SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 701
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३८ १ ३ लोक- प्रज्ञप्ति उ० तिर्यक लोक सूर्यो की तिरछी गति एमा ५. ता नो किचि दीवं वा समूहं वा ओगाहिता चारं चरइ, ते एवमाहं ता जया णं सूरिए सव्वमंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं नो किचि दीवं वा समुद्दं वा ओमाहिता सूरिए चारं चर तथा उत्तमकरुपले उनकोसए अट्ठारसमुद्वसे दिवसे भव, महष्णिया वालसा राई भ एवं सम्म बाहिरे मंडले वि परं - " नो किचि तव चारं चरइ, राइदियं तहेव । " वयं पुण एवं वयामो . (क) ता जया णं सूरिए सश्वन्मंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं जंबुद्दीवं दीवं असीयं जोयणसयं ओगाहिता सुरिए चारं चर तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भव, जहणिया सुवालसमुहसा राई भ (ख) ता जया णं सूरिए सव्व बाहिरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तथा णं लवणसमुद्दं तिण्णि तोसे लोणसए ओगाहिता सूरिए चारं चरड़, तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भव, अहम्ण बालसमुहले दिवसे भव ( गाहाओ भाषियाओ)" सूरिय. पा. १ पाहू. सु. १६-१७ सूराणं तेरिच्छगई ४०. प० - ता कहं ते तेरिच्छगई ? आहिए त्ति वएज्जा । - तत्थ खलु इमाओ अट्ठ पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहालत्येगे एवमाहं भोगाहिता रिए ऊपर अंकित सूत्र के समान हैं । चन्द. पा. १ सु. १६-१७ । १. ता पुरानोताओ पाओ मरीची आगासंसि उद से षणं इमं लोयं तिरियं करेद्र करिता पश्यस्थिमंसि लोयंतंसि सायंमि आगासंसि विद्धसई एगे एव माहंसु, एगे पुण एवमाहंसु २. तोताओ पाओ रिए आवासंसि सूत्र १०३५-१०४० इनमें से जिन्होंने इस प्रकार कहा है (५) किसी द्वीप या समुद्र का अवगाहन करके सूर्य गति नहीं करता है, उन्होंने इस प्रकार कहा है जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति करता है तब किसी द्वीप या समुद्र का अवगाहन करके गति नहीं करता है । तब परम उत्कर्ष को प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । इसी प्रकार सर्व बाह्य मण्डल में भी कहें विशेष लवणसमुद्र का अवगाहन करके सूर्य गति नहीं करता है, रात्रि और दिन का प्रमाण उसी प्रकार कहें, हम फिर इस प्रकार कहते हैं (क) जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करके गति करता है तब एक सौ अस्सी योजन जम्बूद्वीप को अवगाहन करके गति करता है । तब परम उत्कर्ष को प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है, (ख) जब सूर्य सर्व बाह्यमंडल को प्राप्त करके गति करता है तब तीन सौ तीस योजन लवणसमुद्र को अवगाहन करके गति करता है । तब परम उत्कर्ष को प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और जघन्य वारह मुहूर्त का दिन होता है । गाथायें कहनी चाहिए। सूर्यो की तिरछी गति— ४०. प्रा० (सूर्यो की तिरछी गति कितनी कही गई है? कहें। उ०- इस सम्बन्ध में ये आठ प्रतिपत्तियाँ कही गई, यथाइनमें से एक (मत वालों) ने ऐसा कहा है (१) पूर्वी लोकान्त से किरण-समुदाय आकाश में उठता है। वह इस तिर्यक्लोक को ( प्रकाशित ) करता है और प्रकाशित करके पश्चिमी लोकान्त में सायंकाल के समय आकाश में विलीन होता है।* एक (मत वालों) ने फिर ऐसा कहा है (२) पूर्वी लोकान्त से प्रातः सूर्य आकाश में उदय होता है, २ सम. ८० सु. ७ । ४ इनकी मान्यतानुसार सूर्य किरण-समुदाय मात्र है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy