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________________ ५४० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : सूर्यों को तिरछी गति सूत्र १०४०-१०४१ दाहिणड्ढं लोयं तिरियं करेइ करित्ता उत्तरड्ढलोयं प्रकाशित करता है प्रकाशित करके उत्तरार्द्ध तिर्यक्लोक में रात्रि तमेव राओ, से णं इमं उत्तरड्ढलोयं तिरियं करेइ करता है । वह इस उत्तरार्द्ध तिर्यक् लोक को प्रकाशित करता है करिता दाहिणड्ढलोयं तमेव राओ, से णं इमाइं प्रकाशित करके दक्षिणार्द्ध तिर्यक् लोक में रात्रि करता है । दाहिण-उत्तरड्ढलोयाई तिरियं करेइ करित्ता पुरत्थि- इस प्रकार दक्षिणार्द्ध-उत्तरार्द्ध तिर्यक्लोकों को प्रकाशित माओ लोयन्ताओ बहूई जोयणाई बहूइं जोयणसयाई, करता है, प्रकाशित करके पूर्वी लोकान्त से अनेक योजन अनेक बहूई जोयणसहस्साई उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं सहस्र योजन ऊपर दूर दूर चलकर यहाँ प्रातः सूर्य आकाश में पाओ सूरिए आगासंसि उ8 इ, एगे एवमाहंसु, उदय होता है। वयं पुण एवं वयामो हम फिर ऐसा कहते हैंता जंबुद्दीवस्स दीवस्स पाईण-पडीणायय-उदीण-दाहि- जम्बूद्वीप की पूर्व-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम और उत्तरणाययाए जीवाए मण्डलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दक्षिण लम्बी जीवा से मंडलों के एक सौ चौबीस विभाग दाहिण-पुरत्थिमंसि उत्तर-पच्चत्थिमंसि य चउभाग- करके दक्षिण-पूर्वी और उत्तर-पश्चिमी मण्डल के चतुर्थ भागों में मण्डलंसि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणि- इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अति सम-रमणीय भू-भाग से आठ सौ ज्जाओ भूमिभागाओ अट्ठजोयणसयाई उड्ढं उप्पइत्ता योजन ऊपर की ओर जाने पर यहाँ प्रातः दो सूर्य आकाश में एत्थ णं पाओ दुवे सूरिया आगासाओ उत्तिट्ठन्ति, उदय होते हैं । ते णं इमाई दाहिणुत्तराई जंबुद्दीव-भागाई तिरियं वे सूर्य तिर्यक्लोक में जम्बूद्वीप के इन दक्षिण-उत्तर के करेंति, करेंतित्ता पुरथिम-पच्चत्थिमाई जंबुद्दीव-भागाई विभागों को प्रकाशित करते हैं, प्रकाशित करके जम्बूद्वीप के तामेव राओ, पूर्वी पश्चिमी विभागों में रात्रि करते हैं। ते णं इमाई पुरथिम-पच्चत्थिमाई जंबुद्दीवभागाइं वे सूर्य तिर्यक् लोक में जम्बूद्वीप के पूर्वी-पश्चिमी विभागों तिरियं करेंति, करेंतित्ता दाहिणुत्तराई जंबुद्दीवभागाइं को प्रकाशित करते हैं, प्रकाशित करके जम्बूद्वीप के दक्षिण-उत्तर तामेव राओ, के विभागों में रात्रि करते हैं । ते णं इमाई दाहिणुत्तराई पुरथिम-पच्चत्थिमाइं जंबु- (इस प्रकार) ये सूर्य तिर्यक् लोक में जम्बूद्वीप के इन होवभागाइं तिरिय करेंति, करेंतित्ता जंबुद्दीवस्स दीवस्स दक्षिणी-उत्तरी तथा पूर्वी-पश्चिमी विभागों को प्रकाशित करते पाईण-पडीणायय-उदीण-दाहिणाययाए जीवाए मण्डलं हैं प्रकाशित करके जम्बूद्वीप द्वीप की पूर्व-पश्चिम और दक्षिणचउव्वीसेणं सएणं छत्ता दाहिण-पुरथिमंसि उत्तर- उत्तर लम्बी जीवा से मण्डलों के एक सौ चौबीस विभाग करके पच्चत्थिमंसि य चउन्माग-मण्डलंसि इमोसे रयणप्पभाए दक्षिण-पूर्वी तथा उत्तर-पश्चिमी मण्डलों के चतुर्थ भागों में इस पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अट्ट जोयण- रत्नप्रभा पृथ्वी के अति सम रमणीय भू भाग से आठ सौ योजन सयाई उड्ढे उप्पइत्ता-एत्थ गं पाओ दुवे सूरिया ऊपर जाने पर प्रातः यहाँ दो सूर्य आकाश में उदय होते हैं । आगासंसि उत्तिट्ठन्ति, -सूरिय. पा. २, पाहु. १, सु. २१ सूरस्स मुहत्त-गइ-पमाणं सूर्य की मुहूर्त-गति का प्रमाण४१. ५०-ता केवइयं ते खेत्तं सूरिए एगमेगे णं मुहत्ते णं गच्छइ? ४१. प्र०—सूर्य एक मुहूर्त में कितने क्षेत्र को पार करता है? आहिए ति वएज्जा, उ०-तत्थ खलु इमाओ चत्तारि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, उ०-इस सम्बन्ध में ये चार प्रतिपत्तियाँ (मान्यतायें) कही तं जहा गई हैं, यथातत्थेगे एवमाहंसु उनमें से एक (मान्यता वालों) ने ऐसा कहा है१. ता छ छ जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगे णं मुहुत्ते (१) सूर्य प्रत्येक मुहूर्त में छः छः हजार योजन (जितने णं गच्छइ, एगे एवमाहंसु, क्षेत्र) को पार करता हैं, १ चंद. पा. २ सु. २१ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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