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________________ सूत्र १०४० तिर्यक् लोक : सूर्यों को तिरछी गति गणितानुयोग ५३६ उट्ठाइ, से णं इमं लोयं तिरियं करेइ करित्ता पच्चत्थि- वह इस तिर्यक् लोक को (प्रकाशित) करता है और प्रकाशित मंसि लोयतंसि सायं सूरिए आगासंसि विलुसइ। एगे करके पश्चिमी लोकान्त में सायंकाल के समय सूर्य आकाश में एवमाहंसु, विलीन हो जाता है। एगे पुण एवमाहसु ____एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है३. ता पुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आगासंसि. (३) पूर्वी लोकान्त से प्रातः सूर्य आकाश में उदय होता है, उड से गं इमं लोयं तिरियं करेइ करित्ता पच्चत्थि- वह इस तिर्यक् लोक को (प्रकाशित) करता है, प्रकाशित करके मंसि लोयंतसि सायं सूरिए आगासं अणुपविसइ अणुप- पश्चिमी लोकान्त में सायंकाल के समय सूर्य आकाश में प्रवेश विसित्ता अहे पडियागच्छइ पडियागच्छित्ता पुणरवि करता है, आकाश में प्रवेश करके नीचे चला जाता है, नीचे अवरभू-पुरत्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आगासंसि जाकर के पुनः वह दूसरे भू (लोक) के पूर्वी लोकान्त से आकाश उ8 इ. एगे एवमाहंसु, में (वही) सूर्य उदय होता है । एगे पुण एवमाहंसु एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा हैं४. ता पुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए पुढविका- (४) पूर्वी लोकान्त से प्रातः सूर्य पृथ्वी में से निकल कर यंसि उद्रह से इमं लोय तिरियं करेइ करित्ता उदय होता है । वह इस तिरछे लोक को (प्रकाशित) करता है । पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए पुढविकायंसि प्रकाशित करके पश्चिमी लोकान्त में सायंकाल के समय पृथ्वीकाय विद्धसइ, एगे एवमाहंसु, में विलीन हो जाता है। एगे पुण एवमाहंसु एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है५. ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए पुढविओ (५) पूर्वी लोकान्त से प्रातः सूर्य पृथ्वी में से निकलकर उड, से गं इमं तिरिय लोय करेइ, करित्ता पचत्थि- उदय होता है, वह इस तिरछे लोक को (प्रकाशित) करता है मंसि लोयंतंसि सायं सूरिए पुढविकायं अगुपविसइ प्रकाशित करके पश्चिमी लोकान्त में सायंकाल के समय पृथ्वी अणुपविसित्ता अहे पडियागच्छइ पडियागन्छित्ता पुण- में प्रवेश करता है, पृथ्वी में प्रवेश करके नीचे चला जाता है, रवि अवरभू-पुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए पुढ- नीचे जाकर के पुनः दूसरे भू लोक में पूर्वी लोकान्त से प्रातः विओ उर्दुइ एगे एवमासु, सूर्य पृथ्वी में से निकल कर उदय होता है । एगे पुण एवमाहंसु ____एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है६. ता पुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउ- (६) पूर्वी लोकान्त से प्रातः सूर्य आकाश में अप्काय (जल) कायसि उदृइ से णं इमं लोयं तिरियं करेइ करित्ता से उदय होता है । वह इस तिर्यक् लोक को (प्रकाशित) करता है । पच्चत्थिमंसि लोयंतसि सायं सूरिए आउकायंसि विद्धं- प्रकाशित करके पश्चिमी लोकान्त में सायंकाल के समय सूर्य सइ, एगे एवमाहंसु, अपकाय (जल) में विलीन हो जाता है। एगे पुण एवमाहंसु एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है७. ता पुरत्यिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउओ (७) पूर्वी लोकान्त से प्रात: सूर्य (समुद्र के) जल में से उद्रइ, से णं इस लोयं तिरियं करेइ करिता पच्चस्थि- निकलकर उदय होता है वह इस तिर्यक लोक को प्रकाशित मंसि लोयतंसि सायं सूरिए आउकायंसि पविसइ, करता है, प्रकाशित करके पश्चिमी लोकान्त में सायंकाल के पविसित्ता अहे पडियागच्छइ पडियागच्छित्ता पुणरवि समय (समुद्र के) जल में प्रवेश करता है, प्रवेश करके नीचे चला अवरभू-पुरथिमाओ लोयन्ताओ पाओ सूरिए आउओ जाता है, नीचे जाकर पुनः दूसरे भु लोक में पूर्वी लोकान्त से उ8 इ, एगे एवमाहंसु, प्रातः सूर्य (समुद्र के) जल में से निकलकर उदय होता है । एगे पुण एवमाहंसु एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है८. ता पुरथिमाओ लोयन्ताओ बहूई जोयणाई बहूई (1) पूर्वी लोकान्त से अनेक योजन अनेक शत योजन और जोयणसयाई बहुइं जोयणसहस्साई उड्ढे दूरं उप्पइत्ता अनेक सहस्र योजन ऊपर दूर दूर चलकर यहाँ प्रातः सूर्य एत्थ णं पाओ सूरिए आगासंसि उट्ठ इ, से णं इमं आकाश में उदय होता है वह इस दक्षिणार्द्ध तिर्यक् लोक को
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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