं सूत्र १०४१ www उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है और जघन्य बारह मुहर्त की रात्रि होती है। (२) (सर्वाभ्यन्तर मण्डल से निकलता हुआ सूर्य नये संवत्सर के दक्षिणायन को प्रारम्भ करता हुआ प्रथम अहोरात्र में आभ्यन्तरानन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता है। जब सूर्य आभ्यन्तरानन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता है तब प्रत्येक मुहूर्त में पाँच पाँच हजार दो सौ इक्कावन योजन और एक योजन के साठ भागों में से सेंतालीस भाग ( जितने क्षेत्र) को पार करता है । उस समय संतालीस हजार एक सौ गुण्यासी योजन तथा एक योजन के साठ भागों में से सत्तावन भाग और साठवें भाग को इगसठ से विभाजित करके उन्नीस चूर्णिका भाग जितनी दूरी से यहाँ रहे हुए मनुष्य को सूर्य आंखों से दिखाई दे जाता है। उस समय एक मुहूर्त के इकसठ भागों में में दो भाग कम अठारह मुहूर्त का दिन होता है और एक मुहूर्त के इकसठ भाग तथा दो भाग अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । ( ३ ) ( आभ्यन्तरानन्तर मण्डल से) निकलता हुआ सूर्य दूसरे अहोरात्र में आभ्यन्तर तृतीय मण्डल को प्राप्त करके गति करता है । जब सूर्य आभ्यन्तर तृतीय मण्डल को प्राप्त करके गति करता है तब प्रत्येक मुहूर्त में पाँच हजार दो सौ बावन योजन और एक योजन के साठ भागों में से पाँच भाग ( जितने क्षेत्र ) को पार करता है । उस समय सैंतालीस हजार छिन्नवे योजन और एक योजन के साठ भागों मे से तेतीस भाग तथा साठवें भाग को इकसठ से विभाजित करने पर दो चूर्णिका भाग जितनी दूरी से यहाँ रहे हुए मनुष्य को सूर्य आँखों से दिखाई दे जाता है । उस समय एक मुहूर्त के इकसठ भागों में से चार भाग कम अठारह मुहूर्त का दिन होता है और एक मुहूर्त के इकसठ भाग तथा चार भाग अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । इस प्रकार इस क्रम से निकलता हुआ सूर्य तदनन्तर मण्डल से तदनन्तर मण्डल को संक्रमण करता करता प्रत्येक मण्डल में एक मुहूर्त के साठ भागों में से अठारह अठारह भाग जितनी मुहूर्त गति बढ़ाता बढ़ाता कुछ कम चौरासी चौरासी योजन पुरुष छाया ( सूर्य के दृष्टिपथ प्राप्त परिमाण में से) को घटाता घटाता सर्व बाह्यमण्डल के प्राप्त करके गति करता है । (१) जब सूर्य सर्व बाह्यमण्डल को प्राप्त करके गति करता है। तब प्रत्येक मुहूर्त में पाँच पाँच हजार तीन सौ पाँच योजन और
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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